Saturday, 29 June 2013

तेओदोर शुमोव्स्की की किताब 'पूरब की रोशनी'


पूर्वी देशों संबंधी प्रसिद्ध रूसी विद्वान, 95 वर्षीय प्रसिद्ध अरब विशेषज्ञ तेओदोर शुमोव्स्की की हाल ही में जो नई पुस्तक प्रकाशित हुई है, उस पुस्तक का नाम है "पूरब की रोशनी"। रूस में तेओदोर शुमोव्स्की को लोग अरबी भाषा से रूसी में कुरान के पहले काव्य-अनुवाद के लिये जानते और मानते हैं। तेओदोर शुमोव्स्की द्वारा किया गया कुरान का यह काव्यानुवाद सन 1995 में प्रकाशित हुआ था। तब तक रूसी भाषा में कुरान के सिर्फ़ दो ही अनुवाद प्रकाशित हुए थे। जिनमें से पहला अनुवाद अट्ठारहवीं शताब्दी के अन्त में रूसी राजदरबारी कवि मिख़ायल विर्योफ़किन ने किया था और रूसी भाषा में कुरान का अनुवाद करने के लिये उन्होंने अरबी भाषा की कुरान का नहीं, बल्कि फ़्रांसिसी भाषा में छपी कुरान का उपयोग किया था।
रूसी भाषा में 1995 तक कुरान का जो दूसरा अनुवाद उपलब्ध था, वह तेओदोर शुमोव्स्की के गुरू, प्रसिद्ध रूसी अरब-विशेषज्ञ ईग्नात क्राच्कोव्स्की ने किया था। रेडियो रूस से बात करते हुए तेओदोर शुमोव्स्की ने कहा: "कुरान सिर्फ़ यूँ ही आयतों में नहीं लिखी गयी थी। मौहम्मद साहब ने जो कुछ भी कहा, वह आयत के रूप में इसलिये कहा क्योंकि आयत सीधे-सीधे उस आदमी के दिल में उतर जाती है, जो उसको सुनता है। मैंने पूरी दुनिया में लोकप्रिय इस पवित्र पुस्तक के स्वरूप को प्रायः बचाए रखने की कोशिश की है। सिर्फ़ अरबी आयतों को रूसी काव्य-छन्दों में पिरो दिया है ताकि रूसी पाठक के लिये उनको समझना और महसूस करना आसान हो। कुरान के अनुवाद के बाद अब मैं कह सकता हूँ कि मैं अरबी लोगों के मनोविज्ञान को अब अधिक गहराई से समझने लगा हूँ जो दया करने तथा मानव की सहायता करने की बात कहते हैं, यहाँ तक कि जानवर पर भी दया करने की बात करते हैं।" बड़ी उम्र होने पर भी यह बात वह व्यक्ति कह रहा है जो बचपन से ही इस्लामी दुनिया की परम्पराओं और इस्लामी जीवन का अध्येता रहा है।
तेओदोर शुमोव्स्की ने अपने जीवन को याद करते हुए कहा: "मैं दक्षिणी कोहकाफ़ के उस पार अज़ेरबैजान के प्राचीन नगर शेमाखा में पला-बढ़ा हूँ। इस नगर के चार कोनों पर चार बड़े मुस्लिम कब्रिस्तान बने हुए हैं, जिनमें ढेरों कब्रें हैं और उन सभी कब्रों पर मकबरे भी बने हुए हैं। अपने बचपन में जब मैं इनके पास से गुज़रता था तो मैं इन मकबरों पर मोहित हो जाता था और रूक कर उन पर अरबी भाषा में लिखी हुई इबारतों को पढ़ने की कोशिश करता था । उस अरबी लिपि से मैं इतना प्रभावित हो गया था कि वहाँ से हट कर घर जाना तक मेरे लिये मुश्किल हो जाता था। इस तरह मेरे भीतर अरबी भाषा और अरब इतिहास के प्रति एक प्रेम, एक लगाव पैदा गया"।
बीसवीं शताब्दी के तीसरे दशक में अकादमीशियन और पूर्वी देशों के विशेषज्ञ निकोलाय मारर की सलाह पर तेओदोर शुमोव्स्की ने सांक्त पीतेरबुर्ग के इतिहास और भाषा संस्थान में प्रवेश लिया था। वहीं उन्होंने अरबी भाषा सीखी, अरब देशों और संस्कृति का इतिहास पढ़ा और प्राचीन अरब-ग्रंथों का परिचय पाया। तभी उनके हाथ पन्द्रहवीं शताब्दी के एक ऐसी पाण्डुलिपि लग गई, जिसका शीर्षक था — "अरबी वास्कोडिगामा अहमद इब्न माज़िद की तीन अज्ञात यात्राएँ।" इस पाण्डुलिपि ने, इस ग्रंथ ने तेओदोर शुमोव्स्की को एक ऐसा वैज्ञानिक विषय दे दिया, जिस पर वे सारी ज़िन्दगी काम करते रहे। इसके बाद उन्होंने 15 किताबें लिखीं और यह सिद्ध किया कि अरबी लोग न केवल बड़ी-बड़ी ज़मीनी यात्राएँ करते रहे हैं, बल्कि उन्होंने अनेक महान, जलयात्राएँ भी की हैं। तेओदोर शुमोव्स्की ने कहा: "एक समय ऐसा था जब अरब लोगों ने भूमध्य सागर पर अपना झंडा लहराने के लिये वाइज़ेंटाईन के साथ युद्ध किया था। इस युद्ध के फलस्वरूप स्पेन पर उनका कब्ज़ा हो गया और फिर 300 साल तक स्पेन पर अरबों का राज रहा। इसलिये स्पेन में आज भी मारसेल और गेनुया जैसे अरबी नाम सुनाई देते हैं। अरबियों ने हिन्द महासागर में भी जलयात्राएँ कीं। वे चीन तक गए। हिन्द महासागर के इलाके में उन्होंने दस स्थानों पर अपनी व्यवसायिक कालोनियाँ बना ली थीं"।
और आज भी ईसाई सभ्यता और इस्लामी सभ्यता के बीच या कहना चाहिये कि पूरब और पश्चिम के बीच आपसी फलप्रद बातचीत सिर्फ़ इतिहास के गहरे ज्ञान के बाद ही संभव है। यह मानना है तेओदोर शुमोव्स्की का। वे कहते हैं: "यूरोपियनों को यह नहीं भूलना चाहिये कि विश्व के सभी धर्मों, अंकों, अक्षरों आदि का जन्म पूर्व में ही हुआ। इन देशों में चिकित्सा और खगोल-विद्या का ज्ञान यूरोप से कई शताब्दी आगे था"। तेओदोर शुमोव्स्की के अनुसार अपने इतिहास को न जानना ही खतरनाक है। इसकी वज़ह से हम दूसरी संस्कृति का भी सम्मान नहीं करते। (hindi.ruvr.ru से साभार)


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