Saturday, 29 November 2014

'मीडिया हूं मैं' से उद्धृत गणेश शंकर विद्यार्थी की टिप्पणी

‘आज हमें जिहाद की जरूरत है- इस धर्म के ढोंग के खिलाफ, इस धार्मिक तुनकमिजाजी के खिलाफ। जातिगत झगड़े बढ़ रहे हैं। खून की प्यास लग रही है। एक-दूसरे को फूटी आँखों भी हम देखना नहीं चाहते। अविश्वास, भयातुरता और धर्माडम्बर के कीचड़ में फँसे हुये हम नारकीय जीव, यह समझ रहे हैं कि हमारी सिर फुटौव्वल से धर्म की रक्षा हो रही है। हमें आज शंख उठाना है इस धर्म के विरुद्ध जो तर्क, बुद्धि और अनुभव की कसौटी पर ठीक नहीं उतर सकता। भारतवासियो, एक बात सदा ध्यान में रखो! धार्मिक कट्टरता का युग चला गया। आज से 500 वर्ष पूर्व यूरोप जिस अंधविश्वास, दम्भ और धार्मिक बर्बरता के युग में था, उस युग में भारतवर्ष को घसीटकर मत ले जाओ। जो मूर्खतायें अब तक हमारे व्यक्तिगत जीवन का नाश कर रही थीं, वे अब राष्ट्रीय प्रांगण में फैलकर हमारे बचे-खुचे मानव-भावों का लोप कर रही हैं। जिनके कारण हमारा व्यक्त्तित्व पतित होता गया, अब उन्हीं के कारण हमारा देश तबाह हो रहा है। हिन्दू-मुसलमानों के झगड़ों और हमारी कमजोरियों को दूर करने का केवल एक यही तरीका है कि समाज के कुछ सत्यनिष्ठ और सीधे दृढ़-विश्वासी पुरुष धार्मिक कट्टरता के विरुद्ध जिहाद कर दें। जब तक यह मूर्खता नष्ट न होगी तब तक देश का कल्याण न होगा। समझौते कर लेने, नौकरियों का बँटवारा कर लेने और अस्थायी सुलहनामों को लिखकर हाथ काले करने से देश को स्वतन्त्रता न मिलेगी। हाथ में खड्ग लेकर तर्क और ज्ञान की प्रखर करताल लेकर आगे बढ़ने की जरूरत है। पाप के गड्ढे राष्ट्र के राजमार्ग पर न खोदना चाहिये, क्योंकि भारत की राष्ट्रीयता का रथ उस पर होकर गुजर रहा है। हम चाहते हैं कि कुछ आदमी ऐसे निकल आयें- जिनमें हिन्दू भी हों और मुसलमान भी- जोकि इन सब मूर्खताओं की, जिनके हिन्दू और मुसलमान दोनों शिकार हो रहे हैं- तीव्र निन्दा करें। यह निश्चय है कि पहले-पहल इनकी कोई न सुनेगा। इन पर पत्थर फेंके जायेंगे। ये प्रताड़ित और निन्दा-भाजन होंगे। पर अपने सिर पर सारी निंदा और सारी कटुता को लेकर जो आगे आना चाहते हैं, उन्हीं को राष्ट्र यह निमंत्रण दे रहा है। सीस उतारे भुईं धरै, ता पर राखे पाँव, ऐसे जो हों, वे ही आवें।'

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