बहुत चुपचाप पांवों से चला आता है कोई दुख पलकें छूने के लिए,
सीने के भीतर आने वाले कुछ अकेले दिनों तक पैठ जाने के लिए,
मैं अकेला थका-हारा कवि कुछ भी नहीं हूं अकेला,
मेरी छोड़ी गयीं अधूरी लड़ाइयां मुझे और थका देंगी...।
हिंदी साहित्य की कहानी, कविता, निबंध, पटकथा आदि विधाओं में सिद्धहस्त उदय प्रकाश का एक संकलन है- सुनो कारीगर, जिनकी कविताएं मैं प्रायः पढ़ लिया करता हूं। साक्षात्कार के लिए उनसे दो-एक व्यक्तिगत मुलाकातें भी हो चुकी हैं। बातचीत में भी अपनी रचाओं की तरह इकहरे, लेकिन जनवादी कवि गोरख पांडेय और सांसद आदित्यनाथ को लेकर वह विवादों में भी रहे हैं। 'मोहनदास' पर भी उनसे एक बड़ी बहस को हवा मिली थी।
उनके प्रमुख कविता संग्रह हैं - सुनो कारीगर, अबूतर-कबूतर, रात में हारमोनियम, एक भाषा हुआ करती है, कवि ने कहा । उनके चर्चित कहानी संग्रह हैं - दरियायी घोड़ा, तिरिछ, और अंत में प्रार्थना, पॉल गोमरा का स्कूटर, पीली छतरी वाली लड़की, मेंगोसिल, दिल्ली की दीवार, अरेबा परेबा, दत्तात्रेय के दुःख, मोहनदास। उनके दो निबंध - ईश्वर की आँख, नई सदी का पंचतंत्र चर्चाओं में रहा है। उन्होंने - इंदिरा गांधी की आखिरी लड़ाई, कला अनुभव, लाल घास पर नीले घोड़े, रोम्यां रोलां का भारत, इतालो काल्विनो, नेरूदा, येहुदा अमिचाई, फर्नांदो पसोवा, कवाफ़ी, लोर्का, ताद्युश रोज़ेविच, ज़ेग्जेव्येस्की, अलेक्सांद्र ब्लाक आदि अनेक रचनाकारों के साहित्य के अनुवाद भी किये हैं।
उदय प्रकाश को भारतभूषण अग्रवाल पुरस्कार, ओमप्रकाश सम्मान, श्रीकांत वर्मा पुरस्कार, मुक्तिबोध सम्मान, वनमाली पुरस्कार, साहित्य अकादमी पुरस्कार, साहित्यकार सम्मान, द्विजदेव सम्मान, पहल सम्मान, अंतरराष्ट्रीय पुश्किन सम्मान, सार्क राइटर्स अवार्ड, कृष्ण बलदेव वैद सम्मान, महाराष्ट्र फाउंडेशन पुरस्कार आदि से सम्मानित किया जा चुका है।
उदय प्रकाश की ये बहुचर्चित पंक्तियां, जो दुष्यंत कुमार की गजल 'पीर पर्वत..' की तरह प्रायः दुहरायी जाती हैं -
आदमी मरने के बाद कुछ नहीं सोचता
आदमी मरने के बाद कुछ नहीं बोलता
कुछ नहीं सोचने और कुछ नहीं बोलने से
आदमी मर जाता है। ('सुनो कारीगर' से )
सीने के भीतर आने वाले कुछ अकेले दिनों तक पैठ जाने के लिए,
मैं अकेला थका-हारा कवि कुछ भी नहीं हूं अकेला,
मेरी छोड़ी गयीं अधूरी लड़ाइयां मुझे और थका देंगी...।
हिंदी साहित्य की कहानी, कविता, निबंध, पटकथा आदि विधाओं में सिद्धहस्त उदय प्रकाश का एक संकलन है- सुनो कारीगर, जिनकी कविताएं मैं प्रायः पढ़ लिया करता हूं। साक्षात्कार के लिए उनसे दो-एक व्यक्तिगत मुलाकातें भी हो चुकी हैं। बातचीत में भी अपनी रचाओं की तरह इकहरे, लेकिन जनवादी कवि गोरख पांडेय और सांसद आदित्यनाथ को लेकर वह विवादों में भी रहे हैं। 'मोहनदास' पर भी उनसे एक बड़ी बहस को हवा मिली थी।
उनके प्रमुख कविता संग्रह हैं - सुनो कारीगर, अबूतर-कबूतर, रात में हारमोनियम, एक भाषा हुआ करती है, कवि ने कहा । उनके चर्चित कहानी संग्रह हैं - दरियायी घोड़ा, तिरिछ, और अंत में प्रार्थना, पॉल गोमरा का स्कूटर, पीली छतरी वाली लड़की, मेंगोसिल, दिल्ली की दीवार, अरेबा परेबा, दत्तात्रेय के दुःख, मोहनदास। उनके दो निबंध - ईश्वर की आँख, नई सदी का पंचतंत्र चर्चाओं में रहा है। उन्होंने - इंदिरा गांधी की आखिरी लड़ाई, कला अनुभव, लाल घास पर नीले घोड़े, रोम्यां रोलां का भारत, इतालो काल्विनो, नेरूदा, येहुदा अमिचाई, फर्नांदो पसोवा, कवाफ़ी, लोर्का, ताद्युश रोज़ेविच, ज़ेग्जेव्येस्की, अलेक्सांद्र ब्लाक आदि अनेक रचनाकारों के साहित्य के अनुवाद भी किये हैं।
उदय प्रकाश को भारतभूषण अग्रवाल पुरस्कार, ओमप्रकाश सम्मान, श्रीकांत वर्मा पुरस्कार, मुक्तिबोध सम्मान, वनमाली पुरस्कार, साहित्य अकादमी पुरस्कार, साहित्यकार सम्मान, द्विजदेव सम्मान, पहल सम्मान, अंतरराष्ट्रीय पुश्किन सम्मान, सार्क राइटर्स अवार्ड, कृष्ण बलदेव वैद सम्मान, महाराष्ट्र फाउंडेशन पुरस्कार आदि से सम्मानित किया जा चुका है।
उदय प्रकाश की ये बहुचर्चित पंक्तियां, जो दुष्यंत कुमार की गजल 'पीर पर्वत..' की तरह प्रायः दुहरायी जाती हैं -
आदमी मरने के बाद कुछ नहीं सोचता
आदमी मरने के बाद कुछ नहीं बोलता
कुछ नहीं सोचने और कुछ नहीं बोलने से
आदमी मर जाता है। ('सुनो कारीगर' से )
...आदमी मरने के बाद कुछ नहीं सोचता आदमी मरने के बाद कुछ नहीं बोलता कुछ नहीं सोचने और कुछ नहीं बोलने से आदमी मर जाता है। >> वाह।
ReplyDeleteबहुत खूब ... आपका पोस्ट क्रम अच्छा चल रहा है ...
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