फ्रैंज काफ्का बीसवीं सदी के एक सांस्कृतिक रूप से प्रभावशाली, लघु कहानियां और उपन्यास के जर्मन लेखक थे। उनकी रचनाऍं आधुनिक समाज के व्यग्र अलगाव को चित्रित करतीं हैं। समकालीन आलोचकों और शिक्षाविदों, व्लादिमिर नबोकोव सहित, का मानना है कि काफ्का 20 वीं सदी के सर्वश्रेष्ठ लेखकों में से एक है। "Kafkaesque" अंग्रेजी भाषा का हिस्सा बन गया है जिसका उपयोग 'बहकानेवाला','खतरनाक जटिलता' आदि के संदर्भ में किया जाता है। नई यॉर्कर के लिए एक लेख में, जॉन अपडाइक ने समझाया: "जब काफ्का का जन्म हुआ तब उस सदी मे आधुनिकता के विचारों का पनपना आरम्भ हुआ - जैसे कि सदियों के बीच में एक नइ आत्म-चेतना, नएपन की चेतना का जन्म हुआ हो।
अपनी मृत्यु के इतने साल बाद भी, काफ्का आधुनिक विचारधारा के एक पहलू के प्रतीक है - चिंता और शर्म की उस अनुभूति के जिसे स्थित नहीं किया जा सकता है इसलिए शांत नहीं किया जा सकता है; चीजों के भीतर एक अनंत कठिनाई की भावना के, जो हर कदम बाधा दालती है; उपयोगिता से परे तीव्र संवेदनशीलता के, जैसे कि सामाजिक उपयोग और धार्मिक विश्वास की अपनी पुरानी त्वचा के छिन जाने पर उस शरीर के समान जिसे हर स्पर्श से पीड़ा हो। काफ्का के इस अजीब और उच्च मूल मामले को देखें तो उनका यह भयानक गुण विशाल कोमलता , विचित्र व अच्छा हास्य, कुछ गंभीर और आश्वस्त औपचारिकता से भरपूर था। यह संयोजन उन्हे एक कलाकार बनाता है, पर उन्होने अपनी कला की कीमत के रूप में अधिक से अधिक भीतर प्रतिरोध और अधिक गंभीर संशय के खिलाफ संघर्ष किया है। काफ्का की बहु-प्रचलित रचनाओं में से कुछ हैं - (कायापलट), जांच, एक भूख-कलाकार, (महल) आदि।
काफ्का का जन्म प्राग,बोहेमिया में, एक मध्यम वर्ग के, जर्मन भाषी यहूदी परिवार में हुआ। काफ्का के पिता, हरमन्न काफ्का यहूदी बस्ती में एक सूखी माल की दुकान चलाते थे और काफ्का की मां,जूली उनका (हरमन्न) हाथ बटाती थी। उनके पिता को विशाल, स्वार्थी, दबंग व्यापारी कहा जाता था। काफ्का खुद कहा था कि उनके पिता "शक्ति ,स्वास्थ्य, भूख, आवाज की ऊंचाई, वाग्मिता, आत्म - संतुष्टि, सांसारिक प्रभुत्व, धीरज, मन की उपस्थिति और मानव प्रकृति के ज्ञान में एक सच्चे काफ्का थे"।
एक पत्र
काफ्का को उम्र भर हल्का-हल्का बुखार रहा. उन्होंने समग्र साहित्य उसी बुखार की तपिश में लिखा. और यह बुखार मिलेना के प्यार का बुखार था. प्रिये,
आज सुबह के पत्र में मैंने जितना कुछ कहा, उससे अधिक यदि इस पत्र में नहीं कहा तो मैं झूठा ही कहलाऊंगा. कहना भी तुमसे, जिससे मैं इतनी आजादी से कुछ भी कह सुन सकता हूं. कभी कुछ भी सेाचना नहीं पड़ता कि तुम्हें कैसा लगेगा. कोई भय नहीं. अभिव्यक्ति का ऐसा सुख भला और कहां है तुम्हारे सिवा मेरी मिलेना. किसी ने भी मुझे उस तरह नहीं समझा जिस तरह तुमने. न ही किसी ने जानते-बूझते और इतने मन से कभी, कहीं मेरा पक्ष लिया, जितना कि तुमने.तुम्हारे सबसे सुंदर पत्र वे हैं जिनमें तुम मेरे भय से सहमत हो और साथ ही यह समझाने का प्रयास करती हो कि मेरे लिए भय का कोई कारण नहीं है(मेरे लिए यह बहुत कुछ है क्योंकि कुल मिलाकर तुम्हारे पत्र और उनकी प्रत्येक पंक्ति मेरे जीवन का सबसे सुंदर हासिल है.) शायद तुम्हें कभी-कभी लगता हो जैसे मैं अपने भय का पोषण कर रहा हूं पर तुम भी सहमत होगी कि यह भय मुझमें बहुत गहरा रम चुका है और शायद यही मेरा सर्वोत्तम अंश है. इसलिए शायद यही मेरा वह एकमात्र रूप है जिसे तुम प्यार करती हो क्योंकि मुझमें प्यार के काबिल और क्या मिलेगा? लेकिन यह भय निश्चित ही प्यार के काबिल है. सच है इंसान को किसी को प्यार करना है तो उसकी कमजोरियों को भी खूब प्यार करना चाहिए. तुम यह बात भली भांति जानती हो. इसीलिए मैं तुम्हारी हर बात का कायल हूं. तुम्हारा होना मेरी जिंदगी में क्या मायने रखता है यह बता पाना मेरे लिए संभव नहीं है.
