Monday, 10 November 2014

कविवर तोंदूराम / हरिकृष्ण देवसरे

कविवर तोंदूराम बुझक्कड़ कभी-कभी आ जाते हैं।
खड़ी निरंतर रहती चोटी,
आँखें धँसी मिचमिची छोटी,
नाक चायदानी की टोटी,
अंग-अंग की छटा निराली, भारी तोंद हिलाते हैं।
कविवर तोंदूराम बुझक्कड़ कभी-कभी आ जाते हैं।
कंधे पर लाठी बेचारी,
लटका उसमें पोथा भारी,
लिए हाथ में सुँघनी प्यारी,
सूँघ-सूँघकर 'आ छीं-आ छीं' का आनंद उठाते हैं।
कविवर तोंदूराम बुझक्कड़ कभी-कभी आ जाते हैं।
ये हैं नियमी धर्म-धुरंधर,
गायक गुपचुप भाँड उजागर,
परम स्वतंत्र न नौकर चाकर,
झूम-झूम कर मटक-मटककर हलुआ पूरी खाते हैं।
कविवर तोंदूराम बुझक्कड़ कभी-कभी आ जाते हैं।
कविता का बँध जाता ताँता,
चप्पल का विवाह ठन जाता,
जूता दूल्हा बनकर आता,
बिल्ली रानी पिस्सू राजा की भी जोड़ मिलाते हैं।
कविवर तोंदूराम बुझक्कड़ कभी-कभी आ जाते हैं।

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