जयप्रकाश त्रिपाठी
प्रधानमंत्री पद के भाजपाई उम्मीदवार नरेंद्र मोदी और कांग्रेस के भावी प्रधानमंत्री राहुल गांधी अपनी-अपनी चुनाव सभाओं में मतदाताओं का मन भरमाने के लिए पोंगा विलाप करते डोल रहे हैं। एक जनाब कह रहे हैं, दादी-पिता की तरह उन्हें भी निशाने पर लिया जा सकता है। दूसरे सज्जन अलापते हैं, आशीर्वाद है कि मैं जिंदा हूं। प्रश्न उठता है कि भारतीय कानून व्यवस्था में जब देश के भावी प्रधानमंत्रियों के डर-भय का ये हाल है तो जनता का क्या होगा। लोकतांत्रिक देश है। कहने के लिए सबको समान अधिकार है। पूरी सुरक्षा व्यवस्था कुछ लोगों की रखवाली में है। उस पर अरबों रुपये सालाना खर्च हो रहा है जनता का। जनता के टैक्स पर अधिकारी और नेता मौज उड़ा रहे हैं।
प्रधानमंत्री के लिए ढोंग की भाषा बोलने की बजाय जनता की उन वास्तविक समस्याओं पर बोलने से ये नेता कतरा रहे हैं। इतनी चौकसी लपेटने के बावजूद उन्हें अपनी-अपनी जान का डर है। हैरत है। तो जनता क्या करे। वे क्यों बार-बार रैलियों में अपनी जान की दुहाई दे रहे हैं। जनता की जान क्या खैरियत में हैं। वे महंगाई पर महंगाई लादते हुए जनता की जान लेने पर आमादा हैं। अपराधियों को राजनेता बना कर जनता की बहू-बेटियों की इज्जत-आबरू खतरे में डाले हुए हैं। कानून व्यवस्था हर प्रदेश में हाशिये पर है। दिनदहाड़े लोग मारे जा रहे हैं, लूटे जा रहे हैं। श्रम कानूनों का अपहरण कर करोड़ों मेहनतकशों को मरने के लिए छोड़ दिया है। देश कर्जखोरी में डूबता जा रहा है और स्विस बैंक में वे देसी चोरी का माल तहियाते जा रहे हैं। क्या उन्हें देसी-विदेशी कंपनियों की चाटुकारिता करने के लिए प्यार किया जाए। महंगाई के कोड़े खाने के लिए चुना जाए!
वह किसके लोकतंत्र की हिफाजत के लिए राजधानियों में कुंडली मारना चाहते हैं। लोकपाल विधेयक पर क्यों बाएं-दाएं झांकते हैं! पटेल की गगन चुंबी प्रतिमा किसके पैसे से बनवा रहे हैं। किसके पैसे से दिनरात हवाई यात्राएं कर रहे हैं। आखिर कैसे उनके और अफसरों के लग्गू-भग्गू तक सियासी बाना ओढ़ते ही साल-छह महीने में लखपति-करोड़पति हो जा रहे हैं। दो रुपये में प्याज खरीद कर सौ रुपये में बेचने वाले जमाखोरों को संरक्षण कौन दे रहा है! जनता को सब पता है। हकीकत तो ये है, उसके सामने कोई तीसरा विकल्प नजर नहीं आ रहा है।
इसलिए वे अपनी रैलियों में चाहे जितने सयाने बन लें, जितने तरह के फर्जी विलाप कर लें, चैनल चाहे जितनी बेशर्मी से खलनायक को नायक बनाने का खेल खेल लें, जनता सब देख रही है। सब जान रही है। सच तो ये है कि अपनी अशिक्षा और नादानी के चलते वह इन खद्दरधारी दुरंगों, सरमायेदारों के चौकीदार-जोकरों, लुटेरों-मवालियों के सफेदपोश संरक्षकों, प्याज के जमाखोरों से चुनावी थैलियां खसोटने वाले जेबकतरों, किसी भी समय डीजल-पेट्रोल के दाम बढ़ा देने वाले वणिक-गायकों से तंग आ चुकी है। दीपावली ब्रांडेड हुंकार से नहीं, रोजी से मनेगी। चिथड़ा लपेट कर कैसे मनेगी, उन्हें भी अच्छी तरह पता है।
