Tuesday, 3 February 2015

मेरी पाठशाला (आठ) : जिनको, अक्सर पढ़ता रहता हूं

''वैसे तो यह संसार ही एक बहुत बड़ी चूहेदानी है। इसमें मनुष्य रूपी चूहा यदि एक बार फँस जाए तो परमपिता परमात्मा की इच्छा के बिना इससे बाहर नहीं निकल सकता। किंतु वास्तविक चूहेदानी में जब कोई चूहा फँसता है तो वह असहाय अवस्था में भी दाँत पीसता हुआ यह सोचता है कि बुरा हो इस पापी पेट की अग्नि का...! इस पातकी मनुष्य ने आज छल से मुझे फँसा दिया।'' झिलंगी खटिया पर पड़े-पड़े पंडित जी की व्याख्यानमाला चल रही थी। वह अर्धनिद्रा में निमग्न अपने नंगे पेट पर हाथ फेरते हुए बड़बड़ा रहे थे और इधर चटाई पर चावल बीनती हुई उनकी पंडिताइन मन ही मन कुढ़ रही थीं। पंडित जी कथा बाँचने की शैली में कहे जा रहे थे - ''मनुष्य चूहेदानी में फँसे चूहे को तीली कोंचकर छेड़ता है कि आज फँसे हैं बच्चू चूहेदानी में...! अरे, देखो तो... ससुरा कितना मोटा हो गया है मेरे ही घर का अन्न खा-खाकर। फिर सोचता है कि चलो अब इसको बिल्लो रानी को खिला दें...। किंतु अगले ही क्षण पुनः यह सोचने पर बाध्य होता है कि राम-राम! ... इस बेचारे को नाहक क्यों मारूँ? चूहा ही तो है। हल्दी की गाँठ-भर से संतुष्ट हो जाने वाला एक क्षुद्र प्राणी।.. अतः इसे किसी दूसरे के घर में छोड़ आता हूँ। बस...! इतना सुनते ही मूषकराज मस्त... टना-टन।''
ये हैं सुधाकर अदीब की कृति 'अथ मूषक उवाच' का अंश। मैंने सुधाकर अदीब को जितना भी पढ़ा है, पूरे अतीत-वर्तमान (आस्थापूर्वक यथार्थ और मिथक) पर गहरी दृष्टि रखते हुए लिखा जान पड़ता है। वह बड़ी कुशलता से अपने आसपास के वास्तविक चरित्रों को कल्पित पात्रों में ढालते हुए अपने सृजन को विस्तार देते हैं। मुझे खासतौर से 'मम अरण्य' को आद्योपांत पढ़ते हुए ऐसा लगा। उनकी औपन्यासिक कृतियां हैं - अथ मूषक उवाच, चींटे के पर, हमारा क्षितिज, मम अरण्य, शाने तारीख । उनका नया कहानी संग्रह है- पगडंडी। उनके अन्य चर्चित कहानी संग्रह हैं - मृगतृष्णा, देहयात्रा, उजाले अँधेरे और चर्चित कहानियां हैं नदी, नर वानर, परदा, पिल्ले। वह कविताएं भी लिखते हैं। उनके चार कविता संग्रह अब तक आ चुके हैं- अनुभूति, संवेदना, जानी जग की पीर, हथेली पर जान। 'हिंदी उपन्यासों में प्रशासन' पर उनका एक शोधग्रंथ भी है। फुर्सत के क्षणों में सुधाकर अदीब फेसबुक पर भी यदा-कदा सक्रिय रहते हैं।
सुधाकर अदीब को अमृतलाल नागर सर्जना पुरस्‍कार, पं. महावीर प्रसाद द्विवेदी सम्‍मान, शारदा सम्‍मान, साहित्यिक संघ-वाराणसी सम्मान, माटी रतन सम्मान, विशिष्ट साहित्य सम्मान, साहित्य शिरोमणि सारस्वत सम्मान आदि से सम्मानित किया जा चुका है।
(पहले चित्र में सपरिवार, दूसरा चित्र नये कहानी संग्रह 'पगडंडी' का)

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