Monday, 15 December 2014

तुमने ऐसा क्यों किया राधा / जयप्रकाश त्रिपाठी

अब तो एक थी राधा;
गुजरे चार वर्षों से अनायास मेरी पत्नी के साये की तरह।
सुबह आना, शाम आना, मदद में जितना हो सके, घरेलू कामों में हाथ बंटाना,
घंटों साथ-साथ चाय-पानी, हंसी-ठट्ठा,
अपने घर के ढेर सारे दुख-अभाव साझा करना.....

कि 'नौ भाई-बहनों में मैं मझली। बड़ी बहन को टीबी। मुझसे छोटकी की बाबू ने शादी कर दी। मेरी क्यों नहीं!

  'सुबह निकलती हूं घर से गर्मी-जाड़ा-बरसात बारहो महीने। घर-घर झाड़ू-पोछा-बरतन-कपड़ा, साफ-सफाई। देर शाम तक लौट पाती हूं तिरपाल के घर में।

 'ये सब करते हुए दो साल पहले हाईस्कूल कर ली, अब इंटर करने ही वाली हूं, क्या करूंगी पढ़-लिखकर, बाबू पता नहीं कब तक, किसी के हाथ सौंपेंगे भी या नहीं!

 'मां कहती है तेरे इत्ते पैसे से घर नहीं चल रहा, दो-एक घर और पकड़ लेती, चाहे तो उधर ही कहीं रह लिया कर, हफ्ते में एक दिन आकर मिल जाया कर, चाहे तो अगले दिना जाया कर।

 'एक भाई पागल है, पता नहीं कहां कहां महीनो घूम-भटक कर आ जाता है बाबू के पास। बाकी तीन भाई निठल्ले, सभी मुझसे बड़े। गांव मे सोलह बीघे खेत है। बाबू चाहे तो उसी में से एक-दो बीघे निकाल कर मुझे विदा कर सकता है पर मेरे बारे में न वो कुछ सोचता है, न मां।

 'मैं कब तक उनके पेट पालूं। बाबू रोजाना कच्ची शराब पीकर घर में ऊधम करता है। मेरे मोहल्ले के लड़के भी बड़े ऊधमी हैं, सब हरामी, सब। पड़ोस की अधपगली को नोचते रहते हैं। उनके चंगुल से छूटकर वह सबको आपबीती बता देती है, तब भी मुओ को शर्म-हया नहीं। ऐसा कहीं न होगा।

 'मां-बाबू ने क्या इसी लिए जन्माया मुझे। बड़ा गुस्सा आता है खुद पर भी। एक दिन तो घर से बड़े गुस्से में आप के घर आयी थी, ये सोचकर कि आपकी बाहर वाली खिड़की का शीशा तोड़कर कहीं भाग जाऊंगी.... हाहाहाहाहाहा..'

 'ऐसा क्यों?'

 'बस ऐसे ही'

 'अरे, ये क्या बात हुई, ऐसा करना मत कभी, पिट जायेगी'

 'अच्छा, कौन पीटेगा मुझे, आप!'

 'हां, शीशे तोड़ूगी तो मैं भी पीट सकती हूं'

 'अच्छा, इतनी हिम्मत'

 'अरे, पागल हो गयी है क्या?'

.... और परसो दोपहर बारिश के दौरान राधा सचमुच बाहर वाली खिड़की पर बड़ा-सा पत्थर मार कर भाग गयी। ज्यादा नहीं, 370 रुपये की चपत। उसने ऐसा क्यों किया, समझ नहीं पा रहा...डेढ़ हजार रुपये भी मांग ले गयी थी पिछले महीने...
राधा तुम तो ऐसी नहीं थी। क्यों की तुमने ऐसी हरकत!
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