Thursday 20 June 2013

किताबों की बात जो पढ़े उसका भी भला, जो न पढ़े उसका भी

सुधा अरोड़ा की प्रिय किताबें
प्रसिद्ध कथाकार सुधा अरोड़ा कहती हैं कि मुझे सबसे अधिक संस्मरण और डायरी पसंद हैं. सीमोन द बोउवार की किताब सेकेंड सेक्स, विष्णु प्रभाकर की आवारा मसीहा, धर्मवीर भारती की ठेले पर हिमालय और फिल्मकार एलिया कजां की आत्मकथा बहुत पसंद हैं. ममता कालिया का उपन्यास दुक्खम सुक्खम. डॉ रवींद्र कुमार पाठक की नई किताब आई है जनसंख्या समस्याः स्त्री पाठ के रास्ते. रवींद्र जी ने अच्छी किताब लिखी है. पसंद तो समय-समय पर बदलती रहती है. कभी कोई ज्यादा पसंद आता है तो कभी कोई. वैसे राहुल सांकृत्यायन, रांगेय राघव, प्रेमचंद, अज्ञेय, (धर्मवीर) भारती जी, मन्नू (भंडारी) जी, कृष्णा सोबती पसंद हैं. नए लेखकों में खास तौर से नीलाक्षी सिंह पसंद हैं. इनके अलावा चंदन पांडेय, अल्पना पांडेय और (प्रेमरंजन) अनिमेष अच्छा लिख रहे हैं. बहुत-से लेखक बहुत अच्छा लिखकर भी गुमनाम रह जाते हैं. चंद्रकिरण सोनरेक्सा की पिंजरे की मैना, कुसुम त्रिपाठी की किताब जब स्त्रियों ने इतिहास रचा और डॉ रवींद्र की ऊपर बताई किताब  ऐसी ही किताबों में हैं. मैत्रेयी पुष्पा की आत्मकथा गुड़िया भीतर गुड़िया ऐसी किताबों में है.

गोविन्द मिश्र, मंजूर एहतेशाम, प्रेमपाल शर्मा, पंकज बिष्ट और कमला प्रसाद की प्रिय किताबें
गोविन्द मिश्र कहते हैं कि आज के लेखकों के लेखन में स्थूलता बढती ही जा रही है मगर मुझे लेखन में सूक्ष्म यथार्थ का प्रकटन ही पसंद है। शैलेश मटियानी का उपन्यास 'गोपली गफूरन' प्रिय किताब है। एक बडी क़िताब वह होती है जिसमें कईतरह के इंटरप्रिटेशन हों। इस मायने में यह एक बडी क़िताब है। मंजूर एहतेशाम कहते हैं कि मेरी कही गई बात इस फकीर की बात है, जो सुने उसका भी भला और जो न सुने उसका भी भला। सलमान रश्दी की 'मिडनाइट चिल्ड्रन' का यथार्थ स्वतन्त्रता के बाद यथार्थ है। और इस तरह से इस यथार्थ की बारीकियों को रेखांकित करना किसी चमत्कार से कम नहीं है। प्रेमपाल शर्मा कहते हैं कि मेरी प्रिय पुस्तक हर दो वर्ष बाद बदल जाती है। पंकज बिष्ट की 'लेकिन दरवाजा', सुरेन्द्र वर्मा कृत 'मुझे चांद चाहिए', श्रीलाल शुक्ल का 'राग दरबारी' व वर्गीज क़ुरियन की किताब 'सपना सच हो गया' मेरी प्रिय किताबें हैं। प्रसिध्द कथाकार व समयान्तर के संपादक पंकज बिष्ट कहते हैं कि मेरे लिए यथार्थ लेखन वह है, जो वृहत्तर समाज के हितों की बात करे। मेरी प्रिय पुस्तक 'राग दरबारी' में जीवन का कोई पहलू ऐसा नहीं जिस पर यह उपन्यास टिप्पणी न करता हो। आज जब नई आर्थिक नीतियों के कारण आमजन का जीवन बदहाल होता जा रहा है ऐसे में ग्रामीण जीवन पर केन्द्रित यह उपन्यास स्वत: ही महत्वपूर्ण हो जाता है। अपनी प्रिय पुस्तक के संदर्भ में 'वसुधा' पत्रिका के संपादक व सुप्रसिध्द आलोचक कमला प्रसाद मुक्तिबोध के उपन्यास 'विपात्र' व हरिशंकर परसांई की 'एक साहित्यिक की डायरी' के मुरीद रहे। (संगमन के समारोह से साभार)

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