छुआछूत पर आधारित एक दलित युवक की कहानी
रवीन्द्र प्रभात के उपन्यास 'ताकि बचा रहे लोकतन्त्र' के कथानक के केंद्र में आधुनिक दलित विमर्श है । इसमें एक ऐसे दलित युवक "झींगना" की कहानी है जो उच्च जाति के लोगों से सताये जाने के बावजूद समाज मे एक सम्मानित स्थान के बावजूद आत्मसम्मान प्राप्त करने में सफल होता है और अपनी बिरादरी को गर्व से जीने की राह दिखाता है। इस उपन्यास को पढ़ते हुए पाठक उस दर्द को महसूस करता है जो सदियों से हाशिये पर रहे लोगों ने जिया है। नैतिकता और आदर्शवाद को आधार बना कर दलित संघर्ष की अनुशंसा करता यह उपन्यास जातिवाद, छुआछूत की समस्या और समाधान के प्रति गंभीर चिंतन है। उपन्यास में लोक रंग की मुग्धकारी छटा कथ्य को बोझिल होने से बचाती है। उपन्यास के तीनों मुख्य पात्र झिंगना, सुरसतिया और ताहिरा दृढ और सुलझे विचारों से युक्त नैतिक मानदंडों पर खरे उतरते हैं और समाज में आदर्शवाद की परिकल्पना में अपनी अहम भूमिका निभाने में सफल होते है।
लेखक हिन्दी के कवि, लेखक,व्यंग्यकार, कथाकार और न्यू मीडिया विशेषज्ञ हैं। ये व्यंग्य के एक नियमित स्तंभकार भी हैं। यह इनका पहला उपन्यास है।
कहानी कुछ इस तरह है.........
उत्तर बिहार के भवदेपुर गाँव का झिंगना नामक दलित युवक इस उपन्यास का मुख्य पात्र है । झिंगना की माँ जनकिया उसे बहुत पढाना चाहती थी . मैट्रिक तक पढने के बाद झिंगना एक स्कूल में सरकारी नौकरी करता है मगर एक दिन काम में चूक होने पर हेडमास्टर का ताना कि तुम कोटे वाले हो , सुनकर नौकरी को छोड़ आता है और उस दिन से ही सामाजिक न्याय के लिए उसकी लडाई आरम्भ हो जाती है । वह मैला ढ़ोने का काम भी कर लेता है मगर उसकी सुसंस्कृत स्वाभिमानी पत्नी सुरसतिया उसे इस काम के लिए मना करती है और उसकी बात मान वह एक मुर्दाघर में काम करने का अपना परंपरागत पेशा अपना लेता है । छूआ छूत , अस्पृश्यता इन दोनों को ही बहुत क्षुब्ध करती है . गाँव के बड़े नेता धरिछन पाण्डेय से उसकी अनबन हो जाती है ।
चमनलाल की नाटक मंडली के कलाकार की असामयिक मृत्यु झिंगना के जीवन में बड़ा परिवर्तन लाती है । चमनलाल झिंगना को दिवंगत कलाकार का रोंल अदा करने के लिए कहता है । सीतामढ़ी के जानकी मंदिर में होने वाले कार्यक्रम में खेले जाने वाले नाटक में झिंगना महाकवि मुंहफट साहब का रोंल निभाता है । सभी उसके अभिनय से प्रभावित होते हैं , मगर झिंगना का दुर्भाग्य कि उसके दूसरे भाग के मंचन से पहले ही पंडाल में जोरदार धमाका होता है। कई लोंग मारे जाते हैं , चीख- पुकार , भागमभाग के बीच दिलावर के पास रोते सकपकाए झिंगना को धमाके और दिलावर की हत्या का आरोपी मानती पुलिस पकड़ कर ले जाती है । वास्तव में यह झिंगना को सबक सिखाने के लिए धरिछन पाण्डेय द्वारा रचा गया षड़यंत्र है . जेल में हैरान, परेशान झिंगना हिन्दू – मुस्लिम