एक सरकार डरती है दूसरी सरकार से,
दूसरी सरकार डरती है अपने आप से,
नेता डरता है मीडिया संस्थान से,
मीडिया डरता है अपनी अवैध खदान से,
न्यायपालिका डरती है आदेश से,
और जज कॉरपोरेट घरानों से, बैंक डरता है तबाही से
और कॉरपोरेट घराने डरते हैं मुनाफे की कमी से,
डर का एक पूरा वृत्त है, तंत्र है......
......
हमारी मेहनत, हमारा रोजगार, हमारा घर
हमारी भूख, हमारा सुख, हमारा बच्चा
मां-बाप का जीवन, पत्नी के अरमान
और अब तो, आलू, गोभी और मटर भी
तुम्हारे कब्जे में है...
लोकतंत्र कहां से शुरू होता है संविधान
बोलो, बोलो, बोलो ....जल्दी बोलो!
दूसरी सरकार डरती है अपने आप से,
नेता डरता है मीडिया संस्थान से,
मीडिया डरता है अपनी अवैध खदान से,
न्यायपालिका डरती है आदेश से,
और जज कॉरपोरेट घरानों से, बैंक डरता है तबाही से
और कॉरपोरेट घराने डरते हैं मुनाफे की कमी से,
डर का एक पूरा वृत्त है, तंत्र है......
......
हमारी मेहनत, हमारा रोजगार, हमारा घर
हमारी भूख, हमारा सुख, हमारा बच्चा
मां-बाप का जीवन, पत्नी के अरमान
और अब तो, आलू, गोभी और मटर भी
तुम्हारे कब्जे में है...
लोकतंत्र कहां से शुरू होता है संविधान
बोलो, बोलो, बोलो ....जल्दी बोलो!
No comments:
Post a Comment