Tuesday, 2 July 2013

मैं ईशान, गुल्लू और एक सतरंगी



रमेश तैलंग

सैंकड़ों बहुरंगी बाल पुस्तकों ने हिंदी बाल-साहित्य को अपनी नव्यता एवं भव्यता के साथ समृद्ध किया है। चाहे विषयों की विविधता हो या सामग्री की उत्कृष्टता, चित्रों की साज-सज्जा हो या मुद्रण की कुशालता, हर दृष्टि से हिंदी की बाल-पुस्तकें अब अंग्रेजी बाल-पुस्तकों के बरक्स विश्‍वस्तरीय मानदंडों को छू रही हैं। पर, जैसा कि हर बार लगता है, पुस्तकों की कीमत पर एक हद तक नियंत्रण होना अवश्‍य लाजमी है। यदि 48 पृष्ठों की पुस्तक के लिए आपको 150 रुपये खर्च करने पड़ें तो कम से कम हिंदी बाल-पाठकों की जेब पर यह भारी ही पड़ता है। लेकिन इस बहस में पड़ेंगे तो हरि अनंत हरि कथा अनंता वाली कहावत चरितार्थ हो जाएगी। अतएव हियां की बातें हियनै छोड़ो अब आगे का सुनो हवाल… की डोर पकड़ें तो,   हाल-फ़िलहाल पचास के लगभग नई बाल-पुस्तकें मेरे सामने हैं और उनमें बहुत सी ऐसी हैं जो विस्तृत चर्चा की हक़दार हैं। पर हर पत्रिका की अपनी पृष्ठ-सीमा होती है और इस सीमा के चलते यदि इन बाल पुस्तकों पर मैं परिचयात्मक टिप्पणी ही कर सकूं तो आशा है सहृदय पाठक-लेखक-प्रकाशक अन्यथा नहीं लेंगे।
तो सबसे पहले दो बाल-उपन्यास, जो मुझे हाल ही में मिले हैं। पहला है डॉ. श्री निवास वत्स का गुल्लू और एक सतरंगी ( किताबघर, दिल्ली) और दूसरा है राजीव सक्सेना का मैं ईशान ( बाल शिक्षा पुस्तक संस्थान, दिल्ली)।
श्रीनिवास वत्स एक सक्षम बाल कथाकार हैं और काफी समय से बाल-साहित्य सृजन में सक्रिय हैं। मां का सपना के बाद गुल्लू और एक सतरंगी उनका नया बाल-उपन्यास आया है जिसका मुख्य पात्र यूं तो गुल्लू नाम का बालक है पर उपन्यास की पूरी कथा और घटनाएं सतरंगी नाम के एक अद्भुत पक्षी के चारों ओर घूमती हैं। यह पक्षी मनुष्य की भाषा समझ और बोल सकता है इसीलिए गुल्लू और सतरंगी की युगल-कथा पाठकों को अंत तक बांधे रखती है। 159 पृष्ठों में फैले इस उपन्यास का अभी पहला खंड ही प्रकाशिात हुआ है जो आगे जारी रहेगा। देखना यह है कि आगे के खंड एक श्रंखला के रूप में कितने लोकप्रिय होते हैं। वैसे लेखक ने इसे किसी भारतीय भाषा में लिखा गया प्रथम वृहद् बाल एवं किशोरोपयोगी उपन्यास माना है।
दूसरा उपन्यास- ‘मैं ईशान’ राजीव सक्सेना का प्रयोगात्मक बाल-उपन्यास है। उपन्यास क्या है, ईशान नाम के एक बालक की आत्मकथा है जिसमें उसी की जुबानी उसकी शैतानियां, उसकी उपलब्धियां, उसकी कमजोरियां, और उसकी परेशानियां बखानी गई हैं। संभव है, इसे पढ़ते समय ईशान के रूप में बाल-पाठक अपना स्वयं का चेहरा तलाशने लगें क्योंकि बच्चे तो सभी जगह लगभग एक से ही होते हैं।
