Thursday, 20 June 2013

किताबों के लिए पागल मन

राजी सेठ की प्रिय किताबें
मुझे उन किताबों से लगाव रहा है जिनमें लेखक का मन खुलता है और कुछ अनौपचारिक बातें सामने आती हैं। 'लेटर्स टू अ यंग पोएट' को जर्मन कवि राइनेर मारिया रिल्के द्वारा कविता लिखने की इच्छा रखने वाले एक युवा को लिखे गए इन दस पत्रों की पुस्तक को मैं अपने जीवन में पढ़ी हुई बेहतरीन किताबों में से एक मानती हूं। रिल्के ने न सिर्फ कविता या लेखन के बारे में, बल्कि जीवन के बारे में भी ऐसी बुनियादी महत्व की बातें कही हैं, जो मुझे उम्र के इस पड़ाव में भी बहुत प्रासंगिक लगती हैं। हिंदी कवि 'अज्ञेय' की किताब 'भवन्ती' दरअसल उनकी नोटबुक है, लेकिन यह उस तरह का पारंपरिक नोटबुक नहीं है, जिसमें सूचनाओं और रोजमर्रा के ब्योरों का अंबार रहता है। इसके उलट यह उनकी कविता की ही तरह, बहुत सुचिंतित और गहरे अर्थों में अपने मन की टोह लेती हुई किताब है। इस किताब में अज्ञेय मन की जिन परतों को रोशन करते हैं, वे आंखें खोलने वाली हैं। कथाकार निर्मल वर्मा ने अपनी किताब 'धुंध से उठती धुंध' को डायरी, जर्नल्स, नोट्स आदि का संचयन कहा है, लेकिन यह शुरू से अंत तक आदमी और उसकी तकलीफ, उसका आसपास और अकेलापन, उसकी दुविधाएं और उसके सरोकारों को जाहिर करने वाली अद्भुत किताब है। पढ़ने वाले जिस 'निर्मलीय गद्य' से अपना जुड़ाव महसूस करते हैं, उसकी कई रंगत भी यहां मौजूद है। डॉ. देवराज की लिखी किताब 'दर्शन, धर्म, अध्यात्म और संस्कृति' मुझे अपने विषय की वजह से खास तौर से पसंद आती है। एक नास्तिक होते हुए भी डॉ. देवराज ने इस किताब के जरिए धर्म, अध्यात्म आदि का जितना मानवीय विवेचन किया है, वह दुर्लभ है। इसके लिए उन्होंने 'सृजनात्मक मानववाद' की राह बनाई, जिसकी बुनियाद में यह आश्वासन था कि इसी लौकिक जीवन में सबकुछ प्राप्त करना मुमकिन है। 'विवक्षा' कवि-लेखक अशोक वाजपेयी की कविताओं का संचयन है। अशोक की कविता प्रेम, परिवार, पड़ोस और अपने ढंग से समाज में हिस्सेदारी करती हुई सयानी समझ की कविता है। उनकी कविता पढ़ने के बाद जब आप अपनी देखी-जानी हुई दुनिया में फिर से शामिल होते हैं, तो आपके अहसास पहले की तरह नहीं रह जाते हैं। यह बड़ी कविता की सबसे बड़ी खूबी है। (नवभारत टाइम्स / अनुराग वत्स)