तुम्हारा काफ्का (काफ्का यहूदी थे और मिलेना ईसाई. धर्म के पहरेदारों ने इन दोनों को कभी एक न होने दिया. लेकिन मन से वे हमेशा एक-दूसरे के साथ ही रहे. मिलेना ने काफ्का के लिए काफी दु:ख सहे.)
काफ्का की अमर कहानी: भाई का कत्ल
बीसवीं शताब्दी को जिन चंद लेखकों ने उसके स्याह-सफेद रंगतों में दर्ज किया है उनमें जर्मन भाषा के महान कथाकार फ्रांज काफ्का का भी नाम आता है। काफ्का की कहानियों और उपन्यासों के चरित्र और घटनाओं को अक्सर एक फिनॉमिना के तौर पर भी देखा जाता है, क्योंकि उसमें मानव स्वभाव की महिमा और मैल एक साथ जमा है। साक्ष्य के अनुसार हत्या इस प्रकार से की गई थी:
हत्यारा, श्मार, एक उजली चांदनी रात में करीब 9 बजे एक कोने में घात लगाए खड़ा था, उसी जगह उसका शिकार वेज, अपने दफ्तर वाली गली से घर वाली गली की ओर मुड़ता था। रात की हवा ठंडी कंपकंपाती थी, तब भी श्मार महीन नीली कमीज ही पहने हुए था, जैकिट के बटन भी खुले थे। उसे जरा भी सर्दी नहीं लग रही थी और वह पूरे समय इधर-उधर टहल रहा था। अपना हथियार-आधा छुरा आधा घरेलू चाकू-उसने मजबूती से अपनी हथेली में कस रखा था और उसकी धार नंगी थी। उसने चांद की रोशनी में चाकू को देखा, ब्लेड चमचमा रही थी, श्मार को तसल्ली नहीं हुई, उसने फुटपाथ के पत्थर पर उसे रगड़ा और चिनगारियां उछल पड़ी, अरे कहीं खराब न हो गया हो, शायद और इसीलिए उसने किसी कट फट को सुधारने के लिए उसे अपने जूते के सोल के ऊपर वाइलिन -बो की तरह फिराया, वह एक पैर पर आगे झुक गया और ध्यान से दोनों आवाजों को: अपने बूट पर सान चढ़ते चाकू की और अगल से आती अभागी गली में से उठती किसी खटखटाहट की आवाजों को सुनता रहा।
घरेलू कामकाजी कोई नागरिक, पलास, समीप ही के घर की खिड़की से यह सब देख रहा था, मगर वह क्यों चुप रहा? जरा मानवीय स्वभाव के रहस्य को तो देखो। अपने स्थूल बदन पर ड्रेसिंग गाउन के फंदे कसे हुए और कॉलरों को ऊंचा चढ़ाए वह बस सिर डुलाते हुए नीचे देखता खड़ा रहा।
और पांच घर आगे, गली की उलटी तरफ, अपने नाइट गाउन से ऊपर फर कोट पहने मिसेज वेज अपने पति की बाट जोहती बार-बार झांक रही थी, जो आज रात घर लौटने में अप्रत्याशित देरी कर रहा था।
आखिर वेज के दफ्तर की घंटी बजी और बहुत जोर से बजी, सारे शहर में गूंजती हुई और आकाश फाड़ती हुई, और रात पाली का मेहनतकश मजदूर, वेज इमारत से बाहर निकल कर गली में ओझल हो गया, सिर्फ घंटी की ध्वनि ही उसके आगमन की सूचक थी। एकाएक फुटपाथ पर उसके पदचापों की हल्की हल्की थपथपाहट उभरी।
पलास और ज्यादा आगे झुक गया। वह आंखें गड़ा कर सब कुछ देखना चाहता था। मिसेज वेज ने घंटी से आश्वस्त होकर, फटाफट अपनी खिड़की बंद कर दी, लेकिन श्मार दुबका ही रहा और चूंकि उसके शरीर का कोई अन्य भाग खुला नहीं था उसने अपने चेहरे और हाथों को भी फुटपाथ पर जोरों से दबा दिया, जहां सब कुछ ठंड से जमा हुआ था, मगर श्मार लाल दमक रहा था।
