जनता क्या है? एक शब्द…सिर्फ एक शब्द है:
कुहरा,कीचड़ और कांच से बना हुआ…
एक भेड़ है, जो दूसरों की ठण्ड के लिये
अपनी पीठ पर ऊन की फसल ढो रही है।
एक पेड़ है, जो ढलान पर हर आती-जाती
हवा की जुबान में हाँऽऽ..हाँऽऽ करता है ।
जो दाँतों और दलदलों का दलाल है, वही देशभक्त है
यहां कायरता के चेहरे पर सबसे ज्यादा रक्त है,
जिसके पास थाली है, हर भूखा आदमी
उसके लिये, सबसे भद्दी गाली है
हर तरफ कुआँ है, हर तरफ खाई है
यहाँ सिर्फ वह आदमी देश के करीब है
जो या तो मूर्ख है या फिर गरीब है।
कुहरा,कीचड़ और कांच से बना हुआ…
एक भेड़ है, जो दूसरों की ठण्ड के लिये
अपनी पीठ पर ऊन की फसल ढो रही है।
एक पेड़ है, जो ढलान पर हर आती-जाती
हवा की जुबान में हाँऽऽ..हाँऽऽ करता है ।
जो दाँतों और दलदलों का दलाल है, वही देशभक्त है
यहां कायरता के चेहरे पर सबसे ज्यादा रक्त है,
जिसके पास थाली है, हर भूखा आदमी
उसके लिये, सबसे भद्दी गाली है
हर तरफ कुआँ है, हर तरफ खाई है
यहाँ सिर्फ वह आदमी देश के करीब है
जो या तो मूर्ख है या फिर गरीब है।
No comments:
Post a Comment