Friday, 24 October 2014

‘उल्लू’ बना रहे टीवी विज्ञापन / कुलदीप भावसार

नीचे दिए गए चार उदाहरण बानगी हैं, टीवी पर दिखाए जा रहे भ्रामक विज्ञापनों और उनसे होने वाले दुष्प्रभावों के। सूचना प्रसारण मंत्रालय ने हाल ही में गोरे करने वाले क्रीम और पावडर के विज्ञापनों पर प्रतिबंध लगाया है, लेकिन प्रतिबंध की जरूरत दूसरे विज्ञापनों पर भी है। कोई कंपनी धार्मिक आस्थाओं का गलत फायदा उठाकर हनुमान यंत्र बेच रही है तो कोई रातों-रात करोड़पति बनाने का झांसा देकर महालक्ष्मी यंत्र।
केस 1: कानपुर रोड निवासी राहुल पाठक चार साल से आर्थिक संकट से जूझ रहे हैं। टीवी पर पंचमुखी हनुमान कवच का विज्ञापन देखा तो उन्हें लगा कि उनकी परेशानियों का हल मिल गया। उन्होंने रिश्तेदारों से आर्थिक मदद लेकर हजारों रुपए कीमत का हनुमान कवच बुलवाया। कवच धारण किए हुए तीन माह बीच चुके हैं। आर्थिक स्थिति सुधरना तो दूर खाने के लाले हैं। कवच के साथ मिली गोल्ड प्लेटेड चेन की चमक कभी की उतर गई।
केस 2: 8वीं कक्षा में पढ़ने वाली सोनाली घर से स्कूल ट्रिप का बहाना बनाकर सहेलियों के साथ घुमने चली गई। शाम तक वह नहीं लौटी तो परिजन ने उसकी तलाश शुरू की। स्कूल प्रबंधन ने बताया कि कोई ट्रिप रखी ही नहीं गई थी। परेशान परिजन ने कोतवाली पुलिस से शिकायत करने जा रहे थे की शाम को सोनाली घर लौटी। पूछताछ में उसने बताया कि घर से बगैर बताए ट्रिप पर जाने का आइडिया उसे टीवी पर दिखाए जाने वाले एक विज्ञापन से मिला था, जिसमें युवती सिर पर एक विशेष कंपनी का तेल लगाकर मां को ये झूठ बोलकर घर से बाहर जाती है कि उसे आज कॉलेज की ओर से ऐतिहासिक जगहों पर घुमाने ले जाया जाएगा।
केस 3: इंदौर के बंगाली चौराहा निवासी राजेश जैन टीवी पर चेहरा पहचानो प्रतियोगिता में भाग लेकर हजारों का घाटा उठा चुके हैं। टीवी पर दिखाए जा रहे चेहरे को पहचानकर उन्होंने बताए गए नंबर पर फोन लगाया। मोबाइल किसी महिला ने उठाया, जिसने नाम-पता पूछने के बाद उन्हें होल्ड करने को कहा। लगभग 20 मिनट तक संगीत बजने के बाद कंपनी ने उन्हें बाद में कॉल करने को कहा। मोबाइल का बिल आने पर राजेश को पता चला कि कॉल इंटरनेशनल थी। चेहरा पहचानने के चक्कर में उन्हें हजारों की चपत लग चुकी थी।
केस 4: 13-14 साल की दो किशोरियां इंदौर के राजबाड़ा क्षेत्र स्थित एक साड़ी की दुकान पर चोरी का प्रयास करते रंगे हाथों धरी गईं। पुलिस ने उनका नाम-पता पूछकर परिजन को सूचना दी तो पता चला कि दोनों सभ्रांत परिवार से है। किशोरियों द्वारा चोरी के प्रयास पर परिजन भी हैरान थे।
किशोरियों ने उन्हें बताया कि दुकान में चोरी की प्रेरणा उन्हें टीवी पर दिखाए जा रहे एक विज्ञापन से मिली थी, जिसमें एक किशोरी चोरी की वस्तु में से कुछ हिस्सा भगवान को देकर अपने गुनाह का प्रायश्चित कर लेती है। उन्होंने सोचा था कि वे भी चोरी की रकम में से कुछ हिस्सा भगवान के मंदिर में चढ़ा देगी, तो उन्हें चोरी का पाप नहीं लगेगा।
हजारों लोग हो रहे ठगी का शिकार
सिर्फ धार्मिक भावना ही नहीं, लोगों की अमीर बनने की चाह को भी हथियार के रूप में इस्तेमाल किया जा रहा है। जिस हीरो-हीरोइन को बच्चे भी आसानी से पहचान लें, उसे टीवी पर दिखाकर, पहचानने वाले को लाखों के इनाम का झांसा दिया जा रहा है। हजारों लोग इस तरह की ठगी का शिकार हो चुके हैं। इन दिनों टीवी विज्ञापन सिर्फ भ्रम नहीं फैला रहे, बल्कि लोगों को जमकर ‘उल्लू’बना रहे हैं।
इस तरह की ठगी के 99 प्रतिशत मामले सामने नहीं आ पाते। ठगी का शिकार ज्यादातर लोग कहीं शिकायत दर्ज नहीं कराते। पुलिस के मुताबिक 3 महीने में इस तरह की एक भी शिकायत दर्ज नहीं हुई। डॉक्टरों के मुताबिक आमतौर पर इस तरह की ठगी का शिकार होने के बाद जग-हंसाई का डर रहता है। लोगों को लगता है कि उन्होंने वारदात सार्वजनिक कर दी तो समाज के लोग उनकी हंसी उड़ाएंगे। यही वजह है कि ठगी की यह श्रृंखला निर्बाध रूप से चलती रहती है। ठगी करने वाली कंपनियां इसी मानसिकता का फायदा उठा रही हैं।