प्रधानमंत्री पद के भाजपाई उम्मीदवार नरेंद्र मोदी और कांग्रेस के भावी प्रधानमंत्री राहुल गांधी अपनी-अपनी चुनाव सभाओं में मतदाताओं का मन भरमाने के लिए पोंगा विलाप करते डोल रहे हैं। एक जनाब कह रहे हैं, दादी-पिता की तरह उन्हें भी निशाने पर लिया जा सकता है। दूसरे सज्जन अलापते हैं, आशीर्वाद है कि मैं जिंदा हूं। प्रश्न उठता है कि भारतीय कानून व्यवस्था में जब देश के भावी प्रधानमंत्रियों के डर-भय का ये हाल है तो जनता का क्या होगा। लोकतांत्रिक देश है। कहने के लिए सबको समान अधिकार है। पूरी सुरक्षा व्यवस्था कुछ लोगों की रखवाली में है। उस पर अरबों रुपये सालाना खर्च हो रहा है जनता का। जनता के टैक्स पर अधिकारी और नेता मौज उड़ा रहे हैं।
प्रधानमंत्री के लिए ढोंग की भाषा बोलने की बजाय जनता की उन वास्तविक समस्याओं पर बोलने से ये नेता कतरा रहे हैं। इतनी चौकसी लपेटने के बावजूद उन्हें अपनी-अपनी जान का डर है। हैरत है। तो जनता क्या करे। वे क्यों बार-बार रैलियों में अपनी जान की दुहाई दे रहे हैं। जनता की जान क्या खैरियत में हैं। वे महंगाई पर महंगाई लादते हुए जनता की जान लेने पर आमादा हैं। अपराधियों को राजनेता बना कर जनता की बहू-बेटियों की इज्जत-आबरू खतरे में डाले हुए हैं। कानून व्यवस्था हर प्रदेश में हाशिये पर है। दिनदहाड़े लोग मारे जा रहे हैं, लूटे जा रहे हैं। श्रम कानूनों का अपहरण कर करोड़ों मेहनतकशों को मरने के लिए छोड़ दिया है। देश कर्जखोरी में डूबता जा रहा है और स्विस बैंक में वे देसी चोरी का माल तहियाते जा रहे हैं। क्या उन्हें देसी-विदेशी कंपनियों की चाटुकारिता करने के लिए प्यार किया जाए। महंगाई के कोड़े खाने के लिए चुना जाए!
वह किसके लोकतंत्र की हिफाजत के लिए राजधानियों में कुंडली मारना चाहते हैं। लोकपाल विधेयक पर क्यों बाएं-दाएं झांकते हैं! पटेल की गगन चुंबी प्रतिमा किसके पैसे से बनवा रहे हैं। किसके पैसे से दिनरात हवाई यात्राएं कर रहे हैं। आखिर कैसे उनके और अफसरों के लग्गू-भग्गू तक सियासी बाना ओढ़ते ही साल-छह महीने में लखपति-करोड़पति हो जा रहे हैं। दो रुपये में प्याज खरीद कर सौ रुपये में बेचने वाले जमाखोरों को संरक्षण कौन दे रहा है! जनता को सब पता है। हकीकत तो ये है, उसके सामने कोई तीसरा विकल्प नजर नहीं आ रहा है।
इसलिए वे अपनी रैलियों में चाहे जितने सयाने बन लें, जितने तरह के फर्जी विलाप कर लें, चैनल चाहे जितनी बेशर्मी से खलनायक को नायक बनाने का खेल खेल लें, जनता सब देख रही है। सब जान रही है। सच तो ये है कि अपनी अशिक्षा और नादानी के चलते वह इन खद्दरधारी दुरंगों, सरमायेदारों के चौकीदार-जोकरों, लुटेरों-मवालियों के सफेदपोश संरक्षकों, प्याज के जमाखोरों से चुनावी थैलियां खसोटने वाले जेबकतरों, किसी भी समय डीजल-पेट्रोल के दाम बढ़ा देने वाले वणिक-गायकों से तंग आ चुकी है। दीपावली ब्रांडेड हुंकार से नहीं, रोजी से मनेगी। चिथड़ा लपेट कर कैसे मनेगी, उन्हें भी अच्छी तरह पता है।
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