बच्चे देश का भविष्य हैं। लेकिन कड़वी सच्चाई यह है कि देश का भविष्य सुरक्षित नहीं है। आजादी के साढे छह दशकों के बाद भी देश के करोड़ों बच्चे मौलिक अधिकारों और बुनियादी सुविधाएं से वंचित हैं। लेकिन इस अहम् मुद्दे पर सरकारी मषीनरी, सिविल सोसायटी और मीडिया की चुप्पी हैरान करने वाली है। यदा-कदा ही मीडिया की नजर बाल अधिकारों से जुड़े मसलों पर पड़ती है। पिछले एक दशक में इलेक्ट्रानिक और प्रिंट मीडिया में प्रसारित और प्रकाषित खबरों का आकलन किया जाए तो बाल अधिकारों के हनन और संरक्षण से जुड़ी खबरें उंगुलियों पर गिनी जा सकती हैं। गैर सरकारी संगठनों और एनजीओ के प्रयासों से यदा-कदा बाल अधिकारों के हनन और ष्षो षण से जुड़ी खबरें छनकर बाहर आती हैं और ंअखबारों की सुर्खियां बनती हैं। लेकिन अपराध, राजनीति और सेक्स की खबरों और टीआरपी के फेर में दिन-रात खबरें सूंघने वाला मीडिया बाल अधिकारों के हनन और षोषण से जुड़ी खबरों से दूरी बनाये रहता है। बोरवेल में गिरे बच्चे के खबर से टीआरपी बटोरने और लाइव रिर्पोटिंग करने वाले न्यूज चैनलों को गली चौराहे के होटलों, ढाबों और दूसरे कार्यों में दिन-रात जुटे बाल मजदूर जब दिखाई नहीं देते हैं तो हैरानी होती है। असल में बाल अधिकार से जुड़े मुद्दों और मसलों की कार्मिषियल वैल्यु और टीआरपी नहीं है इसलिए मीडिया इस संवेदनषील और महत्वपूर्ण मुद्दे के प्रति अक्सर उदासीन ही दिखाई देता है।
बच्चे हमारा भविष्य हैं ऐसे में बच्चों के अधिकारों के संरक्षण से जुड़े मुद्दों और उनसे जुड़ी परेषानियों और समस्याओं को कौन लिखेगा, प्रकाषित और प्रसारित करेगा यह यक्ष प्रष्न है। बच्चों की आवाज को देष और दुनिया तक पहुंचाने की बड़ी जिम्मेदारी किसकी है और कौन इस जिम्मेदारी का निर्वहन करेगा। बाल अधिकारों के संरक्षण से जुड़े अहम् मसले को प्रदेष में बुलंद करने, उसके प्रति जागरूकता बढ़ाने और प्रदेष में बाल अधिकारों के संरक्षण की दिषा में चल रहे कार्यों और योजनाओं को मजबूत करने की दिषा में एक साझा मंच तैयार करने का बीड़ा उठाया है। बाल अधिकारों के संरक्षण के लिए बने इस मंच का नाम है उत्तर प्रदेष सिविल सोसायटी एलायंस फॉर चाइल्ड प्रोटेक्षन (यूपी-सीएसए)। पीजीवीएस के सचिव एवं यूपी-सीएसए के संयोजक डॉ. भानू के अनुसार, ‘प्रदेष में बाल अधिकारों के संरक्षण की दिषा में कई संगठन कार्य कर रहे हैं, बावजूद इसके समन्वित प्रयासों की जरूरत है।’ भारत सरकार की इंटीग्रेटिड चाइल्ड प्रोटेक्षन स्कीम (आईसीपीसी) में बाल अधिकारों के संरक्षण के लिए सिविल सोसायटी की भूमिका का उल्लेख है। इसी के मद्देनजर यूपी-सीएसए के बैनर तले एक कार्यषाला का अयोजन पिछले वर्ष सितंबर में बनारस में हुआ था। वाराणसी में तैयार रोड मैप को आगे बढ़ाते हुए आगामी 22 फरवरी को लखनऊ में राज्य स्तरीय एक दिवसीय वर्कषाप का आयोजन हो रहा है। जिसमें सरकारी मषीनरी के साथ बाल अधिकारों की दिषा में कार्यरत युनिसेफ, पीजीवीएस, सेव द चिल्ड्रन, क्राई, प्लान इण्डिया, आंगन, डीजीवीएस, एसआरएफ, एमएसके, एआईएम जैसी नामी संस्थाएं व सिविल सोसायटी के विभिन्न क्षेत्रांे के विषेषज्ञ हिस्सा ले रही हैं।
यूपी-सीएसए से जुड़े वरिष्ठ पत्रकार रजनीकांत वषिष्ठ के अनुसार, बाल अधिकारों से जुड़े मुद्दों को देष-दुनिया तक पहुंचाने के लिए इन मुद्दों के प्रकाषन और प्रसारण की कापफी जरूरत है। लेकिन दुर्भाग्यवष इलेक्ट्रानिक व प्रिंट मीडिया की रूटीन रिपोर्टिंग मेें ऐसी खबरों को स्थान नहीं मिल पाता है। वहीं गांवों व दूर-दराज के क्षेत्रों मंे मीडिया प्रतिनिधियों की पहुंच न होना भी एक बड़ा मुद्दा है ऐसे में यह विचार किया कि क्यों न बच्चों से ही बच्चों की बात लिखवाई जाए। इसी विचार से षुरू हुआ यंग जनरेषन मीडिया रिपोर्टर (वाईएमजीआर) का सफर।
डॉ. भानू के अनुसार, यंग जेनरेषन मीडिया रिपोर्टर एक संकल्पना है जिसमें पत्रकारिता के माध्यम से बच्चों को हमें उनके अधिकारों के प्रति सचेत करना होगा ताकि न सिर्फ वे अपनी नयी भूमिका को समझ सकें बल्कि उसे आत्मसात भी करें। डॉ. भानू बताते हैं कि, यंग जेनरेषन मीडिया रिपोर्टर जिन्हें हम आने वाले वक्त का जिम्मेदार पत्रकार मान सकते हैं, ऐसे बालकों को न सिर्फ पत्रकारिता के बुनियादी सिद्धांतों को बताने की जरूरत है बल्कि सिविल सोसाइटी एलायंस (सीएसओ), संयुक्त राष्ट्र बाल अधिकार अधिवेषन, इंटीग्रेटेड चाइल्ड प्रोटेक्षन स्कीम (आईसीपीएस), किषोर न्यायालय (जुवेनाइल जस्टिस), चाइल्ड लाइन के बारे में बताया जाना चाहिए। सैद्धांतिक रूप से भी हमें यह बात समझनी होगी कि एक बच्चा ही अपनी जरूरतों और अधिकारों के बारे में सबसे बेहतर तरीके से समझ सकता है।
रजनीकांत कहते हैं, इससे बेहतर और क्या होगा जब बच्चे खुद को बाल पत्रकार के रूप में समाज के सामने प्रस्तुत करते हुए अपनी तकलीफों का ही बयान नहीं करेगा बल्कि अपने सपनों की दुनिया से भी हमें परिचित भी करायेगा। उसके इस बदले हुए रूप को न सिर्फ उसके अभिभावक, समाज में बैठे लोग, सरकार के जिम्मेदार अधिकारी कौतूहल और जिज्ञासा के साथ देखेंगे बल्कि इस बदलाव के लिए उसकी पीठ भी थपथपायेंगे। इसे मीडिया, सरकारें, डेवलपमेंटल गतिविधियों से जुड़े लोग गंभीरता के साथ लेंगे और बाल अधिकारों के संरक्षण का अनुकूल एवं उत्साहवर्धक वातावरण बन सकेगा।
