ॐ शब्द ही ब्रह्म है.. ॐ शब्द्, और शब्द, और शब्द, और शब्द
ॐ प्रणव, ॐ नाद, ॐ मुद्रायें, ॐ वक्तव्य, ॐ उदगार्, ॐ घोषणाएं
ॐ भाषण... ॐ प्रवचन... ॐ हुंकार, ॐ फटकार्, ॐ शीत्कार
ॐ फुसफुस, ॐ फुत्कार, ॐ चीत्कार ॐ आस्फालन, ॐ इंगित,
ॐ इशारे, ॐ नारे, और नारे, और नारे, और नारे।
ॐ सब कुछ, सब कुछ, सब कुछ, ॐ कुछ नहीं, कुछ नहीं,
कुछ नहीं, ॐ पत्थर पर की दूब, खरगोश के सींग
ॐ नमक-तेल-हल्दी-जीरा-हींग, ॐ मूस की लेड़ी,
कनेर के पात, ॐ डायन की चीख, औघड़ की अटपट बात
ॐ कोयला-इस्पात-पेट्रोल, ॐ हमी हम ठोस, बाकी सब फूटे ढोल
ॐ इदमान्नं, इमा आपः इदमज्यं, इदं हविः, ॐ यजमान, ॐ पुरोहित,
ॐ राजा, ॐ कविः, ॐ क्रांतिः क्रांतिः सर्वग्वंक्रांतिः,
ॐ शांतिः शांतिः शांतिः सर्वग्यं शांतिः, ॐ भ्रांतिः भ्रांतिः भ्रांतिः सर्वग्वं भ्रांतिः
ॐ बचाओ बचाओ बचाओ बचाओ, ॐ हटाओ हटाओ हटाओ हटाओ
ॐ घेराओ घेराओ घेराओ घेराओ, ॐ निभाओ निभाओ निभाओ निभाओ
ॐ दलों में एक दल अपना दल, ॐ, ॐ अंगीकरण, शुद्धीकरण,
राष्ट्रीकरण, ॐ मुष्टीकरण, तुष्टिकरण, पुष्टीकरण, ॐ ऎतराज़,
आक्षेप, अनुशासन, ॐ गद्दी पर आजन्म वज्रासन, ॐ ट्रिब्यूनल,
ॐ आश्वासन, ॐ गुटनिरपेक्ष, सत्तासापेक्ष जोड़-तोड़
ॐ छल-छंद, ॐ मिथ्या, ॐ होड़महोड़
ॐ बकवास, ॐ उदघाटन, ॐ मारण मोहन उच्चाटन
ॐ काली काली काली महाकाली महकाली
ॐ मार मार मार वार न जाय खाली, ॐ अपनी खुशहाली
ॐ दुश्मनों की पामाली, ॐ मार, मार, मार, मार, मार, मार, मार
ॐ अपोजीशन के मुंड बने तेरे गले का हार
ॐ ऎं ह्रीं क्लीं हूं आङ, ॐ हम चबायेंगे तिलक और गाँधी की टाँग
ॐ बूढे की आँख, छोकरी का काजल,
ॐ तुलसीदल, बिल्वपत्र, चन्दन, रोली, अक्षत, गंगाजल
ॐ शेर के दांत, भालू के नाखून, मर्कट का फोता
ॐ हमेशा हमेशा राज करेगा मेरा पोता
ॐ छूः छूः फूः फूः फट फिट फुट, ॐ शत्रुओं की छाती अर लोहा कुट
ॐ भैरों, भैरों, भैरों, ॐ बजरंगबली, ॐ बंदूक का टोटा, पिस्तौल की नली
ॐ प्रणव, ॐ नाद, ॐ मुद्रायें, ॐ वक्तव्य, ॐ उदगार्, ॐ घोषणाएं
ॐ भाषण... ॐ प्रवचन... ॐ हुंकार, ॐ फटकार्, ॐ शीत्कार
ॐ फुसफुस, ॐ फुत्कार, ॐ चीत्कार ॐ आस्फालन, ॐ इंगित,
ॐ इशारे, ॐ नारे, और नारे, और नारे, और नारे।
ॐ सब कुछ, सब कुछ, सब कुछ, ॐ कुछ नहीं, कुछ नहीं,
कुछ नहीं, ॐ पत्थर पर की दूब, खरगोश के सींग
ॐ नमक-तेल-हल्दी-जीरा-हींग, ॐ मूस की लेड़ी,
कनेर के पात, ॐ डायन की चीख, औघड़ की अटपट बात
ॐ कोयला-इस्पात-पेट्रोल, ॐ हमी हम ठोस, बाकी सब फूटे ढोल
ॐ इदमान्नं, इमा आपः इदमज्यं, इदं हविः, ॐ यजमान, ॐ पुरोहित,
ॐ राजा, ॐ कविः, ॐ क्रांतिः क्रांतिः सर्वग्वंक्रांतिः,
ॐ शांतिः शांतिः शांतिः सर्वग्यं शांतिः, ॐ भ्रांतिः भ्रांतिः भ्रांतिः सर्वग्वं भ्रांतिः
ॐ बचाओ बचाओ बचाओ बचाओ, ॐ हटाओ हटाओ हटाओ हटाओ
ॐ घेराओ घेराओ घेराओ घेराओ, ॐ निभाओ निभाओ निभाओ निभाओ
