Saturday, 22 November 2014

बेचारे हम / जयप्रकाश त्रिपाठी

जीते हुए हम, हारे हुए हम, 
हारे हुए लोगों के सहारे हुए हम । 
बाबू हुए तुम, राजा हुए तुम, 
आदमी बेचारे के बेचारे हुए हम।
आंख-आंख पर शीशे का शहर, 
जाएं कहां पत्थरों के मारे हुए हम।
इक्कीसवीं सदी, दूध की नदी, 
सूखी हुई झील के किनारे हुए हम .....

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