दंगों की असलियत जानते हुए कुछ ना कर पाने की विवशता से छटपटाता है। सुरसतिया जेल में खाने के साथ नेताजी का पैगाम लेकर झिंगना से मिलती है । नेताजी का कहना हैं कि यदि झिंगना इस विपदा से उबरना चाहता है तो उसे गाँव छोड़ कर जाना होगा , क्योंकि वे झिंगना के सपने और सामाजिक सरोकार की प्रतिबद्धता से आतंकित है । झिंगना पलायन को कमजोरी मानकर आनाकानी करता है और गाँव में रहकर अपने संघर्ष को जारी रखना चाहता है मगर सुरसतिया पेट में पल रहे अपने बच्चे का वास्ता देकर उसे गाँव छोड़ने के लिए राजी कर लेती है ।
ट्रेन की बेटिकट यात्रा उसके भावी जीवन का सबसे महत्वपूर्ण ट्विस्ट बन जाती है । टी टी द्वारा टिकट मांगने पर झिंगना टिकट नहीं होने की बात करता है ,उसी अरक्षित डब्बे में अपने पिता सिकंदर के साथ सफर कर रही मशहूर शायरा और शास्त्रीय गायिका ताहिरा उसकी मदद करती है । ट्रेन में बैठा झिंगना अपनी लोकधुन में गीत गुनगुनाता है . उसकी मधुर तान से मुग्ध ताहिरा अपने साथ लखनऊ ले जाती है। ताहिरा का परिवार गंगा -जमुनी संस्कृति की पहचान है . ताहिरा के पिता सिकंदर मुस्लिम है तो माँ बनारस के हिन्दू ब्राह्मण परिवार से ताल्लुक रखती हैं . हिन्दू माँ के संस्कार और पिता के आदर्श एक साथ ताहिरा में मिल कर उसे एक शानदार व्यक्तित्व बना देते हैं . ताहिरा उर्दू , फारसी , हिंदी और संस्कृत की जानकार है । ” अनुप्रास हुआ मन मंदिर मन हुआ कबीर तन औचक बिंदास हुआ ” गीत गाते हुए ताहिरा और झिंगना की साझा संगीत यात्रा प्रारंभ होती है और झिंगना के जीवन का महत्वपूर्ण अध्याय प्रारंभ हो जाता है ।
झिंगना के साथ काम करते हुए उसकी मासूमियत और सरल स्वभाव ताहिरा को बहुत प्रभावित करता है और वह मन ही मन उससे प्रेम करने लगती है । झिंगना और ताहिरा की काव्य नाटिका ” बेटिकट सफ़र ” ना सिर्फ आकशवाणी और दूरदर्शन पर धूम मचाती है , बल्कि कई शहरों में इनका सफल मंचीय आयोजन भी किया जाता है और झिंगना एक राष्ट्रीय कलाकार के रूप में प्रसिद्ध हो जाता है । झिंगना अपने कार्यक्रमों और नाटकों में कई प्रयोग करता है । उर्दू और फारसी शब्दों से सजी अनूठी रामलीला उसकी मौलिक प्रतिभा की परिचायक बन जाती है । कामयाबी उसके कदम चूम रही है । लोकगायन के साथ नाट्य निर्देशक के रूप में उसके नाम की देश भर में धूम मच जाती है । नाट्य के प्रति अपने समर्पण के कारण झिंगना फिल्मों में काम करने के प्रस्ताव को भी ठुकरा देता है । ताहिरा के साथ मिल कर वह ” अन्तरंग ” नाट्य मंच की स्थापना करता है जो प्रतिभाशाली नाट्य कलाकारों को तलाशने के साथ उन्हें निखारने का कार्य भी करता है । ताहिरा उसके लिए नाटक लिखती है, वही खलील , रईस , अंगद , कमोलिका आदि कलाकार कार्यक्रमों के सुचारू रूप से सञ्चालन में उनकी मदद करते हैं . झिंगना इस बात को लेकर प्रतिबद्ध है कि उसके नाटकों में कही भी साम्प्रदायिकता की झलक ना आये ।
