कार्ल सैगन
किताब कितनी अनोखी चीज़ है। यह पेड़ से बनी और लचीले हिस्सों वाली एक सपाट सी वस्तु है जिस पर रेंगने से बनी गहरी रेखाओं की तरह कुछ अजीबोगरीब छपा होता है। परन्तु बस एक नज़र डालने की देर है और आप एक दूसरे व्यक्ति के दिमाग में चले जाते हैं, भले ही वह व्यक्ति हज़ारों साल पहले ही चल बसा हो। सहस्त्राब्दियों के फासले के बावजूद, लेखक आपके मस्तिष्क से स्पष्ट और गुपचुप तरीके से बाते कर रहा होता है, वह सीधे आप से बातें कर रहा होता है। लेखन शायद मनुष्य का महानतम आविष्कार है जो ऐसे एक दूसरे से अनजान दो भिन्न युगों में रहने वाले नागरिकों को एक डोर से बांध देता है। किताबें समय की बेड़ियों को तोड़ देती हैं। किताब एक ज़िन्दा सबूत है कि मनुष्य जादू करने में सक्षम है। (लखनऊ के राष्ट्रीय पुस्तक मेले में 'मीडिया हूं मैं' भी उपलब्ध)
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