वाईएमजीआर की प्रथम दो दिवसीय मीडिया वर्कषाप का आयोजन पूर्वी उत्तर प्रदेष के जौनपुर जिले के बख्शा ब्लाक के औका गांव में पिछले साल 29 व 30 अगस्त को हुआ। इसमें जौनपुर जिले के तीन ब्लाक बख्शा, करंजीकला और बदलापुर के विभिन्न गांवों के लगभग 30 बच्चें व युवाओं ने इसमें हिस्सा लिया। जौनपुर की वाईएमजीआर वर्कषाप के बाद प्रदेष के सिद्वार्थनगर, महाराजगंज, देवरिया, गोरखपुर और बहराइच जिलों में वर्कषाप का आयोजन हो चुका है। वाईएमजीआर की मीडिया टीम से जुड़े वरिष्ठ पत्रकार प्रदीप उपाध्याय कहते हैं, ग्रामीण बच्चों की समझ कमाल की है भले ही वो पत्रकारिता की बारीकियों से बावस्ता नहीं है लेकिन मुद्दों और मसलों को समझने की शक्ति और संवेदनशीलता उनमें है। प्रदीप कहते हैं, आने वाले समय में बाल अधिकार से जुड़े विभिन्न मुद्दों पर युवा पत्रकार अपनी कलम चलाएंगे और बच्चों द्वार लिखित रिपोर्ट और विभिन्न समस्याओं को यूपी-सीएसए ‘युवा संदेश’ शीर्षक पत्र अथवा न्यूज लैटर के माध्यम से देश-दुनिया के सामने लाएगा।
पीजीवीएस के वरिष्ठ अधिकारी जीएन यादव कहते हैं, बच्चों के अधिकार महत्वपूर्ण हैं। हमें इन्हें गंभीरता से लेना होगा। यंग जेनरेषन मीडिया रिपोर्टर के जरिये हम इस दिषा में बेहतर पहल कर सकते हैं। हमें बच्चों को उनके कर्तव्यों, दायित्व बोध तथा अधिकारों के प्रति सजग करते हुए सतत प्रषिक्षण देना होगा। उनका षिक्षा, भोजन तथा आश्रय का अधिकार उन्हें हासिल हो सके इसके लिए अनुकूल माहौल बनाने के साथ बाल श्रम, मानव तस्करी, बाल विवाह, कुपोषण तथा षिक्षा प्राप्त करने के बेहद कम अवसर सरीखी जो चुनौतियां हैं उनसे भी निपटना होगा।
पीजीवीएस के चाइल्ड राइटस प्रोजेक्ट से जुड़े संदीप पाठक के अनुसार, वाईएमजीआर की वर्कषाप में बच्चों को बाल अधिकारों के बारे में बताया जाता है। इनमें जीने का अधिकार, सुरक्षा का अधिकार, विकास का अधिकार तथा सहभागिता का अधिकार षामिल है। वर्कषाप में बच्चों को इन अधिकारों के बारे में विस्तार से बताया जाता है। यह अपने आप में नया प्रयोग है जिसके उत्साहजनक नतीजे देखने को मिल रहे हैं। बाल अधिकारांे की जानकारी के बाद बच्चों को रिर्पोटिंग एवं मीडिया राइटिंग की बेसिक जानकारी दी जाती है।
वाईएमजीआर से जुड़े वरिष्ठ पत्रकार प्रदीप उपाध्याय के अनुसार, ‘बच्चे बाल अधिकारों के संरक्षण के बारे में तभी लिख पाएंगे जब उन्हें बाल अधिकारों के बारे में पता होगा।’ जौनपुर जिले के विकास खण्ड बख्शा के पिछड़े गांव नेवादा काजी की इंटर की छात्रा अन्तिमा भारती (15 वर्ष) गर्व से ख्ुाद को यंग जनरेषन मीडिया रिपोर्टर बताती है। बकौल अंतिमा, गांवों में बच्चों के अधिकारों का हनन आम बात है। मीडिया वर्कषाप के बाद मेरा आत्मविष्वास बढ़ा है। मुझे लगता है अब हमारी आवाज देष और दुनिया तक जरूर पहुंचेगी। जौनपुर जिले के गांव मुरादपुर कोटिला के षषिकांत कहते हैं, वाईएमजीआर बच्चों और युवाओं की आवाज बनकर उभरेगा, अब हमारी बात कोई दबा नहीं पाएगा। डॉ. भानू बताते हैं कि, बच्चों में इस बात का उत्साह है कि उनका लिखेगा छपेगा और दुनिया उसे पढ़ेगी। हमारे व बच्चों दोनों के लिए ये नया व अनूठा प्रयोग है।
जिला बाराबंकी के गांव उदवतपुर, के सातवीं कक्षा के छात्र आषीष कुमार वर्मा के अनुसार, बच्चों की बातें कोई लिखना नहीं चाहता है। अब हमारे लिए वाईएमजीआर को मंच है। हम अपनी और अपने आस-पास के बच्चों के अधिकारों के हनन से जुड़ी बातों को लिखेंगे जिसे दुनिया पढ़ेगी। सेंट जोसेफ स्कूल, उसका बाजार, सिद्वार्थनगर की आठवीं कक्षा की छात्रा प्रिया पाण्डेय कहती है, बच्चों की बात बच्चों से बेहतर कौन समझ और लिख सकता है, अब हम लिखेंगे और उम्मीद है कि बच्चों की दुनिया बदलेगी। महाराजगंज के जीएसवीएस इंटर कालेज की ग्यारहवी की छात्रा प्रतिभा प्रजापति कहती है कि, अखबारों और न्यूज चैनलों में बच्चों से जुड़ी खबरें छापी और दिखाई जाती है उनमें अपराध की घटनाएं ज्यादा होती है लेकिन बाल अधिकारों की बात नहीं होती है। वाईएमजीआर के माध्यम से जब बच्चे अपनी बात खुद लिखेंगे तो मीडिया भी इन मुद्दों की संवेदनषीलता को समझेगा।
डॉ. भानू के अनुसार, यूपी-सीएसए के दिषा-निर्देषन में होने वाली इन मीडिया वर्कषाप में कई स्थानीय संस्थाएं नवोन्मेष, महिला प्रषिक्षण सेवा संस्थान, सम्मान विकास समिति, मानवोदय विद्यालय, जीवनधारा मार्गदर्षन सोसायटी सहभागी हैं। फिलहाल जौनपुर, सिद्वार्थनगर, महाराजगंज, देवरिया, गोरखपुर और बहराइच छह जिलों में वाईएमजीआर वर्कषाप का आयोजन किया गया है। भविष्य में प्रदेष भर में ऐसी मीडिया वर्कषाप के आयोजन की तैयारी की जा रही है। प्रदेष में अपने तरह का यह प्रथम अनूठा प्रयोग है, उम्मीद की जानी चाहिए कि इस प्रयोग के सकारात्मक परिणाम भविष्य में देखने को मिलेंगे।
बच्चे हमारा भविष्य हैं ऐसे में बच्चों के अधिकारों के संरक्षण से जुड़े मुद्दों और उनसे जुड़ी परेषानियों और समस्याओं को कौन लिखेगा, प्रकाषित और प्रसारित करेगा यह यक्ष प्रष्न है। बच्चों की आवाज को देष और दुनिया तक पहुंचाने की बड़ी जिम्मेदारी किसकी है और कौन इस जिम्मेदारी का निर्वहन करेगा। बाल अधिकारों के संरक्षण से जुड़े अहम् मसले को प्रदेष में बुलंद करने, उसके प्रति जागरूकता बढ़ाने और प्रदेष में बाल अधिकारों के संरक्षण की दिषा में चल रहे कार्यों और योजनाओं को मजबूत करने की दिषा में एक साझा मंच तैयार करने का बीड़ा उठाया है। बाल अधिकारों के संरक्षण के लिए बने इस मंच का नाम है उत्तर प्रदेष सिविल सोसायटी एलायंस फॉर चाइल्ड प्रोटेक्षन (यूपी-सीएसए)। पीजीवीएस के सचिव एवं यूपी-सीएसए के संयोजक डॉ. भानू के अनुसार, ‘प्रदेष में बाल अधिकारों के संरक्षण की दिषा में कई संगठन कार्य कर रहे हैं, बावजूद इसके समन्वित प्रयासों की जरूरत है।’ भारत सरकार की इंटीग्रेटिड चाइल्ड प्रोटेक्षन स्कीम (आईसीपीसी) में बाल अधिकारों के संरक्षण के लिए सिविल सोसायटी की भूमिका का उल्लेख है। इसी के मद्देनजर यूपी-सीएसए के बैनर तले एक कार्यषाला का अयोजन पिछले वर्ष सितंबर में बनारस में हुआ था। वाराणसी में तैयार रोड मैप को आगे बढ़ाते हुए आगामी 22 फरवरी को लखनऊ में राज्य स्तरीय एक दिवसीय वर्कषाप का आयोजन हो रहा है। जिसमें सरकारी मषीनरी के साथ बाल अधिकारों की दिषा में कार्यरत युनिसेफ, पीजीवीएस, सेव द चिल्ड्रन, क्राई, प्लान इण्डिया, आंगन, डीजीवीएस, एसआरएफ, एमएसके, एआईएम जैसी नामी संस्थाएं व सिविल सोसायटी के विभिन्न क्षेत्रांे के विषेषज्ञ हिस्सा ले रही हैं।
यूपी-सीएसए से जुड़े वरिष्ठ पत्रकार रजनीकांत वषिष्ठ के अनुसार, बाल अधिकारों से जुड़े मुद्दों को देष-दुनिया तक पहुंचाने के लिए इन मुद्दों के प्रकाषन और प्रसारण की कापफी जरूरत है। लेकिन दुर्भाग्यवष इलेक्ट्रानिक व प्रिंट मीडिया की रूटीन रिपोर्टिंग मेें ऐसी खबरों को स्थान नहीं मिल पाता है। वहीं गांवों व दूर-दराज के क्षेत्रों मंे मीडिया प्रतिनिधियों की पहुंच न होना भी एक बड़ा मुद्दा है ऐसे में यह विचार किया कि क्यों न बच्चों से ही बच्चों की बात लिखवाई जाए। इसी विचार से षुरू हुआ यंग जनरेषन मीडिया रिपोर्टर (वाईएमजीआर) का सफर।
डॉ. भानू के अनुसार, यंग जेनरेषन मीडिया रिपोर्टर एक संकल्पना है जिसमें पत्रकारिता के माध्यम से बच्चों को हमें उनके अधिकारों के प्रति सचेत करना होगा ताकि न सिर्फ वे अपनी नयी भूमिका को समझ सकें बल्कि उसे आत्मसात भी करें। डॉ. भानू बताते हैं कि, यंग जेनरेषन मीडिया रिपोर्टर जिन्हें हम आने वाले वक्त का जिम्मेदार पत्रकार मान सकते हैं, ऐसे बालकों को न सिर्फ पत्रकारिता के बुनियादी सिद्धांतों को बताने की जरूरत है बल्कि सिविल सोसाइटी एलायंस (सीएसओ), संयुक्त राष्ट्र बाल अधिकार अधिवेषन, इंटीग्रेटेड चाइल्ड प्रोटेक्षन स्कीम (आईसीपीएस), किषोर न्यायालय (जुवेनाइल जस्टिस), चाइल्ड लाइन के बारे में बताया जाना चाहिए। सैद्धांतिक रूप से भी हमें यह बात समझनी होगी कि एक बच्चा ही अपनी जरूरतों और अधिकारों के बारे में सबसे बेहतर तरीके से समझ सकता है।
