बांग्लादेशी मूल की विवादित लेखिका तसलीमा नसरीन ने अपने ख़िलाफ़ एफ़आईआर दर्ज किए जाने पर हैरानी जताते हुए कहा है कि मैं नहीं जानती, मेरे ख़िलाफ़ एफ़आईआर क्यों दर्ज की गई है. मैंने तो सिर्फ़ सच बोला था. असल में 2007 में उलेमा ने फ़़तवा जारी कर मेरे सिर पर ईनाम रखा था. मैंने इसी बारे में ट्वीट किया था. अब उन उलेमा का कहना है कि मेरी ट्वीट से उनकी भावनाएं आहत हुई हैं. मैं चकित हूँ क्योंकि मैंने कुछ भी ग़लत नहीं कहा है? क्या भारत इंटरनेट पर अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता के प्रति कठोर हो रहा है. तसलीमा कहती हैं कि मुझे नहीं लगता कि भारत एक कठोर या असहिष्णु देश है, लेकिन कुछ लोग अभी भी असहिष्णु हैं, ख़ास कर धार्मिक कट्टरपंथी. वे लोगों का उत्पीड़न करने की कोशिश करते हैं. ये लोग अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता में यक़ीन नहीं रखते हैं. मैं भारत को प्यार करती हूँ और उन लोगों का सम्मान करती हूँ जो मानवाधिकारों में यक़ीन रखते हैं. यहाँ के क़ानून बहुत अच्छे हैं. मैं जो भी लिखती हूँ मानवाधिकारों के लिए लिखती हूँ. मैं सिर्फ़ इस दुनिया को बेहतर बनाना चाहती हूँ. लोगों को उनके अधिकारों के बारे में जागरूक करने के लिए मैंने अपने जीवन का त्याग किया है.
वह कहती हैं कि यह अच्छी बात है कि अब हमारे पास इंटरनेट है. हम खुलकर अपनी बात रख सकते हैं और कोई हमारे लेखन, राय या विचारों को सेंसर नहीं कर सकता. यह एक खुले समाज के लिए बहुत अच्छा है. सभी लोग अपनी राय रख सकते हैं. एक सभ्य समाज में अपनी राय रखने के लिए किसी को सज़ा नहीं दी जानी चाहिए, भले ही उसकी राय कुछ भी हो.
तसलीमा नसरीन के ख़िलाफ़ उत्तर प्रदेश के बरेली ज़िले में सूचना प्रौद्योगिकी क़ानून के तहत एफ़आईआर दर्ज की गई है. यह एफ़आईआर बरेली के एक प्रमुख मुस्लिम धर्मगुरु की शिकायत पर दर्ज की गई है. आरोप है कि तसलीमा नसरीन की ट्वीट से मुसलमानों की भावनाएं आहत हुई हैं. उत्तर प्रदेश पुलिस के मुताबिक एफ़आईआर दरग़ाह आला हज़रत के मौलाना सुब्हानी मियाँ के बेटे हसन रज़ा ख़ाँ नूरी की ओर से दर्ज कराई गई है. शिकायत में कहा गया है कि तसलीमा ने हाल ही में अपनी ट्वीट में मुस्लिम उलेमाओं को अपराधी कहा जिससे मुसलमानों की भावनाएं आहत हुईं.
फ़ेसबुक पर भड़काऊ टिप्पणियाँ करने के आरोप में सामाजिक कार्यकर्ता शीबा असलम फ़हमी के ख़िलाफ़ हाल ही में एफ़आईआर दर्ज़ की गई.
तसलीमा नसरीन के ख़िलाफ़ सूचना प्रौद्योगिकी क़ानून की धारा 66ए के तहत मामला दर्ज किया गया है. इससे पूर्व अक्टूबर 2012 में तमिलनाडु के एक व्यापारी को वित्त मंत्री पी चिदंबरम के बेटे पर टिप्पणी करने के आरोप में गिरफ़्तार किया गया. नवंबर 2012 में शिवसेना के संस्थापक बाल ठाकरे की मौत से जुड़ी टिप्पणी करने पर पालघर की दो लड़कियों को गिरफ़्तार किया गया. हालांकि व्यापक विरोध के बाद में मामले हटा लिए गए. अगस्त 2013 में उत्तर प्रदेश के दलित लेखक कँवल भारती को समाजवादी पार्टी सरकार पर टिप्पणी करने के आरोप में गिरफ़्तार किया गया. दिल्ली की एक अदालत के आदेश पर अक्टूबर 2013 में फ़ेसबुक पर भड़काऊ टिप्पणियों के आरोप में सामाजिक कार्यकर्ता शीबा फ़हमी के ख़िलाफ़ एफ़आईआर दर्ज की गई. तसलीमा पर इससे पहले भी मामले दर्ज हुए हैं. उन्हें जान से मारने तक की धमकियाँ मिली हैं. तो क्या इस एफ़आईआर के बाद तसलीमा के लेखन में बदलाव आएगा.