ॐ दलों में एक दल अपना दल, ॐ, ॐ अंगीकरण, शुद्धीकरण,
राष्ट्रीकरण, ॐ मुष्टीकरण, तुष्टिकरण, पुष्टीकरण, ॐ ऎतराज़,
आक्षेप, अनुशासन, ॐ गद्दी पर आजन्म वज्रासन, ॐ ट्रिब्यूनल,
ॐ आश्वासन, ॐ गुटनिरपेक्ष, सत्तासापेक्ष जोड़-तोड़
ॐ छल-छंद, ॐ मिथ्या, ॐ होड़महोड़
ॐ बकवास, ॐ उदघाटन, ॐ मारण मोहन उच्चाटन
ॐ काली काली काली महाकाली महकाली
ॐ मार मार मार वार न जाय खाली, ॐ अपनी खुशहाली
ॐ दुश्मनों की पामाली, ॐ मार, मार, मार, मार, मार, मार, मार
ॐ अपोजीशन के मुंड बने तेरे गले का हार
ॐ ऎं ह्रीं क्लीं हूं आङ, ॐ हम चबायेंगे तिलक और गाँधी की टाँग
ॐ बूढे की आँख, छोकरी का काजल,
ॐ तुलसीदल, बिल्वपत्र, चन्दन, रोली, अक्षत, गंगाजल
ॐ शेर के दांत, भालू के नाखून, मर्कट का फोता
ॐ हमेशा हमेशा राज करेगा मेरा पोता
ॐ छूः छूः फूः फूः फट फिट फुट, ॐ शत्रुओं की छाती अर लोहा कुट
ॐ भैरों, भैरों, भैरों, ॐ बजरंगबली, ॐ बंदूक का टोटा, पिस्तौल की नली
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भारतीय जनकवि का प्रणाम / नागार्जुन
गोर्की मखीम!
श्रमशील जागरूक जग के पक्षधर असीम!
घुल चुकी है तुम्हारी आशीष
एशियाई माहौल में
दहक उठा है तभी तो इस तरह वियतनाम ।
अग्रज, तुम्हारी सौवीं वर्षगांठ पर
करता है भारतीय जनकवि तुमको प्रणाम ।
गोर्की मखीम!
विपक्षों के लेखे कुलिश-कठोर, भीम
श्रमशील जागरूक जग के पक्षधर असीम!
गोर्की मखीम!
दर-असल'सर्वहारा-गल्प' का
तुम्हीं से हुआ था श्रीगणेश
निकला था वह आदि-काव्य
तुम्हारी ही लेखनी की नोंक से
जुझारू श्रमिकों के अभियान का...
देखे उसी बुढ़िया ने पहले-पहल
अपने आस-पास, नई पीढी के अन्दर
विश्व क्रान्ति,विश्व शान्ति, विश्व कल्याण ।
'मां' की प्रतिमा में तुम्ही ने तो भरे थे प्राण ।
गोर्की मखीम!
विपक्षों के लेखे कुलिश-कठोर, भीम
श्रमशील जागरूक जग के पक्षधर असीम!
गोर्की मखीम!
घिन तो नहीं आती है / नागार्जुन
पूरी स्पीड में है ट्राम
खाती है दचके पै दचके
सटता है बदन से बदन
पसीने से लथपथ ।
छूती है निगाहों को
कत्थई दांतों की मोटी मुस्कान
बेतरतीब मूँछों की थिरकन
सच सच बतलाओ
जी तो नहीं कढता है ?
कुली मज़दूर हैं
बोझा ढोते हैं , खींचते हैं ठेला
धूल धुआँ भाप से पड़ता है साबका
थके मांदे जहाँ तहाँ हो जाते हैं ढेर
सपने में भी सुनते हैं धरती की धड़कन
आकर ट्राम के अन्दर पिछले डब्बे मैं
बैठ गए हैं इधर उधर तुमसे सट कर
आपस मैं उनकी बतकही
सच सच बतलाओ
जी तो नहीं कढ़ता है ?
घिन तो नहीं आती है ?
दूध-सा धुला सादा लिबास है तुम्हारा
निकले हो शायद चौरंगी की हवा खाने
बैठना है पंखे के नीचे , अगले डिब्बे मैं
ये तो बस इसी तरह
लगाएंगे ठहाके, सुरती फाँकेंगे
भरे मुँह बातें करेंगे अपने देस कोस की
सच सच बतलाओ
अखरती तो नहीं इनकी सोहबत ?
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