Wednesday 19 June 2013

पहले सोपान पर बस इतना ही

कोई पश्चाताप नहीं है, यहां तक, इस तरह पहुंचने का। न आगे के सफर के लिए।
स्वयं में हर व्यक्ति एक अलग तरह की पठनीयता से पूर्ण उपन्यास होता है। उसके जीवन की अपनी नितांत भिन्न और खट्टी-मीठी विविधताओं भरी यात्रा होती है।
जीवन की हर सुबह शाम के सिरहाने तक ले जाती है। रात के पार शुरू होती है एक और नयी सुबह। दिन-अनुदिन जीवन चलता चला जाता है।
मू्र्त सोपानों से गुजरते, अतीत को सौंपते हुए अमूर्त अनुभवों में नयी-नयी उपलब्धियां आकार लेती जाती रहती हैं। अपने जीवन की उपलब्धि-अनुपलब्धियों की आलोचना-प्रत्यालोचना और वर्गीकरण वह व्यक्ति स्वयं करता रहता है।
उसने कहां पहुंचने के सपने देखे थे, उसे वहां कब तक पहुंच जाना था और वह कहां पहुंच गया है, मन और बुद्धि निरंतर हिसाब-किताब लगाते रहते हैं।
कुछ इसी तरह के जीवन के बनते-बिगड़ते मुहावरे रचते-रचाते मीडिया की ऊबड़-खाबड़ सहयात्रा ने पिछले तीन दशक बाद तक मेरे जीवन के भी सपनों, संभावनाओं को नोचा-खसोटा, सहेजा-संभाला और पल-प्रतिपल का हिसाब-किताब लगाये रखा है।
आम आदमी की कोई आत्मकथा नहीं होती है। और मैं तो निरा मामूली ठहरा। तो इस मंच से क्या-क्या साझा करना चाहिए मुझे, जो साथियों, शुभचिंतकों, पाठकों, ब्लॉग प्रेमियों के लिए सुखद हो, मेरा अनुत्तरित द्वंद्व और दुविधा है।
किसी के पास इतनी फुर्सत भी कहां है कि मेरे जीवन के आना-पाई, रत्ती-रेशे, पल-प्रतिपल की उधेड़-बुन में स्वयं को कुछ क्षण भी यहां उलझाना और व्यस्त रखना चाहेगा।
जब अटकते-भटकते हुए यहां तक आ ही गया हूं तो कुछ-न-कुछ साझा करूंगा ही। कोशिश होगी कि इस राह पर कोई अप्रिय और अवांछित न हो जाये किसी के लिए। असावधानी वश ऐसा कुछ हो भी गया तो सबसे क्षमा सहित।
पूरा जीवन सूचनाओं की दुनिया में बीता जा रहा है, साहित्य रिझाता-लुभाता रहा है, दोनो पलड़ों पर झूलता आ रहा हूं, पत्रकार और साहित्यकार, दोनो मेरे लिए समान भाव से प्रिय रहे हैं और आज भी हैं तो स्वाभाविक रूप से यहां की शब्दयात्रा भी जीवन और अनुभवों के द्वैत से असंपृक्त न होगी।
बहुत-कुछ ऐसा भी साझा होगा-ही-होगा कि मनुष्यता के अपहर्ताओं का जी दुखा दे। वैसा कुछ होना किसी मनुष्य के लिए दुखद नहीं होता है।
पहले सोपान पर बस इतना ही।  

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