हर्ष मंदर की प्रिय किताबें 
किताबें कई तरह की पसंद हैं मुझे, इसलिए मैं फर्क किस्म की किताबों के नाम लूंगा। हालांकि इतनी कम संख्या यानी केवल पांच में अपनी पसंद को पूरी तरह जाहिर कर पाना मुश्किल है। एलन पैटन का यह उपन्यास दक्षिण अफ्रीका में होने वाले रंगभेद को आधार बनाकर लिखा गया है। यह उपन्यास न सिर्फ रंगभेद सरीखे क्रूर इंसानी कारनामे की जांच-परख है, बल्कि उसके खिलाफ एक ताकतवर विरोध प्रस्ताव भी है। तमाम तरह के कानून बन जाने के बावजूद कई मुल्कों में आज भी किसी-न-किसी रूप में नस्ली भेदभाव की बात सामने आती है, इसलिए आज और आने वाले वक्त में भी ऐसे उपन्यासों की जरूरत बनी रहेगी। अपने देश में गरीब किसान के हालात और उसके साथ होने वाले अन्याय की दास्तान है, प्रेमचंद का उपन्यास गोदान। यह हिंदी में लिखे गए उन शुरुआती उपन्यासों में से एक है, जिसकी न तो कहानी बासी हुई है और न ही उसके कहने का अंदाज। 'गोदान' अपने मानवीय सरोकारों के लिए मुझे ताउम्र प्रिय लगती रहेगी। मैं इस उपन्यास के पास इसलिए भी लौटता रहूंगा क्योंकि मेरे देशवासी ज्यादातर किसानों के साथ अन्याय अब भी जारी है। 'पॉइजन्ड ब्रेड' मराठी दलित लेखकों के अनुभव से बनी किताब है। मराठी इस देश की उन भाषाओं में से एक है, जिसमें समाज के दबे और सताए हुए वर्ग की आवाज उभर कर आई। यह अपने आप में एक बहुत बड़ी बात है कि जिस मुश्किल हालात में इस वर्ग के लोग जीते हैं, उसे उसकी तमाम परतों को वे रचना में भी ला सके। ऐसा लेखन पढ़ने वालों को इस वर्ग के प्रति पहले से ज्यादा सजग और संवेदनशील बना है। ई. एफ. शूमाकर की किताब 'स्मॉल इज वंडरफुल' आर्थिक मुद्दों पर है। इसमें वह मौजूदा पूंजीवादी अर्थव्यवस्था के बरक्स उस वैकल्पिक अर्थव्यवस्था की बात करते हैं, जो आम आदमी की परवाह करती है। मेरा खयाल है यह सोच गांधीजी की उस सोच के बहुत निकट है, जिसमें उन्होंने लकीर पर खड़े आखिरी आदमी के हिसाब से चीजें सोचने की सलाह दी थी। इस सोच की जरूरत हमें अब भी है। अर्थशास्त्री अमर्त्य सेन की किताब 'आर्ग्युमेंटेटिव इंडियंस' आर्थिक मसलों पर न होकर समाज, साहित्य और संस्कृति से जुड़े बड़े मसलों पर है। अमर्त्य सेन की सोच देश की उस मूल्यवान सेक्युलर थाती से जुड़ती है, जो हमारे लिए बहुत अहम है। एक ऐसे वक्त में जब चरमपंथी सोच हावी होती जा रही है, अमर्त्य सेन का सुझाया रास्ता हमारा हो सकता है। (नवभारत टाइम्स / अनुराग वत्स)

अमृता प्रीतम की प्रिय किताब 
एक समय ऐसा था जब ऐन रेन्ड के उपन्यासों की धूम थी. पाठक पागल थे उसके पीछे. वह नौजवानों की मसीहा बनी हुई थी, लोग उससे प्रेरणा पाते थे. आर्किटेक्ट और मैनेजमेंट के छात्र आज भी उसे पूजते हैं. यही ऐन रैंड अमृता की पसन्दीदा लेखिका हैं. पढ़ने-लिखने वाले लोगों को जिन्हें पुस्तकों से प्यार होता है, उन्हें लगता है, वे चाहते हैं कि जब वे कोई अच्छी चीजें पढ़ते हैं यह औरों को भी पढ़ना चाहिए. इसका आनन्द उनके परिचितों को भी मिलना चाहिए. ऐन रैंड के 'एटलस श्रग्ड' और 'फाउन्टेन हेड' को अमृता इतना पसन्द करती थीं उनसे इतनी प्रभावित थीं कि बहुत बार इन्हें खरीदा और दोस्तों को बाँटा. जिन्दगी की कई मुश्किल घड़ियों में उन्हें ऐन रेन्ड से ताकत मिली. इंसान-इंसान में जो फर्क होता है, जो फर्क हो सकता है वह उन्होंने इस लेखिका से ही सीखा. वे तहे दिल से उसका शुक्रिया अदा करना चाहतीं हैं पर जिसे कभी देखा न हो, जिससे आप कभी मिले न हों, उसे भला आप कैसे शुक्रिया अदा करेंगे? लेकिन बिना मिले, बिना देखे भी यदि आप के मन आभार है तो आप कोई न कोई तरीका अख्तियार कर लेते हैं यही वे करतीं हैं और वे ऐन रेन्ड के एक किरदार को दूसरे किरदार के कहे हुए शब्दों को मन-ही-मन दोहरातीं हैं, 'आई थैंक यू फॉर ह्वाट यू आर' और अपने ढंग से अपनी प्रिय लेखिका को धन्यवाद देतीं हैं. (विजय शर्मा के लेख - अमृता प्रीतम: क्या दिया तुमने? का एक अंश)

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