हर ओर जब भ्रष्टाचार और स्वार्थ का शोर सुनाई दे रहा हो और हर दूसरी खबर किसी काले कारनामे से जुड़ी हो. ऐसे माहौल में इस किताब का हाथ में आना वाकई किसी सुखद एहसास से कम नहीं है. इसे पढऩे के बाद कहा जा सकता है कि उम्मीद अभी बाकी है. स्टे हंगरी स्टे फुलिश और करेक्ट द डॉट जैसी बेस्टसेलर किताबें लिखने वाली रश्मि बंसल की यह किताब उम्मीदें जगाने वाले 20 लोगों से रू-ब-रू कराती है. ये वे लोग हैं जिन्होंने सवा सौ करोड़ अन्य भारतीयों के विपरीत अपने कंफर्ट जोन से आगे बढ़कर कुछ करने की ठानी है. ये ऐसे 20 सामाजिक उद्यमी हैं जो हम आप में से ही हैं लेकिन ये किसी की व्यथा को देखकर उस पर दुख जताकर अपना फर्ज निभाने वाले नहीं हैं. उन्होंने जो सोचा उसी राह पर बढ़े और फिर पलटकर नहीं देखा. फिर चाहे राह में कितनी भी परेशनियां क्यों न आएं.
हमेशा से कहा जाता रहा है कि क्रांति सबसे पहले खुद से ही शुरू होती है. कुछ ऐसा ही सपने सच हुए में रश्मि बंसल ने भी कहा है. इस किताब को पढ़ते हुए नेपोलियन की बात दिमाग में दौड़ जाती है, ‘‘अगर आप चाहते हैं कि कोई चीज उत्कृष्ट तरीके से हो तो आप उसे खुद कीजिए.’’ सभी कहानियां यही बात चरितार्थ करती लगती हैं.
रश्मि ने किताब को इंटरेस्टिंग बनाने के लिए इसे तीन हिस्सों में बांटा है: मेघदूत, परिवर्तनकर्ता और दैवीय पूंजीपति. मेघदूत में शौचालय प्रसाधन क्रांति के जनक सुलभ इंटरनेशनल के बिंदेश्वर पाठक से शुरुआत की गई है. एक ब्राह्मण जिसने भारत में मैला ढोने वालों को उनके कार्यों से मुक्ति दिलाने में अहम भूमिका निभाई. बिंदेश्वर किताब में कहते हैं, ‘‘हम महसूस करते हैं कि वैश्वीकरण का लाभ निर्धन तक पहुंचे. यह काम दिमाग से नहीं, केवल दिल से हो सकता है.’’ इसी दिल की बात को सुनकर ही उन्होंने सुलभ इंटरनेशनल के जरिए एक क्रांति को जन्म दिया.
परिवर्तनकर्ता में सुपर-30 के आनंद कुमार एक ऐसा नाम हैं, जिन्होंने हजारों गरीब बच्चों का जीवन बदल कर रख दिया है. वे भारत की अंधेरी गलियों से नगीनों को खोजने और उन्हें तराशने के काम में लगे हैं. उनका कैंब्रिज में पढऩे का ख्वाब तो सच नहीं हो सका था लेकिन वे दूसरे छात्रों का जीवन बदल रहे हैं. किताब में वे कहते हैं, ‘‘मैं भागलपुर, नालंदा व गया के विद्यार्थियों की कह्नाएं मोबाइल फोन पर लेता.’’ छात्रों को फायदा पहुंचाने के उनके जज्बे का खुलासा इस बात से बखूबी जाहिर हो जाता है. इसी खंड में एक और नाम अरविंद केजरीवाल का है. जिन्होंने इन दिनों आम आदमी के हक में अपनी आवाज बुलंद कर रखी है और आए दिन नए खुलासों से भ्रष्टों का जीवन हलकान किए हुए हैं. उनका ख्वाब एक ऐसे सच्चे लोकतंत्र का है जहां एक साधारण आदमी को अपने मनमाफिक जीने का अधिकार हासिल हो.
देश में सूचना का अधिकार लागू होने का श्रेय भी इसी पूर्व आइआरएस अधिकारी को जाता है. वे युवा उद्यमियों को सलाह देते हैं, ‘‘जिस तरह हम अपने-अपने परिवारों की भलाई की जिम्मेदारी लेते हैं, उसी तरह हमें देश की भलाई की भी जिम्मेदारी लेनी चाहिए...प्रजातंत्र हमारी सक्रिय सहभागिता के बिना नहीं चल सकता. हमें सोचना होगा, वरना यह ढह जाएगा, और यह ढह ही तो रहा है.’’
इनके अलावा, कंजर्व इंडिया की अनीता आîजा, आविष्कार सोशल वेंचर फंड के विनीत राय, रंगसूत्र की सुष्मिता घोष, देसी क्रू की सलोनी मल्होत्रा, स्पीति इकोस्फीयर की इशिता खन्ना, सेल्को के हरीश हांडे, पीपल ट्री के संतोष पारुलेकर और प्रोजेक्ट चिलिका के दीनबंधु साî, बेलूर मठ के श्रीश जाधव, परिवार आश्रम के विनायक लोहानी जैसे कई लोगों की प्रेरणादायक कहानियों को रश्मि ने बखूबी अपनी कलम से पिरोया है. सच हुए सपने रश्मि बंसल की अंग्रेजी किताब आइ हैव अ ड्रीम का हिंदी अनुवाद है. हमेशा की तरह रश्मि ने एकदम सिंपल भाषा का इस्तेमाल किया है. अनुवाद में भी काफी हद तक अंग्रेजी की इसी पंरपरा को निभाने की कोशिश की गई है. हालांकि कुछ शब्द ऐसे हैं, जो कहीं अटकते हैं और आम पाठक के लिहाज से थोड़े मुश्किल हो जाते हैं.
उद्यमी और लेखिका रश्मि की पहली दो किताबों स्टे हंगरी स्टे फुलिश और करेक्ट द डॉट की पांच लाख से ज्यादा प्रतियां बिक चुकी हैं और उसके दस से ज्यादा भारतीय भाषाओं में अनुवाद भी हो चुके हैं. आइआइएम-अहमदाबाद से एमबीए रश्मि के लेखन में मुख्य स्वर युवाओं को प्रेरित करने का रहता है. इसलिए उन्हें यूथ ओरिएंटेड सब्जेक्ट्स की स्पेशलिस्ट भी माना जाता है.
अगर इस किताब के लिखने के उद्देश्य की बात करें तो साफ तौर पर युवाओं को मैं से निकालकर हम की संकल्पना से रू-ब-रू कराते हुए कथनी से ज्यादा करनी के लिए प्रेरित करना लगता है. रश्मि कहती हैं, ‘‘ये परिवर्तनशील लोग उद्यमियों की तरह सोचते हैं. ये लोग मैं के मायाजाल से निकलकर हम की अवधारणा पर अमल करने वाले हैं.’’
ये ऐसे लोग हैं जो मैनेजमेंट के सिद्धांतों और आधुनिक तकनीक के इस्तेमाल से विश्व को रहने के लिए एक बेहतर जगह बनाने की कोशिशों में लगे हैं. वसुधैव कुटुंबकम् और कमजोरों को सशक्त बनाने की अवधारणा से लैस यह किताब युवाओं के लिए प्रेरणास्रोत का काम तो कर ही सकती है, इसके अलावा हमारे समय के सामाजिक क्रांतिकारियों की हकीकत को भी बखूबी हमारे सामने पेश करने का काम करती है. (आजतक से साभार)
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