Saturday, 25 January 2014

बलिदान से पहले 22 मार्च 1931 को लिखा गया देशवासियों को अंतिम पत्र के मुख्य अंश
" स्वाभाविक है ..जीने की इक्षा मुझमे भी होनी चाहिए , मै इसे छुपाना नहीं चाहता ..लेकिन मै एक शर्त पर जिदा रह सकता हूँ ..मै कैद और पाबंद बन कर जीना नहीं चाहता ..दिलेराना ढंग से हसते - हसते मेरे फांसी पर चढ़ने की सूरत में ' हिन्दुस्तानी माताएं अपने बच्चो को भगत सिंह बनाने की आरजू किया करेंगी और देश के लिए कुर्बानी देने वालों की तादात इतनी बढ़ जाएगी की क्रांति और आजादी को रोकना हुकूमतों और नापाक शैतानी ताकतों के लिए असंभव हो जायेगा ...हां एक विचार आज भी मेरे मन में आता है ..की देश और मानवता के लिए जो कुछ करने की हसरतें मेरे दिल में थी उसका हजारवा भाग भी पूरा न कर सका अगर मै आजाद और जिदा रहता तो इन्हें पूरा करने का अवसर मिलता . मुझसे अधिक सौभाग्यशाली कौन है .अब तो बड़ी बेताबी से अंतिम परीक्षा का इन्तजार है .कामना है यह और नजदीक आये .आप सभी देश भाइयों का साथी ,
भगत सिंह

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