Tuesday, 25 November 2014

आज याद आया 1980 में लिखा अपना एक नवगीत / जयप्रकाश त्रिपाठी

है मुझे मालूम, आंखें फेर लेंगे फूल; तब -
तुम लौट आना, मैं तुम्हे मधुमास दूंगा।

सूख जायें आंख के आंसू,
समय मन तोड़ दे जब,
मांग में सिंदूर, कंगन हाथ में
कोई पिन्हाकर छोड़ दे जब -
लौट आना, मैं तुम्हे विश्वास दूंगा....


हाथ मेंहदी को तरस जायें,
भरे सावन घटाएं इंद्रधनुषाकार
उग आयें क्षितिज पर, लौट आना
पंख दूंगा मैं, नया आकाश दूंगा......

(उन दिनो गेंदा मेरा सबसे पसंदीदा फूल हुआ करता था, घर वालों के लाख मना करने के बावजूद बार-बार आंगन में गेंदे के अनेक पौधे रोपकर उनके खिलने का इंतजार करता रहता था.... गये, न फिर लौटेंगे वो दिन. )

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