यह दिल्ली में सिर्फ पारंपरिक सरकार बना लेने भर का नहीं, देश की जनता के लिए नई राजनीतिक संभावनाओं का द्वार खुलने का समय है।
जेपी मूवमेंट के बाद देश की जनता की जो दुर्दशा ये सरकारें करती आ रही हैं, तरह तरह के खोल ओढ़ कर लोकतंत्र के नाम पर नितांत अलोकतांत्रिक तरीके से जनता के राजस्व की बेखौफ व्यक्तिगत हित में, ऐशोआराम के साथ ठिकाने लगाते जा रही हैं, महंगाई, कानून व्यवस्था, विकास के मोरचो पर जिस दंभ और गुरूर के साथ, सांप्रदायिकता और जात-पांत के सहारे, राजनीति में नितांत अयोग्य होने के बावजूद पारिवारिक विरासत और महंतई के बूते देशवासियों की जैसी दुर्दशा करती जा रही हैं, ऐसे में जनहित की दृष्टि से दिल्ली में सरकार बनना उतना जरूरी नहीं, जितना कि 'आम आदमी पार्टी' का उम्मीदों और आशाओं पर खरा उतरना आवश्यक है।
बड़ी मेहनत से कश्ती तूफान से निकाल कर आप टीम ले आई है
समय के इस मोड़ पर अरविंद केजरीवाल और उनके साथियों पर पहले से ज्यादा बड़ी जिम्मेदारी आ पड़ी है।
पूरे देश की निगाहें उन पर हैं।
देखना होगा कि वह दलदल में शामिल हो जाते हैं या अन्ना हजारे के लक्ष्य को अंजाम तक पहुंचाने का बीड़ा उठा लेते हैं।
बीड़ा उठाएं भी तो सिर्फ जेपी मूवमेंट जितना ही नहीं, आज की चुनौतियों और जनता की आकांक्षाओं तथा कहरे विश्वास को ध्यान में रखते हुए। क्योंकि जनता पार्टी का अंतिम अंजाम क्या रहा था, देश अभी भूला नहीं है।
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