जीवन असली,
नकली जीवन,
नकली बातें,
जैसे अपनी आंख मूंद कर
खुद से भाग रहे हों
ऊबड़-खाबड़,
कभी इधर की,
कभी उधर की
पगडंडी पर
एक-अकेले,
जोड़-जुटाकर
रिश्ते-नाते....
गुनगुनाते हुए
कि अपने लिए
जिये तो क्या जिये...!
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