Sunday, 23 June 2013

किताबों के नए सुपर स्टॉर डैन ब्राउन की 'इंफर्नो'


शिवप्रसाद जोशी/अनवर जे अशरफ

इटली के मिलान शहर की सबसे बड़ी प्रकाशन कंपनी मोंडाडोरी (मालिक नेता और उद्योगपति सिल्वियो बैर्लुस्कोनी) की अत्यंत भव्य इमारत के अति सुरक्षित बेसमेंट में 11 लोग बैठे. फरवरी 2013 की किसी तारीख से. सुबहो-शाम. कड़ी निगरानी में कुछ लिखते, पन्ने पलटते और चौकन्ने होकर टहलते हुए. शाम होती तो पास के एक होटल पहुंचा दिए जाते. अपने अपने कमरों तक. अभेद्य निगरानी के बीच. अप्रैल में जब ये ड्रामा खत्म हुआ तो पता चला कि मशहूर लेखक डैन ब्राउन की नई किताब इंफर्नो का 11 भाषाओं में अनुवाद हो चुका है और 14 मई को मूल अंग्रेजी के अलावा समांतर तौर पर उन 11 भाषाओं में भी किताब रिलीज की जाएगी. वही हुआ. प्रकाशक और लेखक की सनक कह लीजिए या बाजार का वितंडा लेकिन यही सच है. खबरों के मुताबिक लगभग जेल जैसे हाइली कंट्रोल्ड माहौल में इस किताब का अनुवाद हुआ कि कहीं कोई एक अक्षर लीक न हो जाए. इस तरह एक बहुत नाटकीय और खुफिया और सामरिक से अंदाज में इंफर्नो सामने आ जाती है. अमेजन की सेल्स सूची में नंबर एक, बार्न्स और नोबेल की वेबसाइट पर नंबर एक, ईटोन्स में ऑडियो किताब नंबर एक. यानी अंग्रेजी उपन्यासों की दुनिया के नए सम्राट डैन ब्राउन को अपनी ताजा किताब का वैसा ही स्वागत मिला जैसा कि वो और उनके प्रकाशक चाहते थे. सोशल नेटवर्किंग दुनिया में तो तहलका मचा ही. ब्राउन के उपन्यास भले ही कितने घुमावदार, संकेतों और पहेली भरे हों, बाजार के गणित में वे फिट बैठते हैं. खुद को विज्ञान और विश्वास का सिपाही कहने वाले ब्राउन ने दांते की प्रसिद्ध कृति इंफर्नो से नरक की अवधारणा के सूत्र लिए हैं और जाहिर है किताब का टाइटिल भी. उनकी किताबों का बाजार मीडिया की कल्चरल स्टडीज के लिए रोचक बिंदु है. ब्राउन 90 के उसी दौर में प्रकट हुए जब भूमंडलीकरण की आंधी तीसरी दुनिया के विचार तंबुओं को उखाड़ने निकली ही थी और नए तंबू लगाए जा रहे थे. उपनिवेश की स्थापना के लिए सेना और शस्त्र की जरूरत नहीं रह गई थी. ये काम सांस्कृतिक उत्पादों के हवाले किया जा चुका था. किताबें ऐसा ही एक औजार थीं, ऐसी किताबें जो बाजार की शर्तों पर आती थीं और बिकती थीं और जिसके पूरी दुनिया में करोड़ों उपभोक्ता बन सकते थे. वे अब पाठक नहीं कहलाते थे.
ब्राउन इसी पाठक उपभोक्ता के लेखक बने और जमे हुए हैं. तेजी से एक बड़ी लेखक बिरादरी सामने आई है जो उपभोक्ताओं को रास आ रही है और ये ग्लोब्लाइजेशन के बाद ग्लोक्लाइजेशन के चरण को पूरा करने वाले लेखक हैं. मिसाल के लिए यहां हम भारत के नए लेखक अमीश त्रिपाठी का नाम ले सकते हैं. अमीश ने मिथकीय आख्यानों का सहारा लिया है, बड़ी ही पेशेवर चतुराई के साथ उन्होंने शिव को बाजार संदर्भों में ढाल दिया है. वे रिक रायोरडैन की एक कमजोर भारतीय नकल माने जा सकते हैं जिन्होंने अपने उपन्यासों में यूनानी मिथकों और देवताओं का इस्तेमाल किया है. करन जौहर जैसे बंबइया फिल्मों के चहकते फुदकते निर्माता निर्देशक ने अपने हिसाब से ठीक ही अमीश की शिव त्रयी को बॉलीवुड की लॉर्ड ऑफ द रिंग्स कह दिया है.
