तुम्हारी हँसी मुझे आज़ाद करती है, मुझे पंख देती है, मुझसे मेरा अकेलापन छीन लेती है, नोच देती है मेरी सलाखों को...... (युद्ध और प्रेम की कविताओं के महागायक मिगेल एरनानदेस की पंक्तियां)
मुस्कुराओ मेरी तरफ़, कि मैं जा रहा हूँ
वहाँ, जहाँ हमेशा से हो तुम सब,
जो धान की बालियों और पुलियों से ढँक देते हो हम पर थूकने वालों के मुँह,
जो मेरे साथ खेतों, मचानों, लुहारखाने, भट्ठी में
दिन-ब-दिन नोंच फेंकते हो पसीने के मुकुट।
मैं अपने-आपको मुक्त करता हूँ मन्दिरों से:
मुस्कुराओ मेरी तरफ़
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जैतून चुनने वाले ख़येन के आन्दालूसियो, अभिमानी जैतून चुनने वालो
आत्मा की गहराई से मुझे बताओ
किसने बड़ा किया इन जैतून के पेड़ों को
ख़येन के आन्दालूसियो, न पैसे ने, न मालिक ने और न ही निरा शून्य ने
बल्कि मौन मिट्टी, मेहनत और पसीने ने
शुद्ध पानी और ग्रहों के साथ मिलकर
तुम तीनों ने दी है ख़ूबसूरती इसके घुमावदार तनों को
ख़येन के आन्दालूसियो, अभिमानी जैतून चुनने वालो
आत्मा की गहराई से मुझे बताओे
किसने दूध पिलाया जैतून के पेड़ों को।
न जाने जैतून की कितनी सदियाँ, बँधे हुए हाथ-पाँव
दिन-ब-दिन, रात-दर-रात अपने बोझ तले दबाती हैं तुम्हारी हड्डियों को!
ख़येन के आन्दालूसियो, अभिमानी जैतून चुनने वालो,
मेरी आत्मा पूछती है: किसके, किसके हैं ये जैतून के पेड़?
ख़येन, अपने चन्द्रिका पत्थरों से पूरे आक्रोश में उठो
कि कोई भी गुलाम नहीं रहेगा, न तुम न तुम्हारे जैतून के बागीचे
तेल की पारदर्शिता और उसकी महक के बीच
तुम्हारी मुक्ति है पर्वतों की मुक्ति में ।
(ख़येन स्पेन के आन्दालूसिया क्षेत्र का एक शहर, जैतून के तेल का वैश्विक केन्द्र : रचना 'आह्वान' से साभार)
मुस्कुराओ मेरी तरफ़, कि मैं जा रहा हूँ
वहाँ, जहाँ हमेशा से हो तुम सब,
जो धान की बालियों और पुलियों से ढँक देते हो हम पर थूकने वालों के मुँह,
जो मेरे साथ खेतों, मचानों, लुहारखाने, भट्ठी में
दिन-ब-दिन नोंच फेंकते हो पसीने के मुकुट।
मैं अपने-आपको मुक्त करता हूँ मन्दिरों से:
मुस्कुराओ मेरी तरफ़
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जैतून चुनने वाले ख़येन के आन्दालूसियो, अभिमानी जैतून चुनने वालो
आत्मा की गहराई से मुझे बताओ
किसने बड़ा किया इन जैतून के पेड़ों को
ख़येन के आन्दालूसियो, न पैसे ने, न मालिक ने और न ही निरा शून्य ने
बल्कि मौन मिट्टी, मेहनत और पसीने ने
शुद्ध पानी और ग्रहों के साथ मिलकर
तुम तीनों ने दी है ख़ूबसूरती इसके घुमावदार तनों को
ख़येन के आन्दालूसियो, अभिमानी जैतून चुनने वालो
आत्मा की गहराई से मुझे बताओे
किसने दूध पिलाया जैतून के पेड़ों को।
न जाने जैतून की कितनी सदियाँ, बँधे हुए हाथ-पाँव
दिन-ब-दिन, रात-दर-रात अपने बोझ तले दबाती हैं तुम्हारी हड्डियों को!
ख़येन के आन्दालूसियो, अभिमानी जैतून चुनने वालो,
मेरी आत्मा पूछती है: किसके, किसके हैं ये जैतून के पेड़?
ख़येन, अपने चन्द्रिका पत्थरों से पूरे आक्रोश में उठो
कि कोई भी गुलाम नहीं रहेगा, न तुम न तुम्हारे जैतून के बागीचे
तेल की पारदर्शिता और उसकी महक के बीच
तुम्हारी मुक्ति है पर्वतों की मुक्ति में ।
(ख़येन स्पेन के आन्दालूसिया क्षेत्र का एक शहर, जैतून के तेल का वैश्विक केन्द्र : रचना 'आह्वान' से साभार)
सुंदर प्रस्तुति।
ReplyDeletevaah !!!
ReplyDeleteधन्यवाद विश्वास मोहन जी
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