
दिनकर जी के बारे में एक और बात कम लोग जानते हैं वह ये कि शुरू में रामधारी सिंह दिनकर अमिताभ के नाम से लिखना शुरू किया था, लेकिन बाद में उन्होंने अपने मूल नाम रामधारी सिंह ‘दिनकर’ को ही अपना लिया। पत्रकारिता से लगाव और लगातार कई पत्र-पत्रकाओं में लिखने के कारण ही स्वतंत्रता मिलने के बाद रामधारी सिंह ‘दिनकर’ को प्रचार विभाग का डिप्टी डायरेक्टर बनाया गया। निर्भीक पत्रकारिता धर्म को नहीं छोड़ने की वजह से ही एक बार उनकी नौकरी पर बन आई थी। देश के पहले राष्ट्रपति राजेंद्र प्रसाद के इंटरव्यू लेने से कुछ विवाद हो जाने के कारण उनकी नौकरी पर बन आई थी, लेकिन उन्होंने उसकी भी कोई परवाह नहीं की।
रामधारी सिंह ‘दिनकर’ उस दौर के कवि हैं जब कविता की दुनिया से छायावाद का दौर खत्म हो रहा था। पटना विश्वविद्यालय से स्नातक करने के बाद दिनकर जी जिविकोपार्जन के लिए एक हाईस्कूल में अध्यापन कार्य किया। उसके बाद अनेक महत्वपूर्ण प्राशासनिक पदों पर भी रहे। मुज़फ्फ़रपुर कॉलेज में हिन्दी के विभागाध्यक्ष बने और बाद में भागलपुर विश्वविद्यालय के उपकुलपति भी बने। कई सम्मानों और अलंकरण से सम्मानित होने के साथ ही दिनकर जी को भारत सरकार के पद्म विभूषण अलंकरण से भी सम्मानित किया गया। और अंत में 24 अप्रैल सन 1974 को राष्ट्रकवि रामधारी सिंह ‘दिनकर’ का देहावसान हो गया।
अपने जीवनकाल में दिनकर जी ने कई कालजयी रचना की हैं जिनमें ‘मिट्टी की ओर’, ‘अर्ध्दनारीश्वर’, ‘रेती के फूल’, ‘वेणुवन’ के अलावा ‘संस्कृति के चार अध्याय’ जैसे ग्रंथ शामिल हैं। उनके नाम ‘रेणुका’, ‘हुंकार’, ‘रसवंती’, ‘कुरुक्षेत्र’, ‘रश्मिरथी’, ‘परशुराम की प्रतिज्ञा’, ‘हारे को हरिनाम’ और ‘उर्वशी’ जैसे काव्य संकलन हैं। उनके लेखन में विविधता के साथ विधा के भी कई रूप समाहित हैं।
वैसे तो उन्होंने कई कालजयी कृति की रचना की लेकिन रश्मिरथी हर दृष्टि से अद्वितीय है। वैसे तो उनकी रचना रश्मिरथी काव्यखंड है लेकिन वह सामाजिक न्याय और वर्ण विभेद पर जिस प्रकार करारा प्रहार किया गया है उस दृष्टि से आधुनिक गीता है।
रामधारी सिंह को दैहिक संसार छोड़े हुए 40 साल गुजर चुके हैं लेकिन आज भी उनकी रचनाएं देश की जनता के जुबां पर बनी हुई है। उन्होंने जिस प्रकार की देशभक्ति और वीर रस की कविता लिखी है उनके छंदों को कौन भूल सकता है।
‘रोको युद्धिष्ठिर को न यहां, जाने दो उनको स्वर्ग धीर
पर फिरा हमें गांडिव गदा, लौटा दे अर्जुन भीम वीर’
उनकी कविता की ये लाइन जब भी सुनाई पड़ेगी क्यों नहीं सबके जुबां पर एक साथ निकलकर हमेशा के लिए गूंजती रहेंगी। राष्ट्रकवि रामधारी सिंह ‘दिनकर’ की जयंती पर उन्हे हार्दिक नमन।
बहुत खूब
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