घुड़की भी एक कला है। इसके कई रूप हैं। रोब-रुतबे का प्रदर्शन घुड़की है। मैंने ऐसे घुड़कीबाज नामवरों को मीडिया की दुनिया में बहुत करीब से देखा-भोगा है। अखबार या न्यूज चैनल के सिरहाने बैठे हैं। अपने नखरों के मारे हुए ऐसे कई नामवरों को शब्द तो दुत्कार-खदेड़ देते हैं। फिर वे घुड़की, रुतबे, नाज-नखरें से काम चलाते हैं। साहब को खबरें लिखने नहीं आता तो क्या, घुड़की है न। काम चल जाता हैं। लिखने-पढ़ने से क्या वास्ता। पत्र-कार हैं, पत्र का तमगा है, कार है, चमचों की पंचाट है, नौकर-चाकर हैं और गुदगुदाने के लिए मालिक के तलवे हैं...बस नौकरी चल निकलती है।
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