Thursday, 6 November 2014

ट्रिक ओर ट्रीट/घुघूती बासूती

परसों शाम अचानक घंटी बजी। देखा तो बच्चों का झुँड चेहरे पर थोड़ी सी कलाकारी कर हैलोवीन मनाता आया था। कई तरह की टॉफियाँ न जाने क्यों मेरे घर एक अलमारी में शायद उनकी प्रतीक्षा में ही पड़ी थीं। सो उन्हें बाँट दी। कुछ देर बाद बच्चों का एक और झुंड आया। वे भी टॉफियाँ ले चले गए।
मैं बचपन की गलियों में पहुँच गई। कभी हम बच्चे लोहड़ी के दिन यूँ ही घर घर लोड़ी माँगने पहुँचते थे। कुछ देर लोहड़ी के गीत गाते जैसे....
दे माँ लोहड़ी, जिए तेरी जोड़ी।
दे माँ दाणे, जीवें तेरे न्याणे।
सुंदर मुंदरिए हो..,
तेरा कौण बिचारा हो..
दुल्ला भट्टी वाला हो,
दुल्ले दी धी ब्याही हो,
सेर शक्कर पाई हो ...
फिर मध्य प्रदेश के मुरैना जिले की याद आती है जहाँ लड़के टेसू और लड़कियाँ झाँझी (? ) लेकर गाने गाते हुए घर घर जाते थे।
लड़के गाते थे..
मेरा तेसू यहीं खड़ा
खाने को माँगे दही वड़ा
दही वड़े में पन्नी
रख दो चवन्नी।
उस जमाने में तो चवन्नी की माँग भी उद्दंडता लगती थी। झाँझी वाली लड़कियाँ क्या गाती थीं समझ नहीं आता था। सब पैसा पाँच पैसा लेकर चले जाते थे।
समय बदला और ५० साल बाद आज बच्चे हैलोवीन मना रहे हैं। बात लगभग वही है।

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