Friday, 14 November 2014

साथ हो, न हो / जयप्रकाश त्रिपाठी

चाहे कोई जुगनू सा हो,
चाहे कोई चांद-सितारा,
मैं अपने मन का बंजारा........

चाहे कोई गले लगा ले
चाहे शाप-ताप सुलगा ले
चाहे कोई प्राण हंसा दे,
चाहे कोई आंख रुला दे,
चाहे कोई हाथ मिला ले,
मैं अपने मन का बंजारा.......

चाहे पथ पर फूल बिछा दे
चाहे कोई साज सजा दे
चाहे कोई लाज लजा दे
चाहे कोई सुबह जगा दे
चाहे कोई शाम सुला दे
मैं अपने मन का बंजारा.......

विष घोले या मिसरी घोले,
चिथड़ा या चांदी से तोले,
बोले अथवा कभी न बोले,
चाहे जो दे, चाहे जो ले,
खोले, मन का भेद न खोले,
साथ-साथ हो ले, न हो ले,
मैं अपने मन का बंजारा.......

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