Saturday, 29 June 2013

कोंस्तांतीन सीमोनोवका एक कविता संग्रह


प्रेम मनुष्य के जीवन का सबसे बड़ा सुख होता है| कभी यह सबसे बड़ा दुख भी बन जाता है| इस बार हम आपको एक ऐसी प्रेम-कथा सुनाने जा रहे हैं जिसमें प्रेम सुख भी था और दुख भी| यह कथा है रूसी कवि कोंस्तांतीन सीमोनोव और अभिनेत्री वलेंतीना सेरोवा की|
सन् 1942 में कोंस्तांतीन सीमोनोवका एक कविता संग्रह छपा था जिसका नाम था: “तुम्हारे संग, तुम्हारे बिना”| इसके मुखपत्र पर था समर्पण: वलेंतीना सरोवा को! यह पुस्तक हाथोंहाथ बिक गई| लोग अपनी कापियों में हाथ से इन कविताओं की नक़ल उतारते थे, इन्हें कंठस्थ करते थे| उन दिनों द्वितीय विश्वयुद्ध चल रहा था–लोग मोर्चे पर लड़ रहे अपने सगों को ये कविताएँ अपने पत्रों में लिखकर भेजते थे| इसी संग्रह में एक कविता थी:“तुम करना इंतज़ार”| यह कविता युद्ध के शुरू में ही लिखी गई थी| इसमें इंतज़ार की जो अरज़ है उससे साफ़ पता चलता है कि कवि को यह अहसास हो गया था कि लड़ाई बहुत लंबी चलने वाली है| बड़ी जल्दी ही सारे देश में मोर्चे में लड़ रहे सिपाही भी और पीछे छूटे उनके सगे भी – सभी इसे एक मन्त्र की तरह दोहराने लगे| यह था प्रेम और इंतज़ार का मन्त्र| आइए, हम आपको सुनाते हैं इसका हिंदी रूपांतर जो हमारे सहयोगी योगेन्द्र नागपाल ने किया है:

तुम करना इंतज़ार, मैं लौट आऊंगा|
बस हर पल करना तुम इंतज़ार|
ठंडी बरखा करे उदास - तुम करना इंतज़ार| चलें बर्फीली आंधियां - तुम करना इंतज़ार|
गर्मी भारी तड़पाए - तुम करना इंतज़ार|
भुला के बीते पल,
छोड़ दें सब इंतज़ार - तुम करना इंतज़ार|
न मिले खबर दूर से,
न आए पाती - तुम करना इंतज़ार|
हो जाएं संगी-साथी हताश - तुम करना इंतज़ार|

तुम करना इंतज़ार, मैं लौट आऊंगा|
अब भुला भी दो कहते हैं जो,
अनसुना उनको तुम कर दो|
मान ले मां, नहीं रहा बेटा|
नहीं रहा बाप, मान ले बेटा| भाई-बंधु थक जाएं, करते-करते इंतज़ार| घूंट कड़वा लगा लें, मेरी आत्मा की शांति का| तुम करना इंतज़ार, नहीं भरना वह घूँट|
तुम करना इंतज़ार, मैं लौट आऊंगा,
हर मौत को देके धोखा| नहीं था जिनको इंतज़ार कहेंगे – खुशकिस्मत है| क्या समझेंगे वे, नहीं जानते जो इंतज़ार, बरसती आग में बचाया कैसे तुमने मुझे, अपने इंतज़ार से| कैसे रह गया मैं ज़िंदा, जानती हो तुम, जानता हूं मैं| करना तुम सा इंतज़ार, नहीं जानता कोई और|

वलेंतीना सेरोवा एक अनुपम अभिनेत्री और अति सुंदर नारी थीं | उनमें कुछ ऐसा सम्मोहन था कि जो उन्हें देखता उन पर फ़िदा हो जाता| आम दर्शक, बड़े-बड़े राजनेता, कलाकार और कवि – सभी उनके दीवाने थे| उनकी हर हीरोइन अपने आप में अनोखी और मनमोहक थी| किंतु उनका वास्तविक जीवन इससे बहुत भिन्न था|

