चारो तरफ विक्षिप्तता का माहौल, लंपट युवा नवरात्र पूजा में व्यस्त, लंपट-धनधान्य संपन्न साहित्यकार आपसी चापलूसियों में, लंपट पत्रकार धन-मीडिया की जयजयकार में, बुजुर्ग लंपट हर जगह स्त्री-रचनाकारों की गोलबंदी में, लंपट छात्र मोदी के जयकारों में, धनी किसान जात-पांत की खेती-बाड़ी में, लंपट दलित मायावती की मोह-माया में, कम्युनिस्टनुमा फिकरेबाज-धोखेबाज पूंजी की दलाली में आकंठ डूबे हुए....अंधे समय की अंधी दौड़, फिर भी उम्मीद रखनी चाहिए कि हरतरह की खराबियों का हमेशा अंतिम अध्याय भी लिखा जाता रहा है, इस गंदे जयकारों का अंत भी वे युवा जरूर करेंगे, जो भगत सिंह जैसे शहीदों की कुर्बानियों को अपना जीवन-दर्शन मानते हैं, जो आम आदमी के लिए बेहतर दुनिया के सपने देखते हैं, जिन्हें मनुष्यता से अथाह प्यार है, वही कालजयी होंगे, वे ही हमारे अपने हैं.. (27-28 सिंतंबर की रात पैदा हुए थे शहीद भगत सिंह, जिन्हें अंग्रेजों ने हुसैनीवाला में टुकड़े-टुकड़े कर फेक दिया..)
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