लेकिन लेखन और एक्शन मसाला सिनेमा के गठजोड़ के नए अलंबरदार तो डैन ब्राउन ही हैं. उनका लिखा दा विंची कोड उपन्यास अब एक सफल हॉलीवुड फिल्म है. और भी फिल्में हैं. और अब जल्द ही ब्राउन का पहेली बुझाऊ कुशाग्र प्रोफेसर इंफर्नो से निकलकर पर्दे पर आ जाएगा. इस तरह किताब का बाजार फिल्म के बाजार का न सिर्फ बैकग्राउंड बनेगा, बल्कि उसके लिए जरूरी संसाधन और जरूरतें और मांग भी उपलब्ध कराएगा. आज के दौर की यही कनेक्टिविटी है. जहां सब गोल गोल घूम रहे हैं. लेखक, उसकी किताब, उसके प्लॉट, उसका हीरो, फिल्म और उसका बाजार. दिलचस्प बात ये है कि एक तरफ ये पॉप्युलर राइटिंग है तो दूसरी ओर वो गंभीर लेखन भी है जो दुनिया भर के प्रतिष्ठित साहित्यिक पुरस्कारों में आता जाता है और नोबेल में जाकर अंततः जिसका बेड़ा पार होता है. ये कला भी बाजार की ही है कि नोबेल मिलने तक चीनी लेखक मो यान को जानने वाले बिरले ही थे लेकिन नोबेल मिलते ही मो यान हीरो बन गए और उनकी किताबों के अंग्रेजी अनुवाद धड़ाधड़ बिकने लगे. हम सब जानते हैं कि ब्राउन नोबेल पुरस्कार हासिल कर सकने वाले लेखकों की सूची में दूर दूर तक नहीं होंगे लेकिन रिकॉर्ड बिक्री और अपार मुनाफा कमाने वालों की दौड़ में वो इन दिनों अव्वल लेखकों की जमात में आते हैं. यानी बाजार अपने हिसाब से चलता है. जज भी वही है, मुंसिफ भी वही. वही सौंपता है और वही छीन लेता है. बाज दफा वो दोनों भूमिकाओं में एक साथ मौजूद रहता है. अंत में सारे लेखकीय करिश्मे धूल बनकर उसी में समा जाते हैं. असल में आप अगर ब्राउन की किताबों के जटिल संकेतों को एक एक कर फाश कर भी लें तो भी जहां ये किताब विराजमान है, यानी कि बाजार, उसकी पहेली को बूझना आसान नहीं. वहां किसी का सिक्का चलता है तो खूब चलता है और जब नहीं चलता तो उसे ऐसे भुला दिया जाता है जैसे वो कभी रहा ही न हो. वहां उगते सूरज को तो नमस्कार है ही, डूबते सूरज का भी खूब नमस्कार है, बशर्ते वो डूबता बाजार में हो. हैरी पॉटर और उनकी जन्मदाता जेके रोलिंग चंद साल पहले तक कैसी आंधियां उड़ा रहे थे. ट्वाइलाइट और उसके रक्तपिपासु नायक नायिका को ही लीजिए. अब उनका झुटपुटा वक्त आ गया है क्योंकि बाजार इन दिनों इंफर्नो की चपेट में है. इंफर्नो के मायने हैं एक नरक, एक नारकीय यातना या एक अत्यन्त भीषण आग. कुछ कुछ ब्राउन के अंदाज में, पिछली लाइन में आई संज्ञाओं की जगह अगर आप "बाजार" रख कर देखें तो पूरा चक्कर समझ सकते हैं.  

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