उनका जन्म सन् 1917 में यूक्रेन के खारकोव नगर के पास हुआ था| उनकी मां भी अपने ज़माने की मशहूर अभिनेत्री थीं| वलेंतीना छह वर्ष की थीं, जब मां-बाप के साथ मास्को आ गईं| रंगमंच से लगाव तो उन्हें मां के दूध के साथ ही मिला था| तो इसमें आश्चर्य की क्या बात कि आठ वर्ष की नन्ही उम्र में ही वह रंगमंच पर उतर आई थीं| चौदह साल की होते - होते आम स्कूल की पढ़ाई छोड़कर रंगमंच विद्यालय में दाखिला ले लिया| वहाँ साल भर शिक्षा पाई और पंद्रह साल की उम्र में ही उन्हें थियेटर मंडली में रख लिया गया|

मई 1938 में उनका परिचय स्पेन में चल रहे गृहयुद्ध के वीर, टेस्ट पायलट अनातोली सेरोव से हुआ| हंसमुख, हाज़िरजवाब, सलोना अफसर युवा अभिनेत्री को देखते ही अपनी सुध-बुध खो बैठा| उसी दिन शाम को वलेंतीना लेनिनग्राद जा रही थीं| अनातोली उन्हें छोड़ने स्टेशन पर गए, उन्हें ट्रेन में बिठाकर विदा किया| और अगले दिन सुबह तड़के हवाई जहाज़ से लेनिनग्राद पहुँच गए – स्टेशन पर वलेंतीना का स्वागत करने| दो दिन तक वह वलेंतीना की परछाईं बने उनके पीछे-पीछे घूमते रहे| तीसरे दिन मन की रानी से कह दिया: सदा के लिए मेरी हो जाओ| पहली मुलाक़ात के आठ दिन बाद ही 11 मई को वे विवाह-सूत्र में बंध गए|

वलेंतीना के जीवन में ये सबसे सुखी दिन थे| वह अब सच्चे अर्थों में एक अनुपम अभिनेत्री मानी जाती थीं| “मैं नहीं अबला” फिल्म की हीरोइन की भूमिका ने उन्हें लाखों लोगों की चहेती बना दिया| उस ज़माने के संस्मरण बताते हैं कि जहाँ-जहाँ यह फिल्म दिखाई जाती थी वहाँ लोगों की भीड़ टूट पड़ती थी| थियेटर में जिन नाटकों में वह भाग लेती थीं उनके टिकट हाथोंहाथ बिक जाते थे| वलेंतीना 21 वर्ष की हो गई थीं| उनके पति अनातोली सेरोव के साथ उन्हें अक्सर क्रेमलिन में बुलाया जाता था| पर रूसी में ये मुहावरे अकारण ही नही बने हैं: “शादी मई में, खुशी खाई में”, “मई की शादी, लाए बर्बादी”| वलेंतीना के भाग्य ने इन्हें सच्चा कर दिखाया| 5 मई 1939 को वलेंतीना और अनातोली को क्रेमलिन में दावत पर बुलाया गया| यहीं पर स्टालिन ने अनातोली को नए विमान के परीक्षण का काम सौंपा| अपने विवाह की वर्षगांठ वाले दिन, 11मई को वलेंतीना को “गलीना” नाम की कामेडी में प्रमुख भूमिका अदा करनी थी| जब उनका मेक-अप पूरा हो गया तो उन्होंने देखा कि थियेटर के नेपथ्य में बहुत सारे सैनिक जमा हैं और कुछ अजीब ढंग से उन्हें देख रहे हैं| थियेटर के डायरेक्टर के चेहरे पर खून का कतरा तक न था, वलेंतीना के पास आकर वह भर्राए कंठ से बोला: “अनातोली ठीक नहीं”| वलेंतीना ने पूछा: “ज़िंदा हैं?” जवाब मिला : “नहीं, मारे गए”| यह सब नाटक आरंभ होने से कुछ क्षण पहले ही हुआ| वलेंतीना सेरोवा जब मंच पर पहुंचीं तो सारा हाल स्तब्ध रह गया| रेडियो पर मशहूर पायलट के दुर्घटना में मारे जाने की खबर आ चुकी थी| परंतु सेरोवा ने सारा नाटक हंसते-खेलते पूरा किया| ईश्वर ही जानता है तब उनके मन पर क्या गुज़र रही थी| चार महीने बाद उनके बेटा हुआ जिसका नाम उन्होंने अपने पति की याद में अनातोली ही रखा| वह था भी हुबहू अपने पिता की नक़ल|