कथा-साहित्य के फलक पर ही आगे नजर डालें तो मदन बुक हाउस, नई दिल्ली द्वारा आरंभ की गई मेरी प्रिय बाल कहानियां श्रंखला में पांच सुपरिचित लेखकों की कहानियों के संग्रह इस वर्ष प्रकाशित हुए हैं। ये लेखक हैं- मनोहर वर्मा, यादवेन्द्र शर्मा चन्द्र,   देवेन्द्र कुमार, भगवती प्रसाद द्विवेदी एवं प्रकाशा मनु। इससे पूर्व डॉ. श्रीप्रसाद की प्रिय कहानियों का संग्रह भी यहां से प्रकाशिात हो चुका है। मेरी समझ में ऐसे संग्रहों का महत्व इसलिए अधिक है कि इनमें लेखकों के शुरुआती दौर से लेकर अब तक की लिखी गई प्रतिनिधि कहानियों का संपूर्ण परिदृशय एक जगह पर मिल जाता है।
इन संग्रहों की यादगार कहानियों में मनोहर वर्मा की नन्हा जासूस, मां का विश्‍वास, चाल पर चाल, लीना और उसका बस्ता, यादवेन्द्र शर्मा चन्द्र की समुद्र खारा हो गया, एक छोटा राजपूत, टप-टप मोती, साहसी शोभा, भगवती प्रसाद द्विवेदी की फिसलन, भटकाव, गलती का अहसास, छोटा कद-बड़ा पद, देवेन्द्र कुमार की बाबा की छड़ी, मास्टर जी, डाक्टर रिक्शा, पुराना दोस्त, धूप और छाया, प्रकाश मनु की गुलगुल का चांद, आईं-माईं आईं-माईं मां की आंखें, मैं जीत गया पापा के नाम लिए जा सकते हैं।
भगवती प्रसाद द्विवेदी ने फिसलन और भटकाव जैसी कहानियों में किशोरावस्था के ऐसे अनछुए बिंदुओं (योनाकर्षण एवं फिल्मी दुनिया के मायाजाल) को छुआ है जिन्हें बाल-साहित्य में ‘टेबू’ समझ कर छोड़ दिया जाता है।
ऐसा ही एक और कहानी संग्रह डॉ. नागेश पाण्डेय संजय का यस सर-नो सर (लहर प्रकाशन, इलाहाबाद ) है जिसमें उनकी 14 किशोरोपयोगी कहानियां संकलित हैं। नागेश पांडेय ने लीक से हटकर कहानियां/कविताएं लिखी हैं। यही कारण है कि उनकी बाल-कहानियां आधुनिक संदर्भों से जुड़कर पाठकों को बहुत कुछ नया देती हैं।
यहां मैं डॉ. सुनीता के बाल-कहानी संग्रह ‘दादी की मुस्कान’ ( सदाचार प्रकाशन, दिल्ली) की चर्चा भी करना चाहूंगा जिसमें उनकी छोटी-बड़ी 21 मनभावन कहानियां संकलित हैं। गौर से देखें तो सुनीता की कहानियों में जगह-जगह एक गंवई सुगंध या कहें,   एक अनगढ़ सौंदर्य देखने को मिलता है। सुनीता देवेन्द्र सत्यार्थी की तरह अपनी कहानियों में पत्र-शौली, यात्रा-कथा, सामाजिक, ऐतिहासिक जीवन-प्रसंग तथा पारिवारिक संबंधों की जानी-पहचानी मिठास…. सभी कुछ रचाए-बसाए चलती हैं जो पाठकों को एक अलग ही तरह का सुख देता है।