लखनऊ महोत्सव में दूरदर्शन पर होने वाले कार्यक्रम में वर्ष के सर्वश्रेष्ठ रंगकर्मी के रूप में राष्ट्रपति के हाथों सम्मान ग्रहण करते देख उसके ग्राम वासियों के साथ सुरसतिया भी भावविभोर हो जाती है .पूरे दो वर्षों के बाद वह अपने पति का दूरदर्शन पर ही दर्शन करती है . झिंगना भी अपनी पत्नी सुरसतिया और बच्चे की कमी को महसूस करता है ।
राज्यपाल द्वारा सम्मानित किये जाने के कार्यक्रम में झिंगना “उत्थान संकल्प मठ ” नमक ट्रस्ट की स्थापना तथा उसमे अपनी कमाई का 50 प्रतिशत ट्रस्ट में देने की घोषणा करता है।
ताहिरा का झिंगना के प्रति प्रेम बढ़ता ही जाता है , मगर वह इसका इज़हार नहीं करती ,अपनी डायरी में अपनी भावनाओं को व्यक्त करती है । अचानक एक दिन झिंगना की नजर ताहिरा की डायरी पर पड़ जाती है । वह ताहिरा की स्वयं के प्रति आसक्ति देख परेशान हो जाता है और अपने गाँव लौटने का फैसला करता है ।
झिंगना धर्मग्रंथों से जाति वाले पन्ने निकाल देने और तथाकथित मनुवादियों के पाखंड के खिलाफ हरिजन आन्दोलन के माध्यम से अपनी आवाज़ बुलंद करता है । उधर गाँव में धरिछन पाण्डेय झिगना के लौट कर आने की खबर से परेशान है क्योंकि अब झिंगना पहले जैसा कमजोर नहीं रहा । अब वह कुर्बान पर सुरसतिया के सूअर को मार कर गाँव में झिंगना और उसके परिवार को सांप्रदायिक दंगे भड़काने का कुसूरवार ठहराने का षड़यंत्र रचता है । कुर्बान जब यह बात अपनी पत्नी रुकयिया को बताता है तो वह सुरसतिया को इस षड़यंत्र के प्रति आगाह कर देती है । धरिछन पांडे के गुंडे जब सुरसतिया के सूअर को मारने की कोशिश करते हैं तो वह उन्हें ललकारती है । गुंडे उसकी झोपड़ी को आग लगा कर भागते हैं जिसके भीतर सुरसतिया का बेटा मुन्ना सो रहा है । अपनी जान की परवाह किये बिना ही सुरसतिया आग की लपटों में कूद पड़ती है और गंभीर रूप से घायल हो जाती है ।
दिल्ली में अनुसूचित जाति /जनजाति आयोग के अध्यक्ष का पद सँभालते झिंगना को गाँव में अपनी पत्नी के गंभीर रूप से जल जाने की सूचना मिलती है और वह मीटिंग अधूरी छोड़ कर गाँव आ जाता है । भरसक प्रयासों के बावजूद सुरसतिया बच नहीं पाती । कुर्बान और उसकी पत्नी सरकारी गवाह बन जाते हैं । धरिछन पाण्डेय के खिलाफ गैर जमानती वारंट जारी होता है । सारे समाचार सुन कर ताहिरा भी गाँव आकर झिंगना को ढाढस बंधाती है और मुन्ना को एक बेहतर भविष्य का देने का वादा करते हुए उसे साथ लेकर लखनऊ लौट जाती है।
झिंगना गाँव में अपने संघर्ष को अंतिम सांस तक जारी रखने का प्रण करता है . वह माओवादियों से भी हिंसात्मक संघर्ष छोड़ कर अहिंसा की राह पर चलने का आह्वान करते हुए सामाजिक विकृतियों से लड़ने की अपनी सामाजिक प्रतिबद्धता की ओर कदम बढ़ाता है….
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