दिन-रात काम में डूबी रहकर ही युवा नारी अपने इस दुख से उबर पाई| गोर्की के मशहूर नाटक की नई प्रस्तुति में वलेंतीना को एक प्रमुख भूमिका सौंपी गई| इसके हर शो में पहली कतार में ही सदा एक नौजवान बैठा होता था जो टकटकी लगाए अभिनेत्री को निहारता रहता था| जिस किसी नाटक में वलेंतीना की कोई भूमिका होती थी उसके हर शो में यह नौजवान मौजूद होता था| नाटक समाप्त होने पर वह थियेटर के पिछले दरवाज़े पर जहाँ से सभी अभिनेता-अभिनेत्रियां निकलते थे पहरा देता था - हाथ में गुलदस्ता लिए| अंततः सेरोवा ने इस हठी प्रशंसक को उत्तर दे ही दिया| एक पर्ची उस तक पहुंचाई: “मुझे फोन करना| वलेंतीना सेरोवा”| यह नौजवान और कोई नहीं 24 वर्षीय कवि कोंस्तांतीन सीमोनोव ही थे जो इस उम्र में ही ख्याति पा चुके थे|

सीमोनोव का जन्म 1915 में पीटर्सबर्ग में हुआ था, उनकी मां ऊंचे राजसी घराने की थीं| अपने पिता की सीमोनोव को कोई याद नहीं रही, बेटे के जन्म के कुछ ही समय बाद वह प्रथम विश्युद्ध के मोर्चे पर लापता हो गए थे| हां सौतेले पिता का ज़िक्र सदा बड़े आदर और स्नेह से करते थे| वह अफसर थे, रूस-जापान युद्ध में लड़े थे और पहले विश्वयुद्ध में भी| उन्होंने ही बेटे का पालन-पोषण किया, उसे अच्छी शिक्षा दी| सन् 1931 में वह माता-पिता के साथ मास्को आ गए यहां सिनेमा-स्टूडियो में काम करने लगे| कुछ समय बाद

साहित्यिक संस्थान में शिक्षा पाने लगे| यहीं उन्होंने कविताएँ लिखनी शुरू कीं और जल्दी ही नाम कमा लिया|

एक नामी साहित्यकार बनकर उन्होंने थियेटर की ओर ध्यान दिया| खास तौर पर वलेंतीना के लिए उन्होंने “एक प्रेम कथा” नाम से नाटक लिखा, जिसमें सेरोवा ने मुख्य भूमिका अदा की| थियेटर में अगली सफलता सीमोनोव को “हमारे शहर का छोरा” नाटक से मिली| यह वलेंतीना सेरोवा और उनके पति अनातोली की जीवनी पर आधारित था| सेरोवा ने इस नाटक में कोई भूमिका अदा करने से इनकार कर दिया – पति की मृत्यु का शूल अभी तक हृदय को असह्य पीड़ा दे रहा था|

