Thursday, 18 July 2013

एक रचना नगर का क्लासिक अभियान


शिव प्रसाद जोशी

वाइमर जर्मनी का ऐसा शहर जहां कलाकार, साहित्यकार खींचे चले आए और इस शहर के जादू में उलझे रह गए. पिछले दस सालों में शहर अपनी तस्वीर बदल रहा है लेकिन इतिहास को और चमकता हुआ. जर्मनी के सांस्कृतिक इतिहास से कोई और जगह इतनी संपृक्त और अंतर्गुम्फित नहीं है जितना कि वाइमर शहर. त्युरिंगिया सूबे का ये भी कोई नामालूम सा हिस्सा ही होता अगर वाइमर को स्वप्नदर्शी शासक न मिलते. विशेषकर ड्यूक कार्ल अगस्टस और उसकी पत्नी आन्ना अमालिया के संरक्षण मे शहर गहन सांस्कृतिक समृद्धि के साथ फला फूला. उस दौर में गोएथे, शिलर और हर्डर जैसे दिग्गज विचारक यहां रहे. 19 वीं और 20 वीं सदी में शहर के नामी बाशिंदों में शामिल थे- फ्रात्स लित्स, रिचर्ड स्त्राउस, फ्रीडिरिश नीत्शे और 1919 में स्थापित बाउहाउस स्कूल के नामी लेखक और कलाकार. वाइमर नाम एक गणतंत्र का भी था- पहले विश्व युद्ध से 1933 तक ये एक लोकतांत्रिक जर्मन राज्य था, वाइमर रिपब्लिक.
अपने देश के इतिहास के निर्माण में योगदान दिया. गोएथे ने अपनी सबसे प्रसिद्ध कृति “फाउस्ट” की रचना भी यहीं की थी. महान दार्शनिक और लेखक फ्रीडरिश शिलर 1799 में वाइमर आए और अपने जीवन के अंतिम छह साल यहां रहकर अपनी अप्रतिम साहित्यिक रचनाएं कीं जिनमें “विल्हेल्म टेल” भी एक है. 1869 से 1886 तक महान संगीत रचनाकार फ्रांत्स लित्स ने भी वाइमर को अपनी कर्मस्थली बनाया, वो यहां रूक रूक कर आते रहे. और कई महीनों के प्रवास में संसार को देने के लिए अद्भुत सिंफनियों की तलाश करते रहे. उनका विख्यात “हंगेरियन रैपसोडी” यहीं से निकला था. वाइमर में ही 1900 के दरम्यान फ्रीडरिश नीत्शे का आगमन हुआ जिन्होंने अपनी कई महत्त्वपूर्ण दार्शनिक व्याख्याएं यहीं सृजित कीं.
बीसवीं सदी में वाइमर असाधारण राजनैतिक महत्व का शहर बन गया था. शहर के जर्मन राष्ट्रीय थियेटर में 1919 में एक सम्मेलन हुआ था जिसमें वाइमर गणतंत्र का जन्म हुआ. जर्मन भूमि पर ये पहला लोकतांत्रिक राज्य था. ठीक बीस साल बाद हिटलर की नेशनल सोशिलिस्ट पार्टी ने शहर के चमकदार इतिहास में एक कुख्यात पन्ना जोड़ दिया- शहर के बाहरी इलाके में बुशेनवाल्ड यातना शिविर बनाकर. 1937-45 के दौरान 54 हज़ार लोग इस यातना शिविर में मार दिए गए थे. वाइमर की छवि को ये अकेला लेकिन निहायत दर्द भरा घाव मिला था. क्रूरता की इस निशानी पर आज एक स्मृति स्थल, एक संग्रहालय और डोक्युमेंटेशन सेंटर बनाया गया है.
गोएथे और शिलर के ज़माने में, जब वाइमर की आबादी बामुश्किल छह हज़ार की थी, महान लेखर योहान गौटफ्रीड हर्डर ने उसके बारे में लिखा था कि वाइमर गांव और शहर के बीच का कुछ है. आज त्युरिंगिया सूबे के इस शहर में उस दौर से दस गुना ज़्यादा लोग रहते हैं तब भी कोई सैलानी जब यहां आता है तो उसे गांव का जैसा वातावरण महसूस होता है. एक टूरिस्ट आए या गाड़ियां भर कर सैलानियों के जत्थे, वाइमर शहर की कस्बाई महानता और इस विलक्षणता का एंबियंस अटूट बना हुआ है.
1999 में वाइमर का चयन साल के चुनिंदा सांस्कृतिक शहरों में हुआ था. तब से कला जगत की बेशुमार गतिविधियां इस शहर में आ गयी है. आधुनिक और समकालीन कला के अनेक नज़ारें यहां देखे जा सकते हैं. अपनी शास्त्रीय विरासत के बीच कला के ऐसे उद्दाम और प्रचंड स्वागत ने वाइमर को और संस्कृति संपन्न स्थल बना दिया.
18वीं और 19वीं सदियों में पड़ोसी शहर येना की ख्याति यूनिवर्सिटी टाउन के रूप में थी और वाइमर की प्रसिद्धि थी कला और संस्कृति के गढ़ के रूप में. 1860 में एक कला स्कूल की यहां स्थापना की गयी. 1907 में इसका और कला विस्तार किया गया. और साल 1919 से वाइमर एक कला स्कूल का गढ़ बन गया, जिसे कहते हैं बाउहाउस( मोटे तौर पर जिसके माने हैं निर्माण घर या रचना घर.) वाइमर की एक आधुनिक यूनिवर्सिटी का नाम भी इसी विश्वप्रसिद्ध स्कूल पर रखा गया है.
वाइमर की शास्त्रीयता और ऐंद्रिक पर्यावरण ही रहा होगा जो यहां महान रचनाकार खिंचे चले आए. हिटलर का बर्बर शिविर भी मानो शहर की जीवंतता पर एक असहज दुर्योग की तरह चस्पां है- एक ऐसे यथार्थ की तरह जिसे राजनैतिक वासना ने गंदा और घिनौना बना दिया था. वाइमर की ये विलक्षण नेकनीयती है और वाइमर का ही ये विवेकपूर्ण साहस है कि शताब्दियों के रचनाधर्मी इतिहास में ऐसे कुछ दिन भी चले आए जिन्हें वाइमर ने एक शर्म और महान ग्लानि के साथ याद करते रहने का फ़र्ज़ निभाया है. इस फ़र्ज़ की रोशनी में अपने निवासियों से एक निवेदन भी है और यहां आने वालों से भी. वाइमर जैसा एक शालीन कला नगर दुनिया से अहिंसा के निवेदन के सिवा और भला क्या कर सकता है.

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