Thursday, 5 December 2013

जिनको झुक कर दुनिया करे सलाम

 भारत में दलित आंदोलन के योद्धा डॉक्टर भीमराव अंबेडकर का आज निर्वाण दिवस है।
आज की मनहूस सुबह एक और उदासी से भर गई।
यद्यपि अंदेशा महीनो से था, जब नेल्सन मंडेला दोबारा अस्पताल में भरती कराये गये थे लेकिन अंतिम सत्य की तरह ऐसी कोई भी सूचना अकस्मात प्रकट होने पर हिम्मत डगमगा देती है। नेल्सन मंडेला नहीं रहे।
रंगभेदी शासकों की जेल में सत्ताईस साल काटने के बाद वह जब अपने वतनपरस्तों के बीच लौटे तो सजदे में मानो पूरी दुनिया ही झुक गई थी।
वर्ष 1964 में जेल जाने के बाद वह पूरी दुनिया में नस्लभेद (‘एपरथाइड’) विरोधी योद्धा के रूप में उभरे थे। जब 1994 में मंडेला देश के राष्ट्रपति बने, नस्लभेद समाप्त हो चुका था।
अपने देश के पहले काले राष्ट्रपति का पद संभालते हुए उन्होंने कई अन्य आंदोलनों को रफ्तार दी थी।
उन्हें 1993 में नोबेल शांति पुरस्कार से भी सम्मानित किया गया.
आज दुनिया से उनके अंतिम रूप से विदा हो जाने के बाद कई-कई स्मृतियां कौंध जाती हैं।
जिन्हें मनुष्यों की दुनिया अपना जननायक मानती थी, अमरीका और ब्रिटेन सहित कई देशों की सरकारें और राजनेता उन्हें कभी दुनिया का सबसे खतरनाक आदमी करार देते रहे थे।
अमरीका ने 1991 में अपनी सरकारी लिस्ट से मंडेला का नाम आतंकवादियों की लिस्ट से हटाया था।
पचहत्तर साल की उम्र में, जबकि राष्ट्रपति नहीं थे, वर्ष 1993 में भारत आए थे मंडेला। विनी साथ नहीं थीं। कैद से छूटने के बाद। गांधी की स्मृतियां ताजा करने। वहां गए थे, जहां गांधी को गोली मारी गई थी।
1970 के दशक में आक्रामक ‘अश्वेत चेतना आंदोलन’ के उदय और इस आंदोलन के संस्थापकों में से छात्र कार्यकर्ता स्टीव बिको की हिरासत में मौत ने मंडेला को झकझोर दिया था।

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