एक पेड़ चांदनी लगाया है आंगने ।
फूले तो आ जाना एक फूल मांगने ।
ढिबरी की लौ जैसे लीक चली आ रही,
बादल का रोना है, बिजली शरमा रही,
मेरा घर छाया है तेरे सुहाग ने।
तन कातिक, मन अगहन बार-बार हो रहा,
मुझमें तेरा कुवार जैसे कुछ बो रहा,
रहने दो यह हिसाब कर लेना बाद में।
नदी झील, सागर से रिश्ते मत जोड़ना,
लहरों को आता है यहां-वहां छोड़ना,
मुझको पहुंचाया है तुम तक अनुराग ने।
फूले तो आ जाना एक फूल मांगने ।
ढिबरी की लौ जैसे लीक चली आ रही,
बादल का रोना है, बिजली शरमा रही,
मेरा घर छाया है तेरे सुहाग ने।
तन कातिक, मन अगहन बार-बार हो रहा,
मुझमें तेरा कुवार जैसे कुछ बो रहा,
रहने दो यह हिसाब कर लेना बाद में।
नदी झील, सागर से रिश्ते मत जोड़ना,
लहरों को आता है यहां-वहां छोड़ना,
मुझको पहुंचाया है तुम तक अनुराग ने।
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