इवान तुर्गनेव
मैं सड़क के किनारे-किनारे जा रहा था कि एक बूढ़े मुझे टोका। लाल सुर्ख़ और
आँसुओं में डूबी आँखें, नीले
होंठ, गंदे हाथ और सड़ते हुए घाव...
'ओह! ग़रीबी ने कितने भयानक
रूप से इसे खा डाला है।'
उसने अपना सूजा हुआ गंदा हाथ मेरे सामने फैला दिया।
एक-एक कर मैंने अपनी सारी जेबें टटोलीं,
लेकिन मुझे न तो अपना बटुआ मिला और न ही घड़ी हाथ लगी, यहाँ तक कि रूमाल भी नदारद था। मैं अपने साथ कुछ भी नहीं
लाया था और भिखारी का फैला हुआ हाथ इंतज़ार करते हुए बुरी तरह काँप रहा था।
लज्जित होकर मैंने उसका वह गंदा, काँपता हुआ हाथ पकड़ लिया, "नाराज़ मत होना मेरे दोस्त, इस
समय मेरे पास कुछ भी नहीं है।"
भिखारी अपनी सुर्ख आँखों से मेरी ओर देखता रह गया। उसके नीले होंठ मुस्करा उठे
और उसने मेरी ठंडी उंगलियाँ थाम लीं, "तो क्या हुआ भाई।" वह धीरे से बोला,
"इसके लिए शुक्रिया,
यह भी तो मुझे कुछ मिला ही है न !" और मुझे लगा, मानो मैंने भी अपने उस भाई से कुछ पा लिया है।
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