........ सीधी, शहडोल, सागर, विदिशा, उमरिया आदि ऐसे जिले, जहां के लाखों बाशिंदों का दर्द पन्नों पर दर्ज नहीं। इतनी कड़वी सच्चाइयां कि जो जाने-सुने, हैरत में पड़ जाए। वहां के ऐसे गांव-के-गांव, पीढ़ियों से वहां रहने के बावजूद, उन जमीनों के उनके नाम पट्टे नहीं, जिन पर उनके मकान बने हैं। ऊपर ही ऊपर जमीनों के सौदे हो जाते हैं, वे अपनी जड़ों से उजड़कर कहीं और जा बसते हैं। ऐसे तमाम लोग उन बांधों के नीचे झुग्गियां डालकर मेहनत-मजदूरी से जीवन बसर कर रहे हैं या जंगलों में जाकर शरण ले रहे हैं। सरकार कहती कुछ है, जमीनी हकीकत कुछ और है।
बाबा कालूदास बताते हैं कि पीढ़ियों से वहां होने के बावजूद उनके नाम तो कार्ड नहीं, जिनके पास ट्रैक्टर-गाड़ियां हैं, उनके पूरे के पूरे परिवार गरीबी रेखा के नीचे दर्शाकर उन्हें राशन कार्ड दिए गए हैं। जब ये गरीब राशन अथवा तेल मांगने जाते हैं, फटकार कर भगा दिया जाता है। जीहुजूरी पर लीटर दो लीटर मिल जाता है, बाकी सब दबंगों को बांट दिया जाता है।
बाबा कालूदास इस समय नैक्डोर के उस आंदोलन से जुड़े हैं, जो अशोक भारती और संजय भारती के नेतृत्व में हर भूमिहीन आदिवासी को पांच-पांच एकड़ जमीन देने की लड़ाई लड़ रहा है। ये लोग पंचायत अधिनियम और भूमि वितरण कानून का भी इन दिनो बारीकी से अध्ययन कर रहे हैं।
उनका कहना है कि हम अपनी लड़ाई को किसी भी हद तक ले जाएंगे मगर अब पीछे नहीं हटेंगे। हमारा दुख न राज्य सरकार सुन रही है, न केंद्र सरकार। हमे सुनियोजित तरीके से हमारे इलाकों से खदेड़ा जा रहा है। हमारी जमीनें, हमारे जंगल, खदानें, पानी पर लगातार सरकार के सहयोग से कब्जे होते जा रहे हैं। कहीं सुनवाई नहीं, जैसे लगता ही नहीं कि हम अपने देश में रह रहे हैं।
बाबा कालूदास बताते हैं कि पीढ़ियों से वहां होने के बावजूद उनके नाम तो कार्ड नहीं, जिनके पास ट्रैक्टर-गाड़ियां हैं, उनके पूरे के पूरे परिवार गरीबी रेखा के नीचे दर्शाकर उन्हें राशन कार्ड दिए गए हैं। जब ये गरीब राशन अथवा तेल मांगने जाते हैं, फटकार कर भगा दिया जाता है। जीहुजूरी पर लीटर दो लीटर मिल जाता है, बाकी सब दबंगों को बांट दिया जाता है।
बाबा कालूदास इस समय नैक्डोर के उस आंदोलन से जुड़े हैं, जो अशोक भारती और संजय भारती के नेतृत्व में हर भूमिहीन आदिवासी को पांच-पांच एकड़ जमीन देने की लड़ाई लड़ रहा है। ये लोग पंचायत अधिनियम और भूमि वितरण कानून का भी इन दिनो बारीकी से अध्ययन कर रहे हैं।
उनका कहना है कि हम अपनी लड़ाई को किसी भी हद तक ले जाएंगे मगर अब पीछे नहीं हटेंगे। हमारा दुख न राज्य सरकार सुन रही है, न केंद्र सरकार। हमे सुनियोजित तरीके से हमारे इलाकों से खदेड़ा जा रहा है। हमारी जमीनें, हमारे जंगल, खदानें, पानी पर लगातार सरकार के सहयोग से कब्जे होते जा रहे हैं। कहीं सुनवाई नहीं, जैसे लगता ही नहीं कि हम अपने देश में रह रहे हैं।
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