Wednesday, 12 November 2014

जग के सब दुखियारे रस्ते मेरे हैं

मैं समस्त सुबहों-शामों में शामिल हूं, 
मैं जन-मन के संग्रामों में शामिल हूं
मैं तरु की पत्ती-पत्ती पर चहक रहा, 
मैं रोटी की लौ में निश-दिन लहक रहा
मैं जन के रंग में, मन की रंगोली में, 
मैं बच्चे-बच्चे की मीठी बोली में 
आंखों के ये तारे रस्ते मेरे हैं, 
खुशियों के ये सारे रस्ते मेरे हैं, 
जग के सब दुखियारे रस्ते मेरे हैं......

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