ठीक उसी कोने में जहां गलियां मिलती थीं वेज एक पल सुस्ताया, सिर्फ उसकी हाथ छड़ी घूम कर दूसरी गली में टिकी। एकाएक एक झक, मानो रात के आकाश ने उसे पुकारा, अपना नील, अपना सुवर्ण दिखाकर। अनजाने ही वह ऊपर उसकी ओर देखने लगा, अनजाने ही उसने अपना हैट उतारा और बालों पर हाथ फेरा, वहां ऊपर जो कुछ था वह कुल मिलाकर ऐसे किसी पैटर्न में ढलता नहीं था जो उसे आसन्न संकट का पूर्वाभास दे दे, सब कुछ उनके अर्थहीन, अभेद्य स्थानों में अटल था। अपने आप में यह अत्यंत चैतन्यशील काम था कि वेज चलता ही चला जाए, मगर वह तो श्मार के चाकू की ओर ही चला।
'' वेज'' श्मार चीखा। वह अपने पंजों के बल खड़ा था, उसका हाथ आगे खिंचा हुआ था, चाकू तीखी दिशा में नीचे झुका हुआ था, ''वेज'' तू अब जूलिआ से कभी नहीं मिल पाएगा।'' और सीधा गले में और उलटा गले में और तीसरी बार पेट में श्मार का चाकू जा घुसा। पानी के फव्वारे की जैसे टोंटी खोल दी गई हो वैसी ही आवाज वेज के बदन में से निकली।
'' खत्म'', श्मार बोला और उसने खून से लबालब सने चाकू को नजदीकी घर के सामने की मिट्टी में गाड़ दिया। हत्या का परम आनंद, एक राहत अनुपम आह्लाद, दूसरे का खून गिराने में। वेज पुराना निशाचर साथी, गहरा दोस्त, मदिरालय का हमप्याला, तू प्यारे इस गली की अंधेरी धरती के नीचे गल-गल के रिस रहा है। तू सिर्फ खून का एक गुब्बारा भर क्यों नहीं है, ताकि मैं भड़ाक-से तुझे पीटता और तू शून्य में लुप्त हो जाता पर जैसा हम चाहते हैं वैसा ही तो नहीं हो जाता, सारे सपने जो खिलते हैं सभी में तो फूल नहीं लगते, तेरा लौंदा अब यहीं पड़ा है, हर ठोकर से बेअसर, लेकिन इन गूंगे सवालों को उठाने से क्या फायदा?
पलास अपने बदन में भर गए भय और आतंक की उथल पुथल से घुटता हुआ अपने घर के दो पट वाले दरवाजे के भीतर खड़ा ही था कि एकाएक वह फटाक से खुल पड़ा। ''श्मार ! श्मार ! मैंने सब कुछ देखा, सब कुछ।'' पलास और श्मार ने एक दूसरे को गौर से भांपा जांचा। जांच से पलास को संतोष हुआ, श्मार किसी निर्णय पर नहीं पहुंच पाया।
मिसेज वेज अपने दोनों ओर लोगों की भीड़ के बीच दौड़ती-दौड़ती-सी आई। उसका चेहरा सदमे से एकदम मुरझा गया था। उसका फर कोट खुला था और लटक गया था। वह वेज के ऊपर जा गिरी, नाइट गाउन में लिपटा वह बदन वेज का ही तो था युगल के ऊपर फैला हुआ फर कोट जैसे किसी कब्र की दूब हो जहां लोग आए थे।
श्मार बड़ी ताकत लगाकर अपनी मिचलाहट से उभरने का कशमकश कर रहा था। उसने पुलिसमैन के कंधे पर अपना सिर टिका दिया जो धीरे धीरे कदम बढ़ाता हुआ उसे आगे खींचता ले गया।
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