मेरी प्रिय बाल कहानियां के अलावा धुनी बाल-साहित्य लेखक और चिंतक प्रकाश मनु के इधर और भी अनेक कहानी संग्रह इस वर्ष प्रकाशित हुए हैं। यथा- रंग बिरंगी हास्य कथाएं ( शशांक पब्लिकेशन्स, दिल्ली), तेनालीराम की चतुराई के किस्से, बच्चों की 51 हास्य कथाएं, ज्ञान विज्ञान की आशचर्यजनक कहानियां ( तीनों के प्रकाशक डायमंड पाकेट बुक्स, दिल्ली ), अद्भुत कहानियां ज्ञान-विज्ञान की ( कैटरपिलर पब्लिशर्स, दिल्ली), जंगल की कहानियां, ( स्टेप वाई स्टेप पब्लिशर्स, दिल्ली),   चुनमुन की अजब-अनोखी कहानियां ( एवरेस्ट पब्लिशिंग कंपनी, दिल्ली),   सुनो कहानियां ज्ञान-विज्ञान की ( ग्लोरियस पब्लिशर्स, दिल्ली),   रोचक कहानियां ज्ञान-विज्ञान की ( बुक क्राफ्ट पब्लिशर्स, दिल्ली)   । ज़ाहिर है कि प्रकाश मनु न केवल अपने लेखन में गति और नियंत्रण बनाए हुए हैं, बल्कि समकालीन बाल-साहित्य के समूचे परिदृश्‍य पर भी एक पैनी नजर रखे हुए हैं। मैं नहीं जानता, इतने विविध और महत्वपूर्ण बाल कहानी-संग्रह एक साथ एक ही वर्ष में किसी और लेखक के प्रकाशित हुए हैं।
जाने-माने कथाकार अमर गोस्वामी   की 51 बाल कहानियों का एक नया संग्रह ‘किस्सों का गुलदस्ता’ (चेतना प्रकाशन, दिल्ली) भी इधर आया है जिसमें बाज की सीख, घमंडी गुलाब, चुनमुन चींटे की सैर, लौट के बुद्धु के अलावा उनकी मशहूर बाल कहानी शोरसिंह का चशमा भी शामिल है। पाठक इन सभी कहानियों का भरपूर आनंद उठा सकते हैं।
लोक-परक, पौराणिक एवं प्रेरक बाल-कथा साहित्य के अंतर्गत आनंद कुमार की ‘जीवन की झांकिया, ( ट्रांसग्लोबल पब्लिशिंग कंपनी, दिल्ली),   मनमोहन सरल एवं योगेन्द्र कुमार लल्ला द्वारा संपादित भारतीय गौरव की कहानियां, ( बुक ट्री पब्लिशिंग हाउस, दिल्ली),   हरिमोहन लाल श्रीवास्तव तथा ब्रजभूषण गोस्वामी द्वारा संपादित मूर्ख की सूझ, विष्णु दत्त ‘विकल’ की इंसान बनो, दो खंडों में प्रकाशिात राज बहादुर सिंह की चरित्र निर्माण की कहानियां (सभी के प्रकाशाक एम.एन. पब्लिशर्स एण्ड डिस्ट्रीब्यूटर्स, दिल्ली),   सावित्री देवी वर्मा रचित इन्सान कभी नहीं हारा,   प्यारे लाल की गंगा तेली, ( दोनों के प्रकाशक-सावित्री प्रकाशन, दिल्ली), राम स्वरूप कौशल की पाप का फल, ( स्वास्तिक प्रकाशन, दिल्ली )   तथा डॉ. रामस्वरूप वशिष्ठ की एक अभिमानी राजा (ओरिएंट क्राफ्ट पब्लिशर्स एण्ड डिस्ट्रीब्यूटर्स, दिल्ली)   के नाम प्रमुखता से लिए जा सकते हैं।
कथा-साहित्य की तरह ही बाल कविताएं भी अपनी सहजता, मधुरता और सामूहिक गेयता के कारण हमेशा से बच्चों को प्रिय रही हैं।