रजनीकांत कहते हैं, इससे बेहतर और क्या होगा जब बच्चे खुद को बाल पत्रकार के रूप में समाज के सामने प्रस्तुत करते हुए अपनी तकलीफों का ही बयान नहीं करेगा बल्कि अपने सपनों की दुनिया से भी हमें परिचित भी करायेगा। उसके इस बदले हुए रूप को न सिर्फ उसके अभिभावक, समाज में बैठे लोग, सरकार के जिम्मेदार अधिकारी कौतूहल और जिज्ञासा के साथ देखेंगे बल्कि इस बदलाव के लिए उसकी पीठ भी थपथपायेंगे। इसे मीडिया, सरकारें, डेवलपमेंटल गतिविधियों से जुड़े लोग गंभीरता के साथ लेंगे और बाल अधिकारों के संरक्षण का अनुकूल एवं उत्साहवर्धक वातावरण बन सकेगा।
वाईएमजीआर की प्रथम दो दिवसीय मीडिया वर्कषाप का आयोजन पूर्वी उत्तर प्रदेष के जौनपुर जिले के बख्शा ब्लाक के औका गांव में पिछले साल 29 व 30 अगस्त को हुआ। इसमें जौनपुर जिले के तीन ब्लाक बख्शा, करंजीकला और बदलापुर के विभिन्न गांवों के लगभग 30 बच्चें व युवाओं ने इसमें हिस्सा लिया। जौनपुर की वाईएमजीआर वर्कषाप के बाद प्रदेष के सिद्वार्थनगर, महाराजगंज, देवरिया, गोरखपुर और बहराइच जिलों में वर्कषाप का आयोजन हो चुका है। वाईएमजीआर की मीडिया टीम से जुड़े वरिष्ठ पत्रकार प्रदीप उपाध्याय कहते हैं, ग्रामीण बच्चों की समझ कमाल की है भले ही वो पत्रकारिता की बारीकियों से बावस्ता नहीं है लेकिन मुद्दों और मसलों को समझने की शक्ति और संवेदनशीलता उनमें है। प्रदीप कहते हैं, आने वाले समय में बाल अधिकार से जुड़े विभिन्न मुद्दों पर युवा पत्रकार अपनी कलम चलाएंगे और बच्चों द्वार लिखित रिपोर्ट और विभिन्न समस्याओं को यूपी-सीएसए ‘युवा संदेश’ शीर्षक पत्र अथवा न्यूज लैटर के माध्यम से देश-दुनिया के सामने लाएगा।
पीजीवीएस के वरिष्ठ अधिकारी जीएन यादव कहते हैं, बच्चों के अधिकार महत्वपूर्ण हैं। हमें इन्हें गंभीरता से लेना होगा। यंग जेनरेषन मीडिया रिपोर्टर के जरिये हम इस दिषा में बेहतर पहल कर सकते हैं। हमें बच्चों को उनके कर्तव्यों, दायित्व बोध तथा अधिकारों के प्रति सजग करते हुए सतत प्रषिक्षण देना होगा। उनका षिक्षा, भोजन तथा आश्रय का अधिकार उन्हें हासिल हो सके इसके लिए अनुकूल माहौल बनाने के साथ बाल श्रम, मानव तस्करी, बाल विवाह, कुपोषण तथा षिक्षा प्राप्त करने के बेहद कम अवसर सरीखी जो चुनौतियां हैं उनसे भी निपटना होगा।
पीजीवीएस के चाइल्ड राइटस प्रोजेक्ट से जुड़े संदीप पाठक के अनुसार, वाईएमजीआर की वर्कषाप में बच्चों को बाल अधिकारों के बारे में बताया जाता है। इनमें जीने का अधिकार, सुरक्षा का अधिकार, विकास का अधिकार तथा सहभागिता का अधिकार षामिल है। वर्कषाप में बच्चों को इन अधिकारों के बारे में विस्तार से बताया जाता है। यह अपने आप में नया प्रयोग है जिसके उत्साहजनक नतीजे देखने को मिल रहे हैं। बाल अधिकारांे की जानकारी के बाद बच्चों को रिर्पोटिंग एवं मीडिया राइटिंग की बेसिक जानकारी दी जाती है।