तसलीमा कहती हैं कि मुझे जो सही लगता है, मैं उसे पूरी स्वतंत्रता से लिखती रहूंगी. मैं एक प्रजातंत्र में रहती हूँ और अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता और बराबरी में यक़ीन रखती हूँ. मैं कभी भी अपने आप को वो लिखने से नहीं रोकूंगी जिसे मैं सही मानती हूँ. मैं हमेशा से खुलकर लिखती रहूं हूँ. मुझे मेरे देश से बाहर भेज दिया गया. मैं निर्वासित होकर रह रही हूँ, फिर भी मैंने सच लिखने से कभी भी ख़ुद को नहीं रोका. (बीबीसी से साभार दिलनवाज़ पाशा की रिपोर्ट)
वह कहती हैं कि यह अच्छी बात है कि अब हमारे पास इंटरनेट है. हम खुलकर अपनी बात रख सकते हैं और कोई हमारे लेखन, राय या विचारों को सेंसर नहीं कर सकता. यह एक खुले समाज के लिए बहुत अच्छा है. सभी लोग अपनी राय रख सकते हैं. एक सभ्य समाज में अपनी राय रखने के लिए किसी को सज़ा नहीं दी जानी चाहिए, भले ही उसकी राय कुछ भी हो.
तसलीमा नसरीन के ख़िलाफ़ उत्तर प्रदेश के बरेली ज़िले में सूचना प्रौद्योगिकी क़ानून के तहत एफ़आईआर दर्ज की गई है. यह एफ़आईआर बरेली के एक प्रमुख मुस्लिम धर्मगुरु की शिकायत पर दर्ज की गई है. आरोप है कि तसलीमा नसरीन की ट्वीट से मुसलमानों की भावनाएं आहत हुई हैं. उत्तर प्रदेश पुलिस के मुताबिक एफ़आईआर दरग़ाह आला हज़रत के मौलाना सुब्हानी मियाँ के बेटे हसन रज़ा ख़ाँ नूरी की ओर से दर्ज कराई गई है. शिकायत में कहा गया है कि तसलीमा ने हाल ही में अपनी ट्वीट में मुस्लिम उलेमाओं को अपराधी कहा जिससे मुसलमानों की भावनाएं आहत हुईं.
फ़ेसबुक पर भड़काऊ टिप्पणियाँ करने के आरोप में सामाजिक कार्यकर्ता शीबा असलम फ़हमी के ख़िलाफ़ हाल ही में एफ़आईआर दर्ज़ की गई.
तसलीमा नसरीन के ख़िलाफ़ सूचना प्रौद्योगिकी क़ानून की धारा 66ए के तहत मामला दर्ज किया गया है. इससे पूर्व अक्टूबर 2012 में तमिलनाडु के एक व्यापारी को वित्त मंत्री पी चिदंबरम के बेटे पर टिप्पणी करने के आरोप में गिरफ़्तार किया गया. नवंबर 2012 में शिवसेना के संस्थापक बाल ठाकरे की मौत से जुड़ी टिप्पणी करने पर पालघर की दो लड़कियों को गिरफ़्तार किया गया. हालांकि व्यापक विरोध के बाद में मामले हटा लिए गए. अगस्त 2013 में उत्तर प्रदेश के दलित लेखक कँवल भारती को समाजवादी पार्टी सरकार पर टिप्पणी करने के आरोप में गिरफ़्तार किया गया. दिल्ली की एक अदालत के आदेश पर अक्टूबर 2013 में फ़ेसबुक पर भड़काऊ टिप्पणियों के आरोप में सामाजिक कार्यकर्ता शीबा फ़हमी के ख़िलाफ़ एफ़आईआर दर्ज की गई. तसलीमा पर इससे पहले भी मामले दर्ज हुए हैं. उन्हें जान से मारने तक की धमकियाँ मिली हैं. तो क्या इस एफ़आईआर के बाद तसलीमा के लेखन में बदलाव आएगा.
तसलीमा कहती हैं कि मुझे जो सही लगता है, मैं उसे पूरी स्वतंत्रता से लिखती रहूंगी. मैं एक प्रजातंत्र में रहती हूँ और अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता और बराबरी में यक़ीन रखती हूँ. मैं कभी भी अपने आप को वो लिखने से नहीं रोकूंगी जिसे मैं सही मानती हूँ. मैं हमेशा से खुलकर लिखती रहूं हूँ. मुझे मेरे देश से बाहर भेज दिया गया. मैं निर्वासित होकर रह रही हूँ, फिर भी मैंने सच लिखने से कभी भी ख़ुद को नहीं रोका. (बीबीसी से साभार दिलनवाज़ पाशा की रिपोर्ट)
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