यह हर्ष की बात है कि इस वर्ष हमारे समय के पुरोधा बालकवि डॉ. श्रीप्रसाद के तीन संग्रह क्रमश: मेरे प्रिय शिशु गीत ( हिमाचल बुक सेंटर, दिल्ली), मेरी प्रिय बाल कविताएं ( विद्यार्थी प्रकाशन, दिल्ली) और मेरी प्रिय गीत पहेलियां ( सुधा बुक मार्ट, दिल्ली), एक साथ प्रकाशित हुए हैं। इन काव्य-संग्रहों में श्रीप्रसाद जी की लंबी बाल-काव्य यात्रा का विस्तृत परिदृश्य अपनी पूरी वैविध्यता के साथ देखा जा सकता है। श्रीप्रसाद जी के अलावा डॉ. प्रकाशा मनु के भी 101 शिशु गीत इधर चेतना प्रकाशन, दिल्ली से प्रकाशित हुए हैं जिनका मजा नन्हे-मुन्ने़ पाठक ले सकते हैं।
शिशु गीतों की बात चली है तो संदर्भवश मैं यहां यह भी उल्लेख करना चाहूंगा कि अंग्रेजी में रेन रेन गो अवे,   ब बा ब्लेकशीप, हिकरी-डिकरी,   जैसे बहुत से ऐसे नरसरी राइम्स हैं जिनके पीछे कोई न कोई ऐतिहासिक, सामाजिक घटना जुड़ी है। जिज्ञासु पाठक यदि चाहें तो,   इन घटनाओं का संक्षिप्त ब्‍योरा www.rhymes.org.uk वेबसाइट पर देख सकते है। हिंदी शिशु गीतों, खासकर जो लोक में प्रचलित हैं, में ऐसे संदर्भों को ढूंढना श्रम-साध्य होने के बावजूद रोचक होगा। क्योंकि कोई भी लेखक या शिशु गीत रचयिता अपने समय से कटकर कुछ नहीं रच सकता।
इस वर्ष जिन अन्य बाल-कविता संग्रहों ने मेरा ध्यान आकर्षित किया है उनमें डॉ. शकुंतला कालरा का हंसते-महकते फूल ( चेतना प्रकाशन, दिल्ली ),     डॉ. बलजीत सिंह का गाओ गीत सुनाओ गीत, डा. शंभुनाथ तिवारी का धरती पर चांद   ( दोनों के प्रकाशक हिंदी साहित्य निकेतन, बिजनौर), प्रत्यूष गुलेरी का बाल गीत ( नेशनल बुक ट्रस्ट, नई दिल्ली),     डॉ. आर.पी. सारस्वत के दो संग्रह- नानी का गांव और चटोरी चिड़िया ( दोनों के प्रकाशक नीरजा स्मृति‍ बाल साहित्य न्यास, सहारनपुर),       राजा चौरसिया का अपने हाथ सफलता है ( बाल वाटिका प्रकाशन, भीलवाड़़ा), अजय गुप्त का जंगल में मोबाइल ( श्री गांधी पुस्तकालय प्रकाशन, शाहजहांपुर ), चक्रधर नलिन का विज्ञान कविताएं( लहर प्रकाशन, इलाहाबाद),     और गया प्रसाद श्रीवास्तव श्रीष का वीथिका ( कवि निलय,   रायबरेली) प्रमुख हैं।
डॉ. आर पी सारस्वत अपेक्षाकृत नए बाल कवि हैं पर उनकी बाल-कविता चटोरी चिड़िया की गेयता और उसका चलबुलापन सचमुच चकित करता है। सच कहूं तो बाल-कविता के सामने बहुत सी चुनौतियां हैं जिनमें सबसे बड़ी चुनौती लोकलय एवं पारिवारिक संबंधों की प्रगाढ़ता को बचाए रखने की है।
कवि‍ता के बाद नाटक विधा की बात करें तो बाल नाटकों की इधर दो किताबें मुझे मिली हैं। ये हैं डॉ. प्रकाश पुरोहित की ‘तीन बाल नाटक’ ( राजस्थान संगीत नाटक अकादमी, जोधपुर) तथा भगवती प्रसाद द्विवेदी की आदमी की खोज ( कृतिका बुक्स इंटरनेशनल, इलाहाबाद),   जिसमें उनके सात बाल एकांकी संग्रहीत हैं।
