(अनुवाद : उदय प्रकाश)
युद्ध में मारे गये लोगों का स्मृति दिवस। इसमें आप भी जोड़ दीजिये
अपने नुकसानों का लेखा-जोखा उनके दुखों के साथ,
आपको छोड़ कर चली गई उस औरत से उपजे दुख को भी इसमें शामिल कर दें,
मिलाएं शोक को शोक के साथ, ग़मों को ग़म के साथ, वक़्त के मामले में बेहद किफ़ायती इतिहास की तरह,
इतिहास, जो तीज-त्यौहारो, छुटि्टयों, बलिदानों और गमज़दा तारीखों को
हमारी याददाश्त की आसान सुविधा की खातिर, एक ही किसी दिन में मिला डालता है।
ओह ! यह महान मधुर दिवस, पोपले मुंह वाले बूढ़े डरावने ईश्वर के लिए,
चीनी और दूध की चाशनी में भीगी नर्म-गीली रोटी की तरह।
``इस सबके परदे के पीछे छुपी हुई है कोई महान् खुशी !´´
भीतर-भीतर रोने और बाहर चीखने का कोई मतलब नहीं है।
``इस सबके परदे के पीछे शायद कोई महान् खुशी छुपी हुई है।´´
युद्ध में मरे लोगों का स्मृति दिवस। कसैले तेज़ नमक को किसी
प्यारी-सी नन्हीं बच्ची की तरह फूलों से सजा दिया गया है। सड़कों को
खाली करा के रस्सियों से घेर दिया गया है, जिससे जीवित और मरे हुए लोग
साथ-साथ जुलूस में चल सकें बिना धक्का-मुक्की के।
बच्चे भी धीमे-धीमे चलें उस दुख के साथ, जो उनका अपना नहीं है, एक-एक कदम
रखते हुए, जैसे टूटे-बिखरे कांच की किरचों पर रखे जाते हैं संभाल कर पांव ।
उस बांसुरी-वादक का फूंक मारता मुंह कई दिनों तक ऐसे ही रहा आएगा।
एक मरा हुआ सैनिक तमाम छोटे-छोटे सिरों के ऊपर तैरता है,
किसी मृतक के तैरने की हरकत के साथ,
मुर्दों की उस बहुत प्राचीन गलती के साथ, जिसे वे किसी ज़िंदा पानी की जगह पर
लगातार करते रहते हैं।
एक झंडा असली यथार्थ से सारे रिश्ते खो डालता है और फहराता रहता है।
एक दूकान का शो-विंडो खूबसूरत औरतों के कपड़ों से सजा हुआ है,
नीले और सफेद रंगों में।
और सब कुछ तीन भाषाओं में
हिब्रू, अरबी और मौत।
एक महान् और शाही जानवर मर रहा है
सारी-सारी रात चमेली की लताओं के नीचे
दुनिया को लगातार घूरता हुआ।
एक आदमी जिसका बेटा युद्ध में मारा गया है चल रहा है सड़क पर
जैसे कोई औरत जिसकी कोख में मरा हुआ भ्रूण हो।
``इस सबके परदे के पीछे कोई महान् खुशी छुपी हुई है।´´
युद्ध में मारे गये लोगों का स्मृति दिवस। इसमें आप भी जोड़ दीजिये
अपने नुकसानों का लेखा-जोखा उनके दुखों के साथ,
आपको छोड़ कर चली गई उस औरत से उपजे दुख को भी इसमें शामिल कर दें,
मिलाएं शोक को शोक के साथ, ग़मों को ग़म के साथ, वक़्त के मामले में बेहद किफ़ायती इतिहास की तरह,
इतिहास, जो तीज-त्यौहारो, छुटि्टयों, बलिदानों और गमज़दा तारीखों को
हमारी याददाश्त की आसान सुविधा की खातिर, एक ही किसी दिन में मिला डालता है।
ओह ! यह महान मधुर दिवस, पोपले मुंह वाले बूढ़े डरावने ईश्वर के लिए,
चीनी और दूध की चाशनी में भीगी नर्म-गीली रोटी की तरह।
``इस सबके परदे के पीछे छुपी हुई है कोई महान् खुशी !´´
भीतर-भीतर रोने और बाहर चीखने का कोई मतलब नहीं है।
``इस सबके परदे के पीछे शायद कोई महान् खुशी छुपी हुई है।´´
युद्ध में मरे लोगों का स्मृति दिवस। कसैले तेज़ नमक को किसी
प्यारी-सी नन्हीं बच्ची की तरह फूलों से सजा दिया गया है। सड़कों को
खाली करा के रस्सियों से घेर दिया गया है, जिससे जीवित और मरे हुए लोग
साथ-साथ जुलूस में चल सकें बिना धक्का-मुक्की के।
बच्चे भी धीमे-धीमे चलें उस दुख के साथ, जो उनका अपना नहीं है, एक-एक कदम
रखते हुए, जैसे टूटे-बिखरे कांच की किरचों पर रखे जाते हैं संभाल कर पांव ।
उस बांसुरी-वादक का फूंक मारता मुंह कई दिनों तक ऐसे ही रहा आएगा।
एक मरा हुआ सैनिक तमाम छोटे-छोटे सिरों के ऊपर तैरता है,
किसी मृतक के तैरने की हरकत के साथ,
मुर्दों की उस बहुत प्राचीन गलती के साथ, जिसे वे किसी ज़िंदा पानी की जगह पर
लगातार करते रहते हैं।
एक झंडा असली यथार्थ से सारे रिश्ते खो डालता है और फहराता रहता है।
एक दूकान का शो-विंडो खूबसूरत औरतों के कपड़ों से सजा हुआ है,
नीले और सफेद रंगों में।
और सब कुछ तीन भाषाओं में
हिब्रू, अरबी और मौत।
एक महान् और शाही जानवर मर रहा है
सारी-सारी रात चमेली की लताओं के नीचे
दुनिया को लगातार घूरता हुआ।
एक आदमी जिसका बेटा युद्ध में मारा गया है चल रहा है सड़क पर
जैसे कोई औरत जिसकी कोख में मरा हुआ भ्रूण हो।
``इस सबके परदे के पीछे कोई महान् खुशी छुपी हुई है।´´
No comments:
Post a Comment