Sunday, 5 January 2014

आज एक फोटो को देखा तो ऐसा लगा


मधुमेह का मारा मैं आज सुबह मॉर्निंग वॉक की कठदौड़ से लौटा तो घर में अखबार की एक फोटो पर आंख ठहर गई। ठहर क्या चिपक-सी गई। टकटकी लगाए रहा देर तक। खामख्वाह। बात क्या थी कि यहां कुछ लिखा नहीं जा रहा लेकिन इस हवाई दोस्त मंडली में उस सच को साझा कर लेने को जी बहुत जोर मार रहा है। जैसे गले में कुछ अटक गया हो या कलेजे का पत्थर हल्का कर लेने की बेताबी...
फोटो के पीछे क्या है। जितना फूहड़ और विद्रूप, उससे हजारगुना ज्यादा डरावना स्मृतियों का एक गंदा झोका। फोटो मंत्री का। ये मंत्री केंद्र में है या किसी प्रदेश में, भेद खोलना ठीक नहीं रहेगा। बस इतना जान लीजिए कि उसके चेहरे और वस्त्र की शालीनता-सुघरता देख कर रोंगटे खड़े हो गए। फोटो को बड़े गौर से घूरा। बार-बार चित्र के नीचे लिखा परिचय पढ़ा। उसी झटके में वह पूरी खबर पढ़ गया।
स्कूल के दिनो में हमारे घर गांव क्या, पूरे जिले में तीन बड़े डाकुओं का आतंक हुआ करता था। उनमें एक डाकू मेरी मौसी के गांव शिवरामपुर का निवासी था। दीना नाम था उसका। पूरे गांव की महिलाएं सोने-चांदी से लदी-फदी उसकी बीवी के पांव छुआ करती थीं। मौसी ने बताया था कि ये दीना डाकू की मेहरारू (बीवी) है। दीना डाकू के प्रशंसकों में मेरी मौसी का परिवार भी शामिल था। प्रशंसा इसलिए कि दीना शिवरामपुर समेत आसपास के गांवों में चोरी-डकैती नहीं पड़ने देता था। पुलिस भी किसी परेशान नहीं करती थी। बस, अपने गांव-जवार पर यही दीना की बहुत बड़ी नियामत थी।
दीना शरीर से जितना हट्टा-कट्टा, लंब-तड़ंग, उतना खूबसूरत। बोलचाल में मिठबोलवा। किसी से अकड़ के, ऊल-जुलूल नहीं बोलता था। गांव के हर बड़े बुजुर्ग के पांव छूता था। आज के राजनेताओं की तरह यह सब करना दीना की रणनीति का एक हिस्सा था क्योंकि लोगों का विश्वास जीत कर वह बड़े आराम से अपने घर-गांव में छिपा रहता था। पुलिस लाख कोशिश कर भी बगल के घर में छिपे दीना के बारे में भनक नहीं ले पाती थी।
उन्हीं तीन खूंख्वार डकैतों में से एक के वंशज की ये फोटो। लंबे समय तक जेल में गुजारे इसने भी। मैंने इसे कभी देखा नहीं था। फोटो ने चिंतित कर दिया। क्या दिन आ गये इस देश की राजनीति के। फोटो में अफसर उसके पीछे-पीछे फाइलें लिए दौड़े जा रहे थे। वह राहुल सांस्कृत्यायन की तरह गंभीर मुद्रा में अपनी वैसी ही सौम्यता से अफसरों को कृतकृत्य कर रहा था, जैसे मौसी के गांव को दीना.......
वंशावली खोलो तो कइयों की ऐसी ही पता चलेगी। कौन खोले बिल्ली के गले की घंटी। कविता-सविता लिख कर काम चल जा रहा है अपुन का। खामख्वाह आफत गले कौन लगाए....जयसियाराम! जयरामजीकी!

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