Wednesday, 26 November 2014

जयंती रंगनाथन की कहानी गीली छतरी

कल की तरह आज भी वो रेस्तरां के कोने वाली सीट पर बैठा था। सुनहरे लंबे बाल। लगता है आज उसने शैंपू कर रखा था। सुबह की रोशनी में उसके बाल चमक रहे थे। नीले रंग की ढीली सी चैक वाली कमीज और कंधे पर टिका जयपुरी झोला।
उसके सामने वही कल वाली बच्ची बैठी थी। दोनों हाथों से बड़ा सा सैंडविच खाने की कोशिश करती हुई।
कल रिंकी ने ही मुझे टो
क कर कहा था,‘ममा, वहां देखो...’
हम दोनों को वह फिरंगी मजेदार लगा। सामने बैठी बच्ची देसी थी। काले-भूरे बेतरतीब खुले बाल। सुबह के समय भी आंखों में धूप का चश्मा लगाए। लाल रंग की छींट वाली सलवार-कमीज में वह अपनी उम्र से बड़ी लग रही थी। वह कचर-कचर कचौड़ी खा रही थी और फिरंग सलीके से चीज ऑमलेट खा रहा था।
रिंकी के साथ अकेली इस तरह घूमने पहली बार घर से निकली थी। इससे पहले जब भी बाहर गए, अशोक हमारे साथ रहे। अशोक को हमेशा जल्दी मची रहती थी। वह दस मिनट चैन से नाश्ता करने नहीं देता, हमारे पीछे पड़ जाता कि तुम दोनों मां-बेटी घूमने आई हो या आराम से बैठ कर खाने-पीने? यहां से निकलोगी तो कहीं लंच करने बैठ जाओगी। घूमोगी कब?
लेकिन हम दोनों तो ऐसे ही थे। आराम से एक जगह रुक कर, सुकून से उस क्षण को जीने में मजा आता था। हम दोनों बटर टोस्ट के साथ चाय पर चाय पीते रहे और फिरंगी और उस बच्ची को कौतुहल से देखते रहे। रिंकी ने कहा, ‘वो एक लेखक होगा और कहानी लिखने के लिए यहां आया होगा। वो ही लोग तो होते हैं ना थोड़े से झक्की। वरना वह उस बच्ची को यहां क्यों ले कर आता नाश्ता खिलाने?’
रिंकी की बात में दम था। सोलह साल की मेरी बेटी समय से पहले परिपक्व हो चली थी।
बच्ची ने टोस्ट खाए, बड़े वाले गिलास में मिल्क शेक पिया। इस बीच मैंने और रिंकी ने कटलेट्स मंगवा लिए। रिंकी का भी मन मिल्क शेक पीने को हो आया।
इस बीच फिरंगी उठ गया। बच्ची शायद अभी भी कुछ खाना चाहती थी। रिंकी ने फिर से मुझे टहोका, ‘देखो मम्मा, बिल कौन दे रहा है?’
काउंटर पर वह बारह-तेरह साल की लडक़ी अपने पर्स से पैसे निकाल रही थी। पांच सौ के कई सारे नोट थे उसके पास।
वे दोनों चले गए। हम दोनों कहानियां बुनने लगे कि कौन होगी यह बच्ची?
