Thursday, 4 December 2014

संजीव भट्ट

उर्दू है मेरा नाम मैं खुसरो कि पहेली...
उर्दू है मेरा नाम मैं खुसरो की पहेली
मैं मीर की हमराज हूँ ,ग़ालिब की सहेली
दक्कन की वली ने मुझे गोदी में खिलाया
सौदा के क़सीदो ने मेरा हुस्न बढ़ाया
है मीर की अज़मत कि मुझे चलना सिखाया
मैं दाग़ के आंगन में खिली बन के चमेली
उर्दू है मेरा नाम मैं खुसरो कि पहेली
ग़ालिब ने बुलंदी का सफर मुझको सिखाया
हाली ने मुरव्वत का सबक़ याद दिलाया
इक़बाल ने आइना-ए-हक़ मुझको दिखाया
मोमिन ने सजाई मेरी ख्वाबो की हवेली॥
उर्दू है मेरा नाम मैं खुसरो कि पहेली॥॥
है ज़ौक़ की अजमत कि दिए मुझको सहारे
चकबस्त की उल्फत ने मेरे ख़्वाब संवारे
फानी ने सजाये मेरी पलकों पे सितारे
अकबर ने रचाई मेरी बेरंग हथेली
उर्दू है मेरा नाम ..
क्यों मुझको बनाते हो तास्सुब का निशाना
मैंने तो कभी खुद को मुसलमाँ नही माना
देखा था कभी मैंने खुशियों का ज़माना
अपने ही वतन में हूँ आज अकेली
उर्दू है मेरा नाम मैं खुसरो कि पहेली...

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