दो तरह के होते हैं ठगाने वाले
चिकित्सकों के मुताबिक ठगी का शिकार होने वालों में दो तरह के लोग शामिल होते हैं। एक वे जो आदतन जुआरी होते हैं। दूसरे वे जो दूसरों के मुकाबले खुद को ज्यादा समझदार समझते हैं। दोनों ही किस्म के लोगों को इलाज की जरूरत है। आदतन जुआरियों के लिए तो अब बाजार में मेडिसीन तक उपलब्ध है। इन लोगों में बीमारी होती है कि ये जरा-सा फायदा देखते ही दांव लगाने से नहीं चूकते। वहीं मूर्ख लोगों को उपभोक्ता शिक्षा की जरूरत है।
किशोर और युवाओं पर तुरंत असर
मनोरोग चिकित्सकों के मुताबिक भ्रामक विज्ञापनों के झांसे में आने वालों में किशोर और युवावर्ग की संख्या सबसे ज्यादा है। इस आयु वर्ग के लोगों में जल्दी से जल्दी सफलता पाने की इच्छा होती है। जिस स्कीम में कम प्रयास में ज्यादा फायदा दिखाई दे, ये लोग तुरंत उसमें शामिल हो जाते हैं।
कई बार अवसाद में आ जाते हैं
इस तरह की योजनाओं के तहत कोई कवच या यंत्र खरीदने वाले कई बार अवसाद का शिकार भी हो जाते हैं। डॉक्टरों के अनुसार टीवी पर दिखाए जाने वाला यंत्र या कवच खरीदने के बाद भी जब परिस्थितियां नहीं सुधरती तो व्यक्ति को लगता है कि उसकी किस्मत में ही कोई खोट है। वह स्थिति सुधारने का प्रयास भी छोड़ देता है। परिस्थितियां ज्यादा बिगड़ने पर कई बार उसके दिमाग में आत्महत्या का विचार भी आ सकता है।
ठगाने वालों की ज्यादा, लौटाने वालों की संख्या नगण्य
ठगी के कारोबार में लगी कंपनियां कई बार यह झांसा भी देती हैं कि लाभ नहीं होने की स्थिति में आप सामान कंपनी को लौटाकर अपनी रकम वापस ले सकते हैं। यह लोगों को झांसे में लेने का ही एक तरीका है। इस तकनीक का इस्तेमाल कर कंपनी लोगों में विश्वास पैदा करने का प्रयास करती है। लोगों को यह विश्वास दिलाया जाता है कि कंपनी फर्जी होती तो वह पैसा लौटाने का दावा नहीं करती। मगर वास्तविकता यह है कि फायदा नहीं होने के बावजूद 99 प्रतिशत लोग खरीदे गए साधन को कंपनी को नहीं लौटाते। कंपनी उनमें यह डर पैदा कर देती है कि उन्होंने कवच या यंत्र लौटाया तो उन्हें नुकसान हो सकता है।
ये कहता है ज्योतिष शास्त्र
टीवी पर विज्ञापन देखकर कोई यंत्र खरीदा है तो वह धारक के लिए काम ही नहीं करेगा। टीवी पर दिखाए जा रहे भ्रामक विज्ञापनों से लोगों की धर्म के प्रति आस्थाएं कम होती हैं। यंत्र बेचने वाली कंपनियों का दृृष्टिकोण व्यवसायिक होता है। लोगों को जब लाभ नहीं होता है तो उनकी आस्थाएं प्रभावित होने लगती हैं। शास्त्रों के मुताबिक वास्तविक यंत्र भोजपत्रों पर अनार की कलम से लिखे जाते हैं। इसके बाद 21 दिन या 51 दिन साधना की जाती है। यज्ञ हवन आदि भी कराना होते हैं। इसके बाद संकल्प लेना होता है कि लोक कल्याण के लिए निष्काम भाव से यह कार्य किया जा रहा है। सबसे बड़ी बात यह कि इस तरह की यंत्र साधना में कोई दक्षिणा नहीं ली जाती। अगर कोई व्यक्ति, कंपनी आपको पैसे के बदले कोई यंत्र दे रही है तो वह खरीदने वाले के लिए काम ही नहीं करेगा।
लोगों की मानसिकता का लाभ उठाते हैं
एमजीएम मेडिकल कॉलेज के मनोरोग चिकित्सक डॉ. उज्जवल सरदेसाई कहते हैं कि इस तरह की ठगी करने वाली कंपनियां लोगों की मानसिकता का फायदा उठाती हैं। यह मानवीय स्वभाव है कि ज्यादातर लोग कम प्रयास में अधिक फायदा चाहते हैं। टीवी पर चेहरा पहचानो प्रतियोगिता हो या किसी भगवान का कवच खरीदने की बात, इसी मानसिकता की वजह से लोग ठगाते हैं। टीवी पर दिखाए जा रहे इस तरह के विज्ञापनों में उपभोक्ता को सही और पूरी जानकारी नहीं दी जाती। कंपनी यह तो बताती है कि 10 इनाम दिए जाएंगे, लेकिन यह नहीं बताती कि कितने लाख दर्शकों में से विजेता चुने जाएंगे। ज्यादातर लोग इस तरह के विज्ञापनों के झांसे में फंस जाते हैं।
(नई दुनिया से साभार)

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