इसके बाद हम दोनों होटल के अपने कमरे में आ गए। रिंकी का मन कहीं जाने का नहीं था। लंच भी हमने अपने कमरे में किया। शाम को घूमने निकले। हलकी बूंदा-बांदी हो रही थी। पहाड़ी सडक़ों की ढलानों पर घूमने में रिंकी को मजा आ रहा था। और उसके खुश होते देखने में मुझे।
पिछले साल इन दिनों। लगा नहीं था कि रिंकी फिर कभी सामान्य हो पाएगी। पंद्रह साल की नहीं हुई थी। अशोक के परिवार में शादी थी। बुआ की बेटी आशी की। रिंकी उत्साहित थी। वह आशी के आगे-पीछे लगी रहती। शादी के एक सप्ताह पहले वह आशी के साथ रहने चली गई। इससे पहले भी उसने एक-दो दिन वहां बिताए थे।
पर उस सुबह जब वह घर आई, तो कुछ भी सही नहीं था। रात आशी अपनी सहेलियों के साथ कैट पार्टी में मस्त थी और रिंकी बारह बजे के बाद सोने चली गई। उसी कमरे में आशी के पिताजी आए। उनसे हमेशा से डर लगता था। उनकी लाल आंखें और घनी मूंछें भयानक लगती थी। मुझे भी। मेरी बेटी चिल्ला नहीं पाई। डर गई जब उनकी मूंछों से निकलते लपलपाते होंठों ने उसे छुआ। उस दानव के शरीर के नीचे दबी मेरी गुडिय़ा ने अपने पूरे शरीर पर उन घिनौनी उंगलियों को बर्दाश्त किया।
सुबह-सुबह बिना किसी को बताए रिक्शा ले कर घर चली आई थी रिंकी। आंखों में आंसू। सहमा सा चेहरा। उसे देख कर मैं चौंकी, फिर हिल गई। अशोक भी घर पर थे। अशोक का रवैया अलग था--वे इस बात से चौकन्ने और कहीं से संतुष्ट लगे कि उनकी बेटी के साथ बलात्कार नहीं हुआ। जो हुआ, उसके बाद अशोक का यह रवैया मुझे ज्यादा रुला गया।
रिंकी जैसे मुझे सबकुछ बता कर उस घटना से अलग हो गई। बस उस दिन से उसका अशोक के साथ रिश्ता बदल गया। मैंने घर में शोर मचाया, परिवार वालों को बुलाया, पुलिस में शिकायत की। आश्चर्य था कि इन सबमें अशोक कहीं पीछे छूटते चले गए। वे बेशक आशी की शादी में नहीं गए, पर परिवार के दूसरे सदस्यों की तरह दबी जुबान में यह तो कह ही दिया कि हम मां-बेटी छोटी सी बात को बेवजह बड़ा कर रहे हैं।
रिंकी धीरे-धीरे सामान्य हो गई। मेरे अशोक से अलग होने के बाद ज्यादा। इस ट्रिप की योजना भी उसने ही बनाई थी। वह ट्रेन में सफर करना चाहती थी। मेरे साथ बहुत कुछ बांटना चाहती थी। कल रात जब हम बारिश में भीग कर कमरे में लौटे, तो उसने केतली में पानी गर्म कर मुझे चाय बना कर पिलाया। खाना खाने हम रेस्तरां गए। मैंने वाइन पी। उसके इसरार करने पर एक घूंट उसे भी पीने को दी। उसने एकदम से मुंह बनाया, ‘यक मॉम। इसमें एेसा क्या है? आप इतना शौक से कैसे पीते हो?’ हमने पास्ता खाया, काफी पी। फिर थोड़ा टहलने के बाद लौटे। वह चुप थी, लेकिन खुश लग रही थी। कमरे में आ कर उसने कपड़े बदले। शॉर्ट्स और टी शर्ट पहन कर मुझसे चिपट कर लेट गई, ‘मम्मा, जिंदगी एेसी ही रहे तो अच्छा हो ना। हमारे आसपास कोई गलत आदमी ना हो।’
उसके सोने तक मैं जागती रही। समझ नहीं आया कि अपनी बेटी को गलत आदमियों से कैसे बचा कर रखूं? उसे अपने लिए नहीं, दूसरों के लिए भी एेसी ही दुनिया चाहिए थी।

‘मैं आज पता करके ही रहूंगी, कौन है ये लडक़ी? देखो ममा। वो तो फिरंगी के गिलास से काफी पी रही है। कहीं ये फिरंगी उसका डैड तो नहीं?’ कहने के बाद रिंकी खुद हंसने लगी, ‘यह उसका पापा हो ही नहीं सकता। कितनी अजीब लग रही है ना वो लडक़ी? टाइट्स पहन रखा है और माथे पर इतनी बड़ी बिंदी।’
मैंने इशारे से वेटर को बुलाया, आर्डर देने। रिंकी चुप नहीं रह सकी, ‘भैया, ये फॉरिनेर जो आगे बैठे हैं, कौन हैं?’
