Friday, 19 December 2014

बात मोदी, मीडिया और मक्खी की / विजय विद्रोही

मीडिया पर हर नेता बरसता है, आजाद मीडिया हर दल की आंख में खटकता है। अगर राजनीतिक दलों का बस चले तो स्वतंत्र  मीडिया के काम में इतने अडंग़े लगा दें कि वह निष्पक्ष तरीके से काम नहीं कर सके। ये कुछ ऐसे बयान हैं जो हर मीडियाकर्मी देता है लेकिन इसके साथ ही एक सच्चाई यह भी है कि मीडिया निष्पक्ष नहीं रह गया है। बहुत आसानी से हम चैनलों और अखबारों की पहचान कर सकते हैं जो इस या उस दल की गोद में बैठे हैं या जो इस या उस नेता का साथ देते या विरोध करते हैं। कुल मिलाकर मीडिया के एक वर्ग में भी सत्ता के साथ खड़े रहने की ललक दिखाई देती है।
चलिए, अब बात की जाए मोदी मीडिया और मक्खी की। अब यह तो मोदी ही जानते हैं कि उन्होंने मीडिया पर तंज कसने के लिए मक्खी बनाम मधुमक्खी ही क्यों चुनी। यहां मोदी की राहुल गांधी से चुनने की सोच मिलती है। राहुल गांधी ने भारतीय जनमानस की तुलना मधुमक्खियों के एक ऐसे छत्ते से की थी जहां हर कोई अपना-अपना काम चुपचाप करता रहता है। तब इस तुलना की घोर आलोचना की गई थी। खैर, मोदी कहते हैं कि पत्रकारों को मक्खी नहीं होना चाहिए जो गंदगी पर बैठती है और गंदगी फैलाती है। पत्रकार को तो मधुमक्खी की तरह होना चाहिए जो शहद पर बैठती है और उसकी राह में आने वाले को डंक मारती है।
सवाल उठता है कि अगर हर कोई शहद पर ही बैठेगा तो गंदगी दूर कैसे होगी। पत्रकार का काम राजनीति, नेताओं और समाज में फैली गंदगी को दूर करना है। इसे उजागर करने के लिए पत्रकार को उन गंदे कोनों में झांकना पड़ता है, वहां पहुंच कर उसे खंगालना पड़ता है और फिर उस गंदे पक्ष को जनता के सामने रखना पड़ता है। कायदा तो यही है कि इतना भर करने के बाद पत्रकार की जिम्मेदारी खत्म हो जानी चाहिए और राजनीतिक व्यवस्था को या यूं कहा जाए कि शासन तंत्र को आगे आकर पत्रकार की तरफ से खोजी गई गंदगी को साफ करने का बीड़ा उठाना चाहिए लेकिन ऐसा होता नहीं है। उलटे समूची राजनीतिक व्यवस्था उस गंदगी से खुद को किनारा करते हुए पत्रकार को ही कटघरे में खड़ा करने की कोशिश करती है।
मोदी कहते हैं कि मधुमक्खी डंक भी मारती है लेकिन मधुमक्खी डंक कब मारती है? तब मारती है जब कोई शहद तक पहुंचने की कोशिश करता है, जब कोई शहद चुराने की कोशिश करता है, जब कोई शहद के छत्ते को ही तोडऩे की कोशिश करता है। अब ऐसी मधुमक्खी कौन पत्रकार बनना चाहेगा? हां, अगर सत्ता शहद नहीं है, अगर शहद आम जनता के दुख-दर्द दूर करने की दवा है और अगर वह शहद जनता के बीच नहीं बंट रहा है तो फिर पत्रकार को मधुमक्खी बन कर उन पर डंक मारना चाहिए जो शहद अपने में ही समेटे हुए हैं।
मोदी यहीं नहीं रुके, उन्होंने अपने अंदाज में चुटकी भी ली। कहा कि जैसे शुद्ध घी बेचने का दावा करने वाले पर शक होता है उसी तरह हर मीडिया वाला खुद को सच्ची खबरें परोसने वाला कहता है तो फिर सवाल खड़े होते हैं। अब मार्केटिंग करने का इतना तो अधिकार हर मीडिया हाउस को होना ही चाहिए। क्या मोदी वोट हासिल करने के लिए खुद को अन्य नेताओं से सच्चा, ईमानदार, प्रधान सेवक, चौकीदार नहीं कहते? क्या मोदी अपनी भाजपा को अन्य दलों से साफ-सुथरा और आदर्शवादी नहीं बताते?मोदी पहले प्रधानमंत्री नहीं हैं जिनके निशाने पर मीडिया आया हो।
श्रीमती इंदिरा गांधी ने आपातकाल के समय अखबारों और संपादकों, पत्रकारों का क्या हाल किया था, इसे कोई भूला नहीं है। यहां तक कि सौम्य मनमोहन सिंह ने भी एक बार मीडिया को विच हंटिंग से बचने की अपील की थी। वैसे मोदी को पत्रकारों की उस भूमिका से खुश ही होना चाहिए क्योंकि अगर तब मीडिया मक्खी नहीं बनता तो शायद मोदी की भी ताजपोशी नहीं होती। सरकार की नीतियों की आलोचना करना मीडिया का धर्म है लेकिन मोदी पर व्यक्तिगत छींटाकशी करने वाले लेखकों, चिंतकों पर अगर मोदी तंज कसते हैं तो इस पर मीडिया को बुरा-सा मुंह नहीं बनाना चाहिए।
मोदी ने कुछ समय पहले दीवाली मिलन समारोह के बहाने मीडिया मिलन की कोशिश की थी। उसके बाद वह कुछ संपादकों से अलग से भी मिले थे। यह हाल तब है जब ज्यादातर मीडिया मोदी की शान में पलक-पांवड़े बिछाए बैठा रहता है। आपस में कुछ नोक-झोंक हो तो बुराई नहीं, कुछ फिकरे दोनों तरफ से कसे जाएं तो भी ठीक ही है। हां, डर इस बात का है कि सत्ता बहुत दिनों तक अपनी आलोचना सहन नहीं कर सकती। सत्ता जब अपने पर उतरती है तो मक्खी पत्रकार और मधुमक्खी पत्रकार में फर्क करना शुरू कर देती है। शायद इसीलिए वरिष्ठ पत्रकार यही कहते हैं कि सत्ता से दो हाथ की दूरी बनी रहे तो बेहतर।
सच तो यह है कि सत्ता में जो भी हो वह यही चाहता है कि मीडिया एक ऐसी मधुमक्खी की तरह हो जिसे सत्ता का शहद बेहद पसंद हो और जिसका डंक नहीं हो। अब डंक कौन निकाल सकता है यह समझाने की जरूरत नहीं है। या फिर डंक तो हो लेकिन उसका असर शहदाना हो। वैसे सत्ताधारी की नजर में मीडिया की औकात मक्खी से ज्यादा नहीं होती है और उसकी दिली इच्छा तो यही रहती है कि वह मक्खी के भिनभिनाने (स्टोरी करके तंग करने) पर उसे एक रैपर मार कर हद से दूर कर दे या फिर काम तमाम कर दे। 

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