हे ठाकुर नामवर सिंहों-प्रगतिशीलों-सेकुलरों, आपने कांग्रेस के SECULAR शासन में उंचे पदों पर रहते हुए बच्चों के पढ़ने का यही बंदोबस्त किया क्या? पढ़िए मित्र Jitendra Mahala का स्टेटस.
"राजस्थान में कक्षा छ में बाल रामकथा नाम से रामायण और कक्षा सात में बाल महाभारत नाम से महाभारत बच्चों को पढ़ाई जाती हैं. दोनों किताबों को बनाने वाली समिति के नामों पर गौर करें -
1. प्रो. नामवर सिंह ( एनसीईआरटी के भाषा सलाहकार समिति के अध्यक्ष)2. प्रो. पुरुषोतम अग्रवाल ( मुख्य सलाहकार)
3. रामजन्म शर्मा ( मुख्य समन्वयक)
4. प्रो. मृणाल मिरी ( निगरानी कमेटी के सदस्य)
5. जी. पी. देशपांडे ( निगरानी कमेटी के सदस्य)
6. अशोक वाजपेयी और प्रो. सत्यप्रकाश मिश्र (जिन्हें निगरानी कमेटी के सदस्यों ने निगरानी के लिए नामित किया)
7. मधुकर उपाध्याय ( बाल रामकथा के लेखक)
नाम के साथ-साथ इनका धर्म और जाति भी गौर करें. बेहतर समझ बनेगी. इस देश में रहने और जीने के लिए यह समझ बनाना कंपल्सरी है."
और यह लिस्ट देश के सबसे बड़े सेकुलरों की है. हे राम!! शर्मनाक है कि नामवर सिंह ने अपनी निगरानी में छठी और सातवीं के बच्चों के लिए ये धार्मिक किताबें तैयार करवाईं. इससे तो बत्रा ही ठीक हैं. जो बोलते हैं, वही करते हैं और वैसा ही दिखते हैं. उनसे लड़ना आसान है. ये खतरनाक लोग हैं. कर्म या कुकर्म के आधार पर विश्लेषण करें कि ये संघियों से ये अलग कैसे हैं. क्लास सिक्स में ही दिमाग में रामायण और सातवीं में महाभारत घुसा देंगे? ऐतराज इस बात पर है कि इतनी कम उम्र के बच्चों को रिलीजियस टेक्स्ट नहीं पढ़ाना चाहिए. खासकर एक ही धर्म के टेक्स्ट तो कतई नहीं. अपनी समझ विकसित हो जाए, तो बच्चा चुन लेगा.
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डरिए मत! खुद को सेकुलर कहने वाली सरकारों ने अब तक राम, कृष्ण आदि को हिंदी साहित्य में पढ़ाया है. UPSC (सिविल सर्विस) के लिए हिंदी के एक्जाम में भी यह सब पूछा जाता हैं. अब BJP सरकार यही सब इतिहास की किताबों में भी पढ़ा देगी. हद से हद यही न? इससे ज्यादा क्या होने वाला है? आसमान सिर पर मत उठाइए. इतने साल से हिंदी साहित्य में धर्मशास्त्र पढ़ते रहे हैं, अब इतिहास में भी पढ़ लीजिएगा. यहां का पढ़ा हुआ, वहां भी काम आ जाएगा. डबल धमाका ऑफर होगा. पहले हिंदी के नाम पर राम-कृष्ण पढ़ाते थे, अब ज्यादा से ज्यादा क्या होगा. इतिहास के नाम पर उसका रिविजन करा देंगे. इतिहास में भी राम-कृष्ण पढ़ा देंगे तो पाठ अच्छी तरह याद हो जाएगा. इसमें दिक्कत क्या है? किसकी सेना में कितने सिपाही थे और एक सिपाही अगर दूसरी टीम के चार सिपाही के बराबर है...जैसा कुछ करके मैथ्स में भी डाल दें.
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अंत में नहीं, शुरुआत करें प्रार्थना से. भारत में अगर साइंटिफिक टेंपरामेंट विकसित करना है, तो सबसे पहले स्कूलों में हो रही प्रार्थनाओं पर एक अध्ययन कराया जाए और
"हम कितने खल-कामी-अशक्त-बेकार-लाचार-घटिया हैं"
"हे प्रभु-हे देवी, तुम हमें तार तो, पार उतार दो"
"हम तो कुछ नहीं-जो हो तुम ही हो"
और
"हमको अपनी शरण में ले लीजिए प्लीज"....जैसे भाव की सारी प्रार्थनाओं पर पाबंदी लगाई जाए.
स्कूल में पहले ही दिन बच्चे-बच्चियों का कॉनफिडेंस हिल जाता होगा, ऐसी प्रार्थना करके.
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हिंदी भाषा साहित्य की किताबों और सिलेबस से अगर ब्राह्मण धर्म के रिलीजियस टेक्स्ट निकाल दें तो उसमें क्या बचेगा? सूर, तुलसी, मीरा, निराला आदि के धार्मिक टेक्स्ट को निकाल दें, तो बचेगा क्या? किसी भी और भाषा के साहित्य में अगर ऐसा गंभीर संकट हो तो बताएं. इससे आप अंदाजा लगा सकते हैं कि हिंदी साहित्य को और उसके सिलेबस को कौन कंट्रोल करता है. हिंदी की इतनी दुर्दशा यूं ही नहीं हुई है. धार्मिक टेक्स्स पढ़ना है तो धर्मशास्त्र में पढ़ाइए. हिंदी साहित्य ने किसी का क्या बिगाड़ा है? बच्चा साहित्य पढ़ने आया है और कहते हैं पढ़ सरस्वती वंदना- वर दे, वीणावादिनि वर दे. अगर अलग से धर्म शास्त्र पढ़ने के लिए बच्चे नहीं मिल रहे हैं तो क्या साहित्य पढ़ने वाले बच्चों को धर्म पढ़ा देंगे? यह कोई इंसानियत की बात है? बतरा बनाम परगतिशील पतरा? सूर्यकांत त्रिपाठी निराला ने सरस्वती वंदना और राम की शक्ति पूजा करा दी और उनके फैन नामवर सिंह ने अपनी निगरानी में क्लास 6 के लिए रामकथा और क्लास 7 के लिए महाभारत की किताब तैयार करवा दी, वहीं मैनेजर पांडे सूरदास में रम गए ....ये लोग बतरा (बत्रा) से बेहतर क्या इसलिए हैं कि इन पर प्रगतिशील होने का लेबल है जबकि बत्रा बेचारे जो बोलते हैं, वही करते हैं और वैसा ही विदूषक दिखते हैं. आप लोग अलग अलग कैसे हो प्रभु? कुछ लोग तुलसीदास में प्रगतिशीलता के सूत्र तलाश रहे हैं तो कुछ लोग मीरा में नारी मुक्ति के सूत्र. आप लोग सचमुच महान हैं महाराज. प्रणाम.
(पत्रकार दिलीप मंडल के फेसबुक वॉल से साभार)
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