वेटर ने सिर हिलाया, ‘पता नहीं, एेसे तो भतेरे आते हैं यहां।’
रिंकी चुप हो गई। पर उसका पूरा ध्यान उस बच्ची पर था। सैंडविच खा चुकी थी। शायद वह कुछ और खाना चाहती थी। फिरंगी उठ गया। काउंटर पर पैसे दे कर वह तेजी से आगे जाने लगा। लडक़ी ने रेस्तरां के दरवाजे पर पहुंच कर उसे रोकना चाहा।  आदमी ने उसे धक्का दिया और बाहर निकल गया। दरवाजे का हत्था लडक़ी के सिर पर लग गया, वह जमीन पर बैठ गई और जोर-जोर से रोने लगी।
रिंकी फौरन अपनी जगह से उठी और दौड़ती हुई उस लडक़ी के पास पहुंच गई। लडक़ी के माथे पर चोट लग गई थी। रिंकी ने वेटर से टिश्यू मंगवाया। देखते ही देखते वहां छोटी-मोटी भीड़ इकट्टा हो गई। मैं दूर से देख रही थी कि किस तरह रिंकी लडक़ी की मदद कर रही है। आंसू पोंछ रही है, गुस्से में कह रही है कि उस आदमी को कोई हक नहीं पहुंचता कि एक बच्ची के साथ एेसा व्यवहार करे।
रिंकी ने लडक़ी को उठाया और धीरे से उसे मेरे पास ले आई। उसे अपनी बगल की कुर्सी पर बिठा कर उसने प्यार से पूछा, ‘कुछ और खाओगी तुम? बताओ? कटलेट? फिंगर चिप्स? बर्गर?’
लडक़ी की आंखें चमक उठीं। रिंकी ने फौरन उसके लिए बर्गर मंगवाया।
पास से लडक़ी और भी छोटी लग रही थी। गोल चेहरे पर बड़ी सी नथनी अजीब लग रही थी। रिंकी ने उसका नाम पूछा। बड़ी मुश्किल से उसने बताया--मल्लिका।
बर्गर आया। मल्लिका ने दोनों हाथ में भींच कर खाने की कोशिश की। दो कौर खाया, फिर मुंह बना कर बोली, ‘जूस पिला दो।’
रिंकी ने कहा, ‘पहले बर्गर तो खत्म करो।’
मल्लिका अचानक ऊंची आवाज में रोने लगी, ‘मुझे नहीं खाना। मुझे जूस पीना है।’
मैंने रिंकी का हाथ दबाया और उसके लिए जूस मंगवाया। एक घूंट पीने के बाद मल्लिका उठ गई। रिंकी ने रोकने की कोशिश की, पर वह दौड़ती हुई बाहर निकल गई।
मैं और रिंकी हक्के-बक्के रह गए। कुछ देर तक तो हम दोनों के मुंह से कोई बात ही नहीं निकली।
बिल दे कर हम दोनों रेस्तरां से बाहर निकले। सडक़ के किनारे एक सिगरेट की दुकान के सामने फिरंगी दिख गया। रिंकी ने कहा, ‘मम्मा, देखो, कितने आराम से यहां खड़ा है मल्लिका को मारने के बाद। देखो ना मां, एकदम फूफा जी की तरह लग रहा है। मेरा मन कर रहा है कि मैं डंडे से इसे जोर से पीटूं।’
रिंकी उत्तेजित होने लगी थी। मैंने उसका हाथ पकड़ लिया। इस समय तो मुझे उस फिरंगी के साथ-साथ मल्लिका का भी रवैया अजीब लग रहा था। गरीब बच्ची, जिसे खाने की हवस है, पर पेट में जगह नहीं है। पता नहीं, किसकी बच्ची है? इसके साथ क्यों घूम रही है?
