बेचारे हम / जयप्रकाश त्रिपाठी
जीते हुए हम, हारे हुए हम,
हारे हुए लोगों के सहारे हुए हम ।
बाबू हुए तुम, राजा हुए तुम,
आदमी बेचारे के बेचारे हुए हम।
आंख-आंख पर शीशे का शहर,
जाएं कहां पत्थरों के मारे हुए हम।
इक्कीसवीं सदी, दूध की नदी,
सूखी हुई झील के किनारे हुए हम .....
सुंदर !
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