वलेंतीना के लिए सीमोनोव एक सहृदय मित्र ही थे| वह भी बहुत समझदार थे, जानते थे नारी-मन को जीतने के लिए बड़ा धीरज चाहिए| धीरे-धीरे वलेंतीना का बेटा अनातोली उनकी ओर आकर्षित होने लगा| सो, मां का दिल भी पिघलने लगा| सीमोनोव सच्चे मन से वलेंतीना से प्रेम करते थे| अच्छी तरह समझते थे कि प्रिया का हृदय वह पूरी तरह नहीं जीत पाए हैं| वलेंतीना के “रोमांसों” की चर्चाएं सारे शहर में क्या, सारे देश में होती थीं| थियेटर में उनके साथी पीठ पीछे उन्हें “तितली” कहते थे| किंतु सीमोनोव को इन सब चर्चाओं-अफवाहों की कोई परवाह नहीं थी| वलेंतीना जैसी थी वैसी ही उन्हें दिलो-जान से प्यारी थी| युवा कवि और अभिनेत्री के प्रेम की खबर भी तुरंत ही चारों ओर फ़ैल गई| वे इकट्ठे रहने लगे थे, विवाह की औपचारिकता को दरकिनार कर के| मन की निरंतर टीस से थकी-मांदी वलेंतीना के लिए तो शुरू में सीमोनोव उन लोगों में से ही एक थे जिनकी बदौलत वह अपने पति के न रहने के दर्द को कुछ समय के लिए भुला पाती थीं| समय बीतने पर उन्हें यह अहसास होने लगा कि सीमोनोव ही वह अकेले व्यक्ति हैं जिनकी बदौलत वह अपने असह्य दर्द को झेल पाईं और आगे जीने की शक्ति जुटा पाईं| सीमोनोव कहा करते थे: “वलेंतीना पुरुषों के आग्रह और हठ का प्रतिरोध नहीं कर पाती थी, लेकिन जिससे वह प्रेम करती थी उससे वफ़ा निभाती थी, उसे कभी नहीं भुलाती थी”| जीवन ने इन शब्दों की पुष्टि की| अपने पहले पति, अपने प्यारे अनातोली को वलेंतीना आखिरी दिन तक नहीं भुला पाईं|
सन् 1941 में नाज़ी जर्मनी ने सोवियत संघ पर हमला किया| युद्ध आरंभ हो गया| सीमोनोव को देश के प्रमुख सैनिक अखबार का संवाददाता नियुक्त किया गया| वलेंतीना से विदाई लेकर वह मोर्चे पर चले गए| कुछ ही समय बाद उन्होंने अपनी मशहूर कविता “तुम
करना इंतज़ार” लिखी जो वलेंतीना को समर्पित थी| इस कविता में सीमोनोव ने हर देशवासी के मन की बात कह डाली – मोर्चे पर गया हर सैनिक चाहता था कि उसका अथक इंतज़ार हो और उसका हर सगा यही चाहता था कि वह हर हालत में लौट आए| इन्हीं भावनाओं को शब्दों में उतारकर कवि ने देश की अमूल्य सेवा की|
सेरोवा जिस थियेटर में काम करती थीं उसे युद्ध के दिनों में मास्को से बाहर दूसरे शहर भेज दिया गया था| रोज़ाना ही उन्हें सीमोनोव के पत्र मिलते थे| उनकी सहेलियां उनसे कहती थीं कि “सीमोनोव जैसे व्यक्ति का प्रेम पाने का सौभाग्य हर किसी को नहीं मिलता” कि वलेंतीना को “उसकी परवाह करनी चाहिए”, कि “सदा अपने मन की ही सुनते रहना भी ठीक नहीं होता”| अंततः सेरोवा ने सीमोनोव की बात मान ली और उनकी विवाहिता पत्नी बन गईं| क्या कारण रहे होंगे उनके इस फैसले के पीछे? नारी-सुलभ सुख पाने की कामना तो रही ही होगी, और फिर उन कविताओं ने भी अपनी भूमिका अदा की होगी जो प्रेम-दीवाने कवि ने लिखीं और जिन्हें अब सारा देश जानता था| एक संवाददाता के नाते सीमोनोव अक्सर मोर्चे पर जाते थे और प्रायः हर रोज ही अपनी प्यारी पत्नी को लिखते थे: “तुम्हारे बिना जीवन जीवन नहीं| मैं जीता नहीं हूं, बस दिन गिनता हूं...सदा यही सोचता रहता हूं कि हम दोनों जब साथ होंगे तो कितना सुख पाएंगे, कितने खुश होंगे| तुम्हारे बिना मन इतना उदास रहता है कि इस उदासी को कोई भी और कुछ भी नहीं दूर कर पाता...”

सन् 1943 में “तुम करना इंतज़ार” फिल्म रिलीज़ हुई| इसकी पटकथा सीमोनोव ने लिखी थी और मुख्य भूमिका अदा की थी वलेंतीना सेरोवा ने| इस रोल ने उन्हें अमर अभिनेत्री बना दिया| 1945 में युद्ध समाप्त हो गया| सीमोनोव देश की सबसे लोकप्रिय साहित्यिक पत्रिका “नोवी मीर” (नई दुनिया) के प्रधान संपादक नियुक्त हुए| पति मशहूर कवि और लेखक, पत्नी नामी अभिनेत्री – और क्या चाहिए जीवन में, खुशियां पाओ, सुख भोगो|

परंतु भाग्य में कुछ और ही लिखा था| जीवन का नया दौर पति-पत्नी के संबंधों के लिए नई परीक्षा बनकर आया| युद्ध समाप्त होने के साथ देश का सारा जीवन तेज़ी से बदल रहा था| अब दर्शकों को नए हीरो और हीरोइनें की दरकार थी| “दुस्साहसी अबला” चरित्र वाली नायिकाओं का ज़माना बीत गया था| वलेंतीना के लिए थियेटर में कोई रोल प्रायः बचा ही नहीं था| एक अभिनेत्री के लिए इससे बड़ा दुर्भाग्य और क्या हो सकता है कि दर्शकों को उसे देखने की इच्छा नहीं रही|