अन्य विधाओं में मनोहर वर्मा की भारतीय जयन्तियां एवं दिवस ( साहित्य भारती, दिल्ली) महत्वपूर्ण पुस्तक है जिसमें लेखक ने भारतीय महापुरुषों के संक्षिप्त जीवन परिचय के साथ उनकी जयंतियां मनाने का सही तरीका तथा आवश्‍यक उपदानों का रोचक ढंग से वर्णन किया है। जिन पाठकों को महापुरूषों के प्रेरणादयी वचनों के संग्रह में रुचि है उन्हें गंगाप्रसाद शर्मा की पुस्तक 1001 अनमोल वचन (स्वास्तिक प्रकाशन, दिल्ली) सहेजने योग्य लग सकती है। इनके अलावा, जैसा कि सब जानते हैं,   हर वर्ष भारत के कुछ बच्चों को उनके साहस और वीरता भरे कारनामों के लिए राष्ट्रीय स्तर पर सम्मानित किया जाता है। रजनीकांत शुक्ल ने ऐसे ही राष्ट्रीय वीरता पुरस्कार से सम्मानित सोलह बहादुर बच्चों की सच्ची कहानियां लिखी हैं जो छोटे-बड़े सभी पाठकों को प्रेरणादायी एवं रोमांचकारी लगेंगी।
आध्यात्मिक गुरु, चिंतक एवं वक्ता ओशो ने एक बार कहा था कि जब हम ईश्‍वर से बात कर रहे होते हैं तो वह प्रार्थना कहलाती है और जब हम ईश्‍वर की बात सुन रहे होते हैं तो वह साधना बन जाती हैं। सच कुछ भी हो पर यह तो मानना पड़ेगा कि प्रार्थना हर मनुष्य को आंतरिक शक्ति प्रदान करती है और शायद यही कारण है कि लगभग हर घर, संस्थान, विद्यालय में अलग-अलग समय पर प्रार्थनाएं गाई जाती हैं। ऐसी ही शक्तिदायी प्रार्थनाओं और राष्ट्रीय वंदनाओं का एक रुचिकर संग्रह शान्ति कुमार स्याल का विनय हमारी सुन लीजिए (विद्यार्थी प्रकाशन, दिल्ली)   है जिसमें एक सौ के लगभग प्रार्थनाएं संग्रहीत हैं।
बाल-साहित्य में रुचि रखने वाले बहुत से पाठकों को साहित्यकारों के बचपन और उनके जीवन के बारे में भी जानने की उत्सुकता रहती है। इस संदर्भ में दो पुस्तकों का उल्लेख मैं यहां करना चाहूंगा। पहली पुस्तक है बचपन भास्कर का (साहित्य भारती,   दिल्ली) जिसमें प्रख्यात साहित्यकार रामदरश मिश्र के बचपन के प्रसंग हैं और दूसरी पुस्तक है ‘वह अभी सफ़र में हैं’ ( प्रवाल प्रकाशन, गाजियाबाद) जिसमें जाने-माने बाल-साहित्यकार योगेन्द्र दत्त शर्मा के व्यक्तित्व एवं कृतित्व पर मार्मिक लेख हैं। ज्ञातव्य है कि योगेन्द्र दत्त शर्मा के दो बालगीत संग्रह आए दिन छुट्टी के और अब आएगा मजा पहले ही काफी चर्चित हो चुके हैं।
और अंत में चलते-चलते प्रकाशान विभाग नयी दिल्ली से प्रकाशित देवेन्द्र मेवाड़ी की पुस्तक- विज्ञान बारहमासा का उल्लेख करना चाहूंगा जिसमें लेखक ने प्रकृति से जुड़े अनेक सवालों के जवाब सीधे, सरल और सटीक ढंग से दिए हैं। निस्संदेह, देवेन्द्र मेवाड़ी की यह पुस्तक विज्ञान पर लिखी गई महत्वपूर्ण बाल पुस्तकों में अपना यथोचित स्थान बनाएगी। (आजकल से साभार)

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