दया हो आई बच्ची पर। स्कूल जाने की उम्र में कहां मारी-मारी फिर रही है? कौन हैं इसके माता-पिता?
हम अपने होटल की तरफ बढ़ ही रहे थे कि सामने से दौड़ती हुई मल्लिका आई और फिरंगी से जा कर लिपट गई। फिरंगी ने उसे चांटा मारा।
रिंकी जोर से चीखी, ‘मां, उस आदमी को छोडऩा मत।’ मैं रुक नहीं पाई। मैं आगे, रिंकी पीछे। मैंने दूर से ही चिल्ला कर कहा, ‘ए, लडक़ी को हाथ मत लगाना। आइ विल कॉल पुलिस।’
फिरंगी सहमा फिर कुछ अकड़ कर बोला, ‘हू आर यू? कॉल एनिबडी। आइएम नॉट स्केर्ड। शी इज माइ वाइफ। आइ कैन डू वाटेवर आई वांट।’
मैं सन्न रह गई। सिगरेट के खोमचे वाले ने कहा, ‘मैडम जी, आप भी किस पंगे में फंस रही हैं? ये तो इनका रोज का चक्कर है। अभी मार-पीट करेंगे, दूजे मिनट लडक़ी इसकी गोद में जा बैठेगी।’
मेरी आवाज थरथरा रही थी,‘लेकिन इसने कहा कि यह बच्ची इसकी ब्याहता है।’
‘हां, तो कर ली होगी शादी। इसके मां-बाप तो हर साल अपनी सभी बेटियों की ना जाने कित्ती बार शादी करते हैं। उन्हें चार पैसे मिल जाते हैं और चार दिन इन बच्चियों के खा-पी कर गुजर जाते हैं।’
‘पर यह लडक़ी तो बारह-तेरह साल की लगती है।’
‘अरे मैडम। आप भी ना? बच्ची से उसकी उम्र पूछो तो अठारह बताएगी। ’
‘इसके बाद?’
‘अरे, ये फिरंगी इधर हमेशा थोड़े ही रहते हैं? चार-छह महीने बाद अपने वतन लौट जाते हैं।’
मुझे लगा कि मैं चक्कर खा कर गिर जाऊंगी। रिंकी कुछ समझ नहीं पा रही थी। उसने मल्लिका का हाथ पकडऩा चाहा, पर उसने झटक दिया और फिरंगी के कंधे पर सवार हो कर चलने लगी।
अबकि दुकान वाले ने कुछ नरमी से कहा, ‘आप लोग टूरिस्ट हो। आराम से दो-चार दिन यहां गुजार कर जाओ। पहाड़ देखो, झरने देखो, सन सेट पाइंट देखो।’ मैं किसी तरह अपने को संभाल कर आगे बढ़ी। रिंकी लगातार मुझसे पूछ रही थी, ‘मम्मा क्या हुआ बताओ ना?’ मैं उसे क्या जवाब देती? कैसे कहती उससे कि इस दुनिया में हर कहीं ‘गलत आदमी’ हैं। उनकी गिरफ्त में मासूम रिंकिंया और मल्लिकाएं आती रहती हैं। कभी-कभी तो उन्हें जन्म देने वाले को भी उनकी परवाह नहीं होती। मल्लिका का मासूमियम भरा दोनों हाथों से बर्गर खाने वाला चेहरा मेरे आगे घूम गया। उसकी चमकती आंखें जैसे मुझसे सवाल कर रही थीं। और मैंने अपने दुपट्टे से अपनी बेटी को ढक कर अपने करीब कर लिया।

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