वलेंतीना चाह कर भी अपने जीवन में कुछ नहीं बदल पा रही थीं| अपनी लाचारी को वह मदिरा में ही डुबोने लगीं – सपनों और भ्रमों की दुनिया में अपने को भुलाने लगीं| कुछ साल बीतते न बीतते पहले लत पड़ गई और फिर इसने बीमारी का रूप ले लिया| सीमोनोव ने अपने एक पत्र में उन्हें लिखा: “क्या हो गया है तुम्हें? ये घबराहट के दौरे, ये दिल के दौरे तुम्हें तभी क्यों पड़ते हैं जब मैं घर से बाहर होता हूं? कहीं यह तुम्हारी दिनचर्या से तो नहीं जुड़ा हुआ? जानता हूं तुम भी उस भयानक रूसी आदत की शिकार हो –मन ज़रा उचाट हुआ, थोड़ी उदासी छाई, कोई झुंझलाहट हुई, किसी से जुदाई हुई, बस उठा लो बोतल...”

सन् 1950 में सेरोवा और सीमोनोव के बेटी हुई| लेकिन इससे भी पति-पत्नी के बीच की दरार कम नहीं हो पाई| ऊपर से भाग्य की विडम्बना देखिए – बेटी मरिया का जन्म हुआ 11 मई को, उसी दिन जब वलेंतीना के प्रिय पति अनातोली का त्रासद देहांत हुआ था|

जल्दी ही सेरोवा के सिर पर एक और पहाड़ टूट पड़ा| उनका बेटा बरसों से आयाओं के भरोसे ही पल रहा था| 14 वर्ष की अल्पायु में ही वह शराब पीने लग गया| फिर अपने जैसे ही किछ बिगड़े किशोरों के साथ मिलकर नशे के जोश में आकर एक पड़ोसी का ग्रीष्म-घर लूट लिया और उसमें आग भी लगा दी| अनातोली सेरोव को जेल हो गई| जेल में सुधरना तो क्या था, ऊपर से और भी अधिक खुंदकी और अड़ियल होकर लौटा| पीना-पिलाना और गुंडागर्दी करना – यही उसकी ज़िंदगी थी| मां का उस पर कोई बस नहीं चलता था|
सीमोनोव ने पत्नी की मदद करने में कोई कसर नहीं छोड़ी| नशे की लत से छुटकारा दिलाने के लिए इलाज भी करवाया| किंतु सारे प्रयास विफल रहे| सेरोवा के जिस रूप ने उन्हें कभी चकाचौंध कर दिया था, उसकी आभा उनकी नज़रों के सामने ही धूमिल पड़ती जा रही थी| दिन पर दिन पति-पत्नी एक-दूसरे से दूर होते जा रहे थे| उधर स्टालिन की मृत्यु हो गई, जो सीमोनोव के लिए बहुत बड़ा सदमा थी| अब उन्हें खुद किसी के आसरे की ज़रूरत थी, लेकिन उनके साथ एक करीबी, मददगार संगिनी नहीं, बुझे दिल वाली बीमार औरत थी|
सन् 1957 में, जिस साल उनकी बेटी मरिया पहली कक्षा में गई, पति-पत्नी का औपचारिक संबंध–विच्छेद हो गया| “तुम्हारे संग, तुम्हारे बिना” कविता संग्रह से कवि ने समर्पण के शब्द हटा दिए| पर “तुम करना इंतज़ार” कविता के शीर्षक तले “व.से.” अंत तक छपता रहा| सन् 1975 में सेरोवा का बेटा अनातोली मर गया| वह तब 36 वर्ष का भी नहीं हुआ था| मां यह दुख नहीं झेल पाई और जल्दी ही बेटे के पीछे चली गई| सीमोनोव अपनी पूर्व-पत्नी के अंतिम संस्कार में नहीं आए| बस 58 गुलाबी गुलाबों का गुलदस्ता भेज दिया|
मात्र चार साल बाद अपनी मृत्यु से कुछ दिन पहले सीमोनोव ने अनुपम अभिनेत्री से अपने दर्दमय प्रेम के साक्षी सारे पत्र, फोटो और दूसरे कागज, नोट – सभी कुछ जला दिया| अपनी बेटी मरिया से उन्होंने कहा: “मैं नहीं चाहता कि मेरे बाद कोई बेगाना यह सब देखे-पढ़े... माफ करना, बेटी, तुम्हारी मां और मेरा जो नाता था वह मेरे जीवन का सबसे बड़ा सुख था... और सबसे बड़ा दुख भी...” (hindi.ruvr.ru से साभार)

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