वाईएमजीआर से जुड़े वरिष्ठ पत्रकार प्रदीप उपाध्याय के अनुसार, ‘बच्चे बाल अधिकारों के संरक्षण के बारे में तभी लिख पाएंगे जब उन्हें बाल अधिकारों के बारे में पता होगा।’ जौनपुर जिले के विकास खण्ड बख्शा के पिछड़े गांव नेवादा काजी की इंटर की छात्रा अन्तिमा भारती (15 वर्ष) गर्व से ख्ुाद को यंग जनरेषन मीडिया रिपोर्टर बताती है। बकौल अंतिमा, गांवों में बच्चों के अधिकारों का हनन आम बात है। मीडिया वर्कषाप के बाद मेरा आत्मविष्वास बढ़ा है। मुझे लगता है अब हमारी आवाज देष और दुनिया तक जरूर पहुंचेगी। जौनपुर जिले के गांव मुरादपुर कोटिला के षषिकांत कहते हैं, वाईएमजीआर बच्चों और युवाओं की आवाज बनकर उभरेगा, अब हमारी बात कोई दबा नहीं पाएगा। डॉ. भानू बताते हैं कि, बच्चों में इस बात का उत्साह है कि उनका लिखेगा छपेगा और दुनिया उसे पढ़ेगी। हमारे व बच्चों दोनों के लिए ये नया व अनूठा प्रयोग है।
जिला बाराबंकी के गांव उदवतपुर, के सातवीं कक्षा के छात्र आषीष कुमार वर्मा के अनुसार, बच्चों की बातें कोई लिखना नहीं चाहता है। अब हमारे लिए वाईएमजीआर को मंच है। हम अपनी और अपने आस-पास के बच्चों के अधिकारों के हनन से जुड़ी बातों को लिखेंगे जिसे दुनिया पढ़ेगी। सेंट जोसेफ स्कूल, उसका बाजार, सिद्वार्थनगर की आठवीं कक्षा की छात्रा प्रिया पाण्डेय कहती है, बच्चों की बात बच्चों से बेहतर कौन समझ और लिख सकता है, अब हम लिखेंगे और उम्मीद है कि बच्चों की दुनिया बदलेगी। महाराजगंज के जीएसवीएस इंटर कालेज की ग्यारहवी की छात्रा प्रतिभा प्रजापति कहती है कि, अखबारों और न्यूज चैनलों में बच्चों से जुड़ी खबरें छापी और दिखाई जाती है उनमें अपराध की घटनाएं ज्यादा होती है लेकिन बाल अधिकारों की बात नहीं होती है। वाईएमजीआर के माध्यम से जब बच्चे अपनी बात खुद लिखेंगे तो मीडिया भी इन मुद्दों की संवेदनषीलता को समझेगा।
डॉ. भानू के अनुसार, यूपी-सीएसए के दिषा-निर्देषन में होने वाली इन मीडिया वर्कषाप में कई स्थानीय संस्थाएं नवोन्मेष, महिला प्रषिक्षण सेवा संस्थान, सम्मान विकास समिति, मानवोदय विद्यालय, जीवनधारा मार्गदर्षन सोसायटी सहभागी हैं। फिलहाल जौनपुर, सिद्वार्थनगर, महाराजगंज, देवरिया, गोरखपुर और बहराइच छह जिलों में वाईएमजीआर वर्कषाप का आयोजन किया गया है। भविष्य में प्रदेष भर में ऐसी मीडिया वर्कषाप के आयोजन की तैयारी की जा रही है। प्रदेष में अपने तरह का यह प्रथम अनूठा प्रयोग है, उम्मीद की जानी चाहिए कि इस प्रयोग के सकारात्मक परिणाम भविष्